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05-12-2025

बैंकरप्ट्सी कानून : लिक्विडेटर अपॉइंट करने का अधिकार क्रेडिटर्स की कमेटी के पास

  •  नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल ने कहा है कि जिन मामलों में रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल ने लिखित सहमति प्रस्तुत नहीं की है, उनमें क्रेडिटर्स की कमेटी (सीओसी) के पास ही बैंकरप्ट्सी से गुजर रही कर्ज में फंसी कंपनी के लिए लिक्विडेटर नियुक्त करने का अधिकार है, एनसीएलटी के पास नहीं। दो समान मामलों में आदेश पारित हुए अपीलेट ट्रिब्यूनल ने यह कहा। दोनों मामलों में एनसीएलटी ने स्वयं दो बैंकरप्ट्सी से गुजर रही कंपनियों के लिए लिक्विडेटर नियुक्त किए थे। अपीलेट ट्रिब्यूनल ने उन नियुक्तियों को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि ‘केवल क्रेडिटर्स की कमेटी (सीओसी) के पास ही रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल के स्थान पर उम्मीदवार का चयन करने का अधिकार है।’’ एनसीएलएटी ने कहा कि बैंकरप्ट्सी कानून (आईबीसी) के अंतर्गत कार्यवाही के तहत नामित प्राधिकारी के रूप में काम करने वाला एनसीएलटी केवल ‘रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को बदलने के लिए अधिकृत है, लिक्विडेटर नियुक्त करने के लिए नहीं।’ आईबीसी के अनुसार, निर्धारित समयसीमा के भीतर कर्ज में फंसी कंपनियों की बिक्री जरूरी है, ऐसा न करने पर एनसीएलटी लिक्विडेशन का आदेश पारित करता है। ऐसे मामलों में रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल के रूप में कार्यरत अधिकारी कंपनी के लिक्विडेटर के रूप में कार्य करना शुरू कर देता है। हालांकि, आईबीसी की धारा 34(1) के अनुसार, इसके लिए, रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को लिखित सहमति प्रस्तुत करनी होगी और यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है, तो धारा 34(4)(सी) एनसीएलटी को उसकी जगह किसी अन्य व्यक्ति को कंपनी का लिक्विडेटर नियुक्त करने का अधिकार प्रदान करती है। यह विवाद उस समय उत्पन्न हुआ जब एनसीएलटी की इंदौर पीठ ने एक ऐसे लिक्विडेटर की नियुक्ति की, जो न तो सीआईआरपी के दौरान नियुक्त रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल था और न ही क्रेडिटर्स की कमेटी की पसंद का उम्मीदवार था। कर्जदाताओं ने एनसीएलएटी के समक्ष इसे चुनौती दी। उसने दलील दी कि आईबीसी की धारा 34(1) का दूसरा भाग एनसीएलटी को केवल रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को बदलने के लिए अधिकृत करता है, लेकिन सीओसी की पसंद को रद्द करने का कोई अधिकार नहीं देता है। इसका विरोध दो लिक्विडेटर्स के वकीलों ने किया। उन्होंने कहा कि धारा 27 के तहत, सीओसी को रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल नियुक्त करने का अधिकार है। जहां तक लिक्विडेटर की नियुक्ति का संबंध है, पूरा अधिकार न्याय निर्णय करने वाले प्राधिकारी के पास है। हालांकि, अपीलीय न्यायाधिकरण इसे अस्वीकार करते हुए कहा, ‘‘यदि धारा 34(1) और धारा 34(4)(सी) के दूसरे भाग को ध्यान से पढ़ा जाए, तो यह न्यायनिर्णायक प्राधिकारी को केवल रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को बदलने का अधिकार देता है, न कि लिक्विडेटर नियुक्त करने का।’’ लेकिन, रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को बदलने का अधिकार धारा 27 के तहत सीओसी के पास छोड़ दिया गया है।

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बैंकरप्ट्सी कानून : लिक्विडेटर अपॉइंट करने का अधिकार क्रेडिटर्स की कमेटी के पास

 नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल ने कहा है कि जिन मामलों में रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल ने लिखित सहमति प्रस्तुत नहीं की है, उनमें क्रेडिटर्स की कमेटी (सीओसी) के पास ही बैंकरप्ट्सी से गुजर रही कर्ज में फंसी कंपनी के लिए लिक्विडेटर नियुक्त करने का अधिकार है, एनसीएलटी के पास नहीं। दो समान मामलों में आदेश पारित हुए अपीलेट ट्रिब्यूनल ने यह कहा। दोनों मामलों में एनसीएलटी ने स्वयं दो बैंकरप्ट्सी से गुजर रही कंपनियों के लिए लिक्विडेटर नियुक्त किए थे। अपीलेट ट्रिब्यूनल ने उन नियुक्तियों को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि ‘केवल क्रेडिटर्स की कमेटी (सीओसी) के पास ही रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल के स्थान पर उम्मीदवार का चयन करने का अधिकार है।’’ एनसीएलएटी ने कहा कि बैंकरप्ट्सी कानून (आईबीसी) के अंतर्गत कार्यवाही के तहत नामित प्राधिकारी के रूप में काम करने वाला एनसीएलटी केवल ‘रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को बदलने के लिए अधिकृत है, लिक्विडेटर नियुक्त करने के लिए नहीं।’ आईबीसी के अनुसार, निर्धारित समयसीमा के भीतर कर्ज में फंसी कंपनियों की बिक्री जरूरी है, ऐसा न करने पर एनसीएलटी लिक्विडेशन का आदेश पारित करता है। ऐसे मामलों में रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल के रूप में कार्यरत अधिकारी कंपनी के लिक्विडेटर के रूप में कार्य करना शुरू कर देता है। हालांकि, आईबीसी की धारा 34(1) के अनुसार, इसके लिए, रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को लिखित सहमति प्रस्तुत करनी होगी और यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है, तो धारा 34(4)(सी) एनसीएलटी को उसकी जगह किसी अन्य व्यक्ति को कंपनी का लिक्विडेटर नियुक्त करने का अधिकार प्रदान करती है। यह विवाद उस समय उत्पन्न हुआ जब एनसीएलटी की इंदौर पीठ ने एक ऐसे लिक्विडेटर की नियुक्ति की, जो न तो सीआईआरपी के दौरान नियुक्त रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल था और न ही क्रेडिटर्स की कमेटी की पसंद का उम्मीदवार था। कर्जदाताओं ने एनसीएलएटी के समक्ष इसे चुनौती दी। उसने दलील दी कि आईबीसी की धारा 34(1) का दूसरा भाग एनसीएलटी को केवल रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को बदलने के लिए अधिकृत करता है, लेकिन सीओसी की पसंद को रद्द करने का कोई अधिकार नहीं देता है। इसका विरोध दो लिक्विडेटर्स के वकीलों ने किया। उन्होंने कहा कि धारा 27 के तहत, सीओसी को रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल नियुक्त करने का अधिकार है। जहां तक लिक्विडेटर की नियुक्ति का संबंध है, पूरा अधिकार न्याय निर्णय करने वाले प्राधिकारी के पास है। हालांकि, अपीलीय न्यायाधिकरण इसे अस्वीकार करते हुए कहा, ‘‘यदि धारा 34(1) और धारा 34(4)(सी) के दूसरे भाग को ध्यान से पढ़ा जाए, तो यह न्यायनिर्णायक प्राधिकारी को केवल रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को बदलने का अधिकार देता है, न कि लिक्विडेटर नियुक्त करने का।’’ लेकिन, रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को बदलने का अधिकार धारा 27 के तहत सीओसी के पास छोड़ दिया गया है।


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