उदाहरण के लिये एक व्यापारी उधार पर माल विक्रय करता है या कोई धानिक ब्याज पर ऋण देता है और जब उनका पैसा वापस प्राप्त नहीं हो रहा हो और के्रता या ऋणी अतिरिक्त उधार मांगता हो तो व्यापारी या ऋणदाता ऐसे व्यक्ति को और अतिरिक्त उधार या ऋण पुरानी बकाया की वसूली। वापसी की आशा में, धन देता है। तब परिस्थिति में शीर्षस्थ- कहावत अटका बनिया देय उधार सटीक बैठती है। यह कहावत व्यवसाय व्यक्तिगत जीव,न सामाजिक जीवन एवं राजनीति, जन-सम्बंध सभी में लागू होती है। अर्थात जहां भी किसी को बेबस होकर विवश होकर, मजबूरी में कोई काम करना पड़े, वहां सब जगह लागू होती है। उदाहरण के लिये एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति ने एक लाख रुपये का माल उधार दे दिया जिसका समय पर भुगतान प्राप्त नहीं हुआ बल्कि वह व्यक्ति और उधार मांगता है तथा पुरानी बकाया को चुकाने का भी आश्वासन देता है। अब जिसने उधर दी है, वह विवश होकर तथा इस आशंका से कि पूर्व में दी गई उधार डूब जायेगी, वह नहीं चाहते हुए भी अतिरिक्त उधार दे देता है। तब शीर्षस्थ कहावत चरितार्थ होती है। कहावत आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।