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21-08-2025

यूपी में माल की कमी से मक्की में और तेजी की संभावना

  •  यूपी में मक्की की आवक पूरी तरह घट गई है, क्योंकि अब वहां गर्मी वाली मक्की की आवक समाप्त होने वाली है। मंडियों में लगातार बरसात होने से बढिय़ा मक्की नहीं मिल पा रही है। अत: स्टॉक में मक्की की कमी एवं एथेनॉल कंपनियों की चौतरफा लिवाली से भविष्य में और तेजी की संभावना दिखाई दे रही है। मक्की की फसल रबी एवं खरीफ सीजन में प्रांतवार यूपी एमपी महाराष्ट्र राजस्थान एवं बिहार में आती है। इसका उत्पादन दोनों सीजन को मिलाकर 138-139 लाख मीट्रिक टन का अनुमान लगाया गया है। सबसे बड़ी फसल बिहार के दरभंगा बेगूसराय खगडिय़ा मानसी सेमापुर जमालपुर गुगड़ी लाइन में गर्मी में हाइब्रिड मक्की आती है, जो सकल उत्पादन का 77-78 प्रतिशत अकेले उत्पादन होता है। वहां पूर्व मानसून बरसात बार-बार होने से माल इस बार हल्की क्वालिटी का ज्यादा आया है तथा बढिय़ा क्वालिटी की केवल 40-45 प्रतिशत ही आने से वहां के गोदामों में छोटी-बड़ी कंपनियों का स्टाक इस बार कम हो पाया है। यही कारण है कि गोदाम पहुंच में मक्की 2350/2400 रुपए प्रति क्विंटल वहां बिक रही है, जो हरियाणा पंजाब पहुंच में 2425/2600 रुपए का नमी के अनुसार व्यापार हो रहा है। इधर यूपी के हाथरस ऊंझानी कासगंज एटा लाइन में मक्की की आवक घट गई है, यहां भी लगातार रुक-रुक कर बरसात होने से मंडियों में बड़ी कंपनियों  को स्टॉक के लिए माल ज्यादा नहीं मिल पाया है। जो माल आ रहा है, वह रैक लोड होता जा रहा है। मक्की स्टॉक के लिए 15 प्रतिशत नमी वाली दो दिनों में 40/50 रुपए बढक़र 2120/2140 रुपए प्रति कुंतल हो गई है, मंडिया लूज में 2080/2100 रुपये के बीच कासगंज एटा लाइन में बिकने लगी है। हरियाणा पंजाब पहुंच में यूपी की मकई के पड़ते लगे रहे हैं, लेकिन सूखी मक्की नहीं मिलने से कंपनियों को स्टॉक के लिए ही माल मिलना मुश्किल हो गया है। इधर हाथरस लाइन में भी मक्की समाप्ति की ओर है, लेकिन वहां की क्वालिटी अच्छी नहीं होने से कारोबारी बढिय़ा माल की खरीद केवल कर रहे हैं। इस बार मानसून समय से आ जाने से खरीद कम हो पाई है, क्योंकि पिछले एक दशक से मानसून लेट एवं कम मात्रा में बरसात आती थी, इसलिए कारोबारियों को सूखी मक्की जुलाई के अंत तक मिल जाती थी। हम मानते हैं कि इस बार साठी धान की बिजाई बहुत ही कम होने से उन क्षेत्रों में भी मक्की की बिजाई अधिक हुई थी, लेकिन तैयार माल भीग जाने से स्टाक के लिए उसका अनुरूप नहीं मिल पाया है, इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए भविष्य में मक्की का व्यापार लाभदायक रहेगा। आगे चलकर अक्टूबर से महाराष्ट्र मध्य प्रदेश राजस्थान की मक्की का सीजन शुरू हो जाएगा, लेकिन वहां भी इस बार खेतों में मक्की की बिजाई मुश्किल लग रही है, क्योंकि जगह-जगह पानी भरा पड़ा है।

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यूपी में माल की कमी से मक्की में और तेजी की संभावना

 यूपी में मक्की की आवक पूरी तरह घट गई है, क्योंकि अब वहां गर्मी वाली मक्की की आवक समाप्त होने वाली है। मंडियों में लगातार बरसात होने से बढिय़ा मक्की नहीं मिल पा रही है। अत: स्टॉक में मक्की की कमी एवं एथेनॉल कंपनियों की चौतरफा लिवाली से भविष्य में और तेजी की संभावना दिखाई दे रही है। मक्की की फसल रबी एवं खरीफ सीजन में प्रांतवार यूपी एमपी महाराष्ट्र राजस्थान एवं बिहार में आती है। इसका उत्पादन दोनों सीजन को मिलाकर 138-139 लाख मीट्रिक टन का अनुमान लगाया गया है। सबसे बड़ी फसल बिहार के दरभंगा बेगूसराय खगडिय़ा मानसी सेमापुर जमालपुर गुगड़ी लाइन में गर्मी में हाइब्रिड मक्की आती है, जो सकल उत्पादन का 77-78 प्रतिशत अकेले उत्पादन होता है। वहां पूर्व मानसून बरसात बार-बार होने से माल इस बार हल्की क्वालिटी का ज्यादा आया है तथा बढिय़ा क्वालिटी की केवल 40-45 प्रतिशत ही आने से वहां के गोदामों में छोटी-बड़ी कंपनियों का स्टाक इस बार कम हो पाया है। यही कारण है कि गोदाम पहुंच में मक्की 2350/2400 रुपए प्रति क्विंटल वहां बिक रही है, जो हरियाणा पंजाब पहुंच में 2425/2600 रुपए का नमी के अनुसार व्यापार हो रहा है। इधर यूपी के हाथरस ऊंझानी कासगंज एटा लाइन में मक्की की आवक घट गई है, यहां भी लगातार रुक-रुक कर बरसात होने से मंडियों में बड़ी कंपनियों  को स्टॉक के लिए माल ज्यादा नहीं मिल पाया है। जो माल आ रहा है, वह रैक लोड होता जा रहा है। मक्की स्टॉक के लिए 15 प्रतिशत नमी वाली दो दिनों में 40/50 रुपए बढक़र 2120/2140 रुपए प्रति कुंतल हो गई है, मंडिया लूज में 2080/2100 रुपये के बीच कासगंज एटा लाइन में बिकने लगी है। हरियाणा पंजाब पहुंच में यूपी की मकई के पड़ते लगे रहे हैं, लेकिन सूखी मक्की नहीं मिलने से कंपनियों को स्टॉक के लिए ही माल मिलना मुश्किल हो गया है। इधर हाथरस लाइन में भी मक्की समाप्ति की ओर है, लेकिन वहां की क्वालिटी अच्छी नहीं होने से कारोबारी बढिय़ा माल की खरीद केवल कर रहे हैं। इस बार मानसून समय से आ जाने से खरीद कम हो पाई है, क्योंकि पिछले एक दशक से मानसून लेट एवं कम मात्रा में बरसात आती थी, इसलिए कारोबारियों को सूखी मक्की जुलाई के अंत तक मिल जाती थी। हम मानते हैं कि इस बार साठी धान की बिजाई बहुत ही कम होने से उन क्षेत्रों में भी मक्की की बिजाई अधिक हुई थी, लेकिन तैयार माल भीग जाने से स्टाक के लिए उसका अनुरूप नहीं मिल पाया है, इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए भविष्य में मक्की का व्यापार लाभदायक रहेगा। आगे चलकर अक्टूबर से महाराष्ट्र मध्य प्रदेश राजस्थान की मक्की का सीजन शुरू हो जाएगा, लेकिन वहां भी इस बार खेतों में मक्की की बिजाई मुश्किल लग रही है, क्योंकि जगह-जगह पानी भरा पड़ा है।


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