इंडिया में कोविड के बाद स्टॉक मार्केट में देखे गए ट्रेडिंग बूम का इंपैक्ट उल्टा पड़ता दिखाई दे रहा है जिसमें ब्रोकरेज प्लेटफॉर्म जहां रिकॉर्ड प्रॉफिट कमा रहे हैं वहीं लाखों इंडिविजुअल इंवेस्टर प्रमुख रूप से डेरिवेटिव सेगमेंट में लाखों करोड़ों रुपये का घाटा खा रहे हैं। इस स्थिति को सीधे शब्दों में समझें तो टेक्नोलॉजी ने जहां लोगों के बीच स्टॉक ट्रेडिंग तक पहुंच को बेहद आसान बना दिया है पर बड़ी संख्या में इंवेस्टरों के लिए ट्रेडिंग का एक्सपीरियंस प्रोफिटेबल नहीं रहा है। पिछले 4 वर्ष में इंडिया में कुल डीमैट अकाउंट्स की संख्या 4 करोड़ से बढक़र 15 करोड़ हो गई है। इनमें से अधिकतर नए इंवेस्टर 35 वर्ष से कम उम्र के हैं। ब्रोकरेज लेंडस्कैप में बड़े बदलाव के कारण भी यह ट्रेडिंग बूम देखने को मिला है। मोबाइल-फस्र्ट जनरेशन को केटर करने के लिए मोतीलाल ओसवाल व आईसीआईसीआई डायरेक्ट जैसे ट्रेडिशनल ब्रोकर्स स्वयं को ऐडप्ट नहीं कर पाए जिसका बेनेफिट जेरोधा, ग्रो व अपस्टॉक्स जैसे एप बेस्ड डिस्काउंट ब्रोकर्स को मिलता चला गया। स्थिति यह है कि 2024 में ब्रोकिंग इंडस्ट्री के कुल रेवेन्यू व प्रॉफिट में डिस्काउंट ब्रोकर्स का शेयर क्रमश: 36 प्रतिशत 44 प्रतिशत पर पहुंच गया। ट्रेडिंग तक इस आसान पहुंच का नतीजा हालांकि नुकसानदायक रहा है। सेबी के मुताबिक 2021-22 से 2023-24 के बीच डेरिवेटिव सेगमेंट (फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस) में इंडिविजुअल ट्रेडर्स की संख्या करीब डबल हो गई। चिंताजनक पहलू यहां यह है कि इस पीरियड में कुल 1.13 करोड़ इंडिविजुअल ट्रेडर्स में से 1.05 करोड़ यानि 93 प्रतिशत ट्रेडर्स को घाटा हुआ है। 2021-22 में डेरिवेटिव सेगमेंट में इंडिविजुअल ट्रेडर्स को कुल 40824 करोड़ रुपये का घाटा हुआ जो 2022-23 में बढक़र 65,747 करोड़ रुपये एवं 2023-24 में और बढक़र 74812 करोड़ रुपये हो गया। देखा जाए तो इन 3 वर्षों में कुल 1.05 करोड़ इंडिविजुअल ट्रेडर्स को कुल 1.81 लाख करोड़ रुपये का घाटा हुआ। डेरिवेटिव सेगमेंट के कुल वॉल्यूम में 99 प्रतिशत शेयर खने वाली ऑप्शंस ट्रेडिंग इस घाटे का प्रमुख आधार रही। एक्सपटर्स का कहना है कि इंवेस्टरों को हुआ यह घाटा केवल आंकड़ा नहीं है बल्कि असल नुकसान है। फस्र्ट-टाइम इंवेस्टरों को टे्रडिंग एप्स द्वारा जल्दी पैसा कमाने के मार्केटिंग कैंपेन के जरिए अपनी ओर आकर्षित कर लिया जाता है जिससे शेयर बाजारों में इंवेस्टर की एंट्री तो आसानी से हो जाती है पर बाजारों की कांप्लेक्सिटी को समझकर ट्रेड करने के लिए आवश्यक फाइनेंशियल एजुकेशन व रिस्क रिलेटेड चेतावनी कोई भी ऑफर नहीं करता। स्मार्टफोन व क्कढ्ढ आईडी के साथ 25 वर्ष का कोई व्यक्ति चंद मिनटों में डेरिवेटिव ट्रेडिंग शुरू तो कर देता है पर उसके परिणामों को समझने में लंबा समय लग जाता है। छोटे इंवेस्टरों को डेरिवेटिव सेगमेंट से दूर रखने के लिए रेगूलेटर सेबी ने कई कदम उठाए हैं पर आम तौर पर पॉलिसी की तुलना में टेक्नोलॉजी की स्पीड काफी अधिक है व ट्रेडर्स आम तौर पर घाटा खाने के बाद ही डेरिवेटिव ट्रेडिंग की जोखिमों को समझने की कोशिश करते हैं।
