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20-05-2025

वास्तविक स्थिति बयां नहीं करते महंगाई के आंकड़े

  •  अर्थशास्त्रियों का कहना है कि खुदरा महंगाई के मौजूदा आंकड़े महंगाई की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाते और कीमत वृद्धि की सही तस्वीर प्राप्त करने के लिए मौजूदा 2011-12 के उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण में जल्द-से-जल्द संशोधन करने की जरूरत है। उल्लेखनीय है कि पिछले सप्ताह जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, सब्जियों, फलों एवं दालों की कीमतों में नरमी आने से अप्रैल में खुदरा महंगाई की दर घटकर लगभग छह साल के निचले स्तर 3.16 प्रतिशत पर आ गई है। लेकिन परिवार के शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य मदों में बढ़ते खर्च को देखते हुए यह माना जा रहा है कि यह आंकड़ा महंगाई की स्थिति का सही बयां नहीं करता। जाने-माने अर्थशास्त्री और मद्रास स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के निदेशक प्रो. एन आर भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘माना जा रहा है कि खुदरा उपभोक्ताओं की खपत वस्तुओं की संरचना में बदलाव हुआ है। ऐसे में इसे जीवनयापन की लागत को दर्शाने के लिए भारांश और वस्तुओं में बदलाव की जरूरत है। अभी हम 2011-12 के उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण का इस्तेमाल कर रहे हैं और इसे जल्द-से-जल्द संशोधित करने की जरूरत है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘उम्मीद है कि नये सर्वेक्षण में 2011-12 के मुकाबले खाद्य वस्तुओं का भारांश कम हो सकता है। इसी तरह कुछ नई वस्तुएं भी हैं जो औसत उपभोक्ताओं की खपत में शामिल हो सकती हैं।’’ जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसेर डॉ. अरुण कुमार ने कहा, ‘‘हम वर्तमान में जो सूचकांक (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) लेकर चल रहे हैं, वह न तो गरीब को और न ही अमीर को प्रतिबिंबित करता है...उपभोग प्रतिरूप बदलता रहता है। जैसे तीस साल पहले मोबाइल नहीं था। पर अब सबके हाथ में है और अब इस मद में खर्च बढ़ा है। लोग अब  होटल, रेस्तरां में बाहर ज्यादा खाने लगे हैं...। स्कूल फीस, स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ा है। इसीलिए खपत प्रतिरूप बदल रहा है और उसका भारांश भी बढ़ रहा है। इसमें समय-समय पर संशोधन होना चाहिए था। लेकिन अबतक नहीं हुआ है ’’ उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के तहत यह पता लगाया जाता है कि परिवार किस प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करते हैं। इससे खपत प्रतिरूप को समझने में मदद मिलती है। वर्तमान में 2011-12 के सर्वेक्षण के आधार पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का आकलन किया जाता है। यह सर्वेक्षण हर पांच साल में होता है। परिवारों के खपत व्यय पर पिछला सर्वेक्षण 2022-23 और 2023-24 (अगस्त-जुलाई) में किया गया और इसके आधार पर सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के लिए आधार वर्ष मौजूदा 2012 से संशोधित कर 2024 करने पर काम कर रहा है। ऐसी संभावना है कि फरवरी, 2026 से 2022-23 के उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के आधार पर सीपीआई आंकड़े जारी किये जाएंगे। एक सवाल के जवाब में भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘महंगाई दर 3.16 प्रतिशत पर आ गई है, लेकिन इसका मतलब है कि कीमतों में पिछले साल के मुकाबले 3.16 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, न कि कीमतों में गिरावट।’’ कुमार ने भी कहा, ‘‘दो चीजें हैं। पहला महंगाई और दूसरा कीमत। महंगाई दर कम होने का मतलब यह नहीं है कि कीमतें कम हो रही हैं। इसका मतलब है कि कीमत बढऩे की दर कम हुई है।

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वास्तविक स्थिति बयां नहीं करते महंगाई के आंकड़े

 अर्थशास्त्रियों का कहना है कि खुदरा महंगाई के मौजूदा आंकड़े महंगाई की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाते और कीमत वृद्धि की सही तस्वीर प्राप्त करने के लिए मौजूदा 2011-12 के उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण में जल्द-से-जल्द संशोधन करने की जरूरत है। उल्लेखनीय है कि पिछले सप्ताह जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, सब्जियों, फलों एवं दालों की कीमतों में नरमी आने से अप्रैल में खुदरा महंगाई की दर घटकर लगभग छह साल के निचले स्तर 3.16 प्रतिशत पर आ गई है। लेकिन परिवार के शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य मदों में बढ़ते खर्च को देखते हुए यह माना जा रहा है कि यह आंकड़ा महंगाई की स्थिति का सही बयां नहीं करता। जाने-माने अर्थशास्त्री और मद्रास स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के निदेशक प्रो. एन आर भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘माना जा रहा है कि खुदरा उपभोक्ताओं की खपत वस्तुओं की संरचना में बदलाव हुआ है। ऐसे में इसे जीवनयापन की लागत को दर्शाने के लिए भारांश और वस्तुओं में बदलाव की जरूरत है। अभी हम 2011-12 के उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण का इस्तेमाल कर रहे हैं और इसे जल्द-से-जल्द संशोधित करने की जरूरत है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘उम्मीद है कि नये सर्वेक्षण में 2011-12 के मुकाबले खाद्य वस्तुओं का भारांश कम हो सकता है। इसी तरह कुछ नई वस्तुएं भी हैं जो औसत उपभोक्ताओं की खपत में शामिल हो सकती हैं।’’ जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसेर डॉ. अरुण कुमार ने कहा, ‘‘हम वर्तमान में जो सूचकांक (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) लेकर चल रहे हैं, वह न तो गरीब को और न ही अमीर को प्रतिबिंबित करता है...उपभोग प्रतिरूप बदलता रहता है। जैसे तीस साल पहले मोबाइल नहीं था। पर अब सबके हाथ में है और अब इस मद में खर्च बढ़ा है। लोग अब  होटल, रेस्तरां में बाहर ज्यादा खाने लगे हैं...। स्कूल फीस, स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ा है। इसीलिए खपत प्रतिरूप बदल रहा है और उसका भारांश भी बढ़ रहा है। इसमें समय-समय पर संशोधन होना चाहिए था। लेकिन अबतक नहीं हुआ है ’’ उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के तहत यह पता लगाया जाता है कि परिवार किस प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करते हैं। इससे खपत प्रतिरूप को समझने में मदद मिलती है। वर्तमान में 2011-12 के सर्वेक्षण के आधार पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का आकलन किया जाता है। यह सर्वेक्षण हर पांच साल में होता है। परिवारों के खपत व्यय पर पिछला सर्वेक्षण 2022-23 और 2023-24 (अगस्त-जुलाई) में किया गया और इसके आधार पर सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के लिए आधार वर्ष मौजूदा 2012 से संशोधित कर 2024 करने पर काम कर रहा है। ऐसी संभावना है कि फरवरी, 2026 से 2022-23 के उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के आधार पर सीपीआई आंकड़े जारी किये जाएंगे। एक सवाल के जवाब में भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘महंगाई दर 3.16 प्रतिशत पर आ गई है, लेकिन इसका मतलब है कि कीमतों में पिछले साल के मुकाबले 3.16 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, न कि कीमतों में गिरावट।’’ कुमार ने भी कहा, ‘‘दो चीजें हैं। पहला महंगाई और दूसरा कीमत। महंगाई दर कम होने का मतलब यह नहीं है कि कीमतें कम हो रही हैं। इसका मतलब है कि कीमत बढऩे की दर कम हुई है।


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