देश में अनाज और दालों के व्यापारी सरकारी नीतियों के चलते गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं। व्यापारी वर्ग का कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की मौजूदा व्यवस्था न किसानों के हित में दिख रही है, न व्यापारियों के। एमएसपी पर सरकार द्वारा खरीदी सीमित होती है, जिससे किसान अपना माल औने-पौने दामों में मंडियों में बेचने को मजबूर हो जाते हैं। मजबूरी में वह उस व्यापारी को प्राथमिकता देता है जो समय पर भुगतान करता है। व्यापारियों का कहना है कि एमएसपी केवल कागजों में रह गई है। मूंग की एमएसपी 8768 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि बाजार में मूंग 7200 से 7600 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है। यही हाल उड़द और तुअर जैसी अन्य दलहनों का भी है। व्यापारी मांग कर रहे हैं कि एमएसपी के नीचे किसी भी हालत में बिक्री नहीं होनी चाहिए। अगर गुणवत्ता में अंतर है तो उसके लिए सरकार को स्पष्ट पैरामीटर तय करने चाहिए। बीकानेर से ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के सदस्य अशोक वासवानी का कहना है कि मटर के आयात को लेकर मिलर्स कड़ा विरोध जताते है। जब देश में पहले से दलहन का भरपूर स्टॉक मौजूद है, तो कनाडा और रूस से मटर का आयात एक साल के लिए बढ़ाना बिल्कुल अनुचित है। इंपोर्ट करके सरकार दलहन बाजार को बुरी तरह दलदल में डाल रही है। जबकि प्रधानमंत्री इंपोर्ट के खिलाफ बोलते हैं। कुछ एक बड़ी कंपनियां अपने स्वार्थ के लिए इसका इंपोर्ट चालू करवाया था। मटर का उपयोग हमारे देश में मुख्य रूप से बेसन में मिलावट के लिए किया जाता है। जिसका देश के करीब 60 पर्सेंट नमकीन विक्रेता उपयोग करते है। करणी औद्योगिक क्षेत्र की जिंदल इंडस्ट्रीज के प्रमुख राजेश जिंदल का कहना है कि जब एमएसपी से 1000-1500 रुपये कम रेट पर फसलें बिकती हैं, तो किसानों को नुकसान होता है और व्यापारी भी जोखिम नहीं उठा पाते। सरकार को चाहिए कि जब तक घरेलू बाजार में दाम एमएसपी से 30 पर्सेंट अधिक न हों, तब तक किसी भी दलहन का आयात न किया जाए। करणी औद्योगिक क्षेत्र की आरबी इंडस्ट्रीज के प्रमुख रामस्वरूप गोदारा का कहना है कि अगर एमएसपी पर कोई व्यापारी स्टॉक करता है तो उसे कम से कम 15-20 पर्सेंट अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ता है। जबकि उसे इस अनुपात में रिटर्न नहीं मिलता, तो व्यापारी स्टॉक करने से कतराते हैं। गंगानगर की सूर्या गोल्ड एग्रो फूड प्रा. लि. के प्रमुख अमित गोयल का कहना है कि पिछले 2-3 वर्षों में देशभर में 25 से 30 हजार छोटे दुकानदार अपना व्यापार बंद कर चुके हैं। बड़ी कंपनियों को प्रोत्साहन मिलने से गली-मोहल्लों के दुकानदारों का व्यापार भी छिनता जा रहा है। मध्यम और छोटे व्यापारी आज ‘वेंटिलेटर’ पर हैं। अगर यही हाल रहा तो एग्रीकल्चर बाजार से लोगों का विश्वास उठ जाएगा। व्यापारियों की मांग है कि सरकार किसानों, व्यापारियों और मिल मालिकों को साथ लेकर एक समन्वित नीति बनाए, जिससे कृषि व्यापार को फिर से पटरी पर लाया जा सके।
