तिल्ली का स्टॉक उत्पादक व खपत वाली मंडियों में 78 प्रतिशत के करीब निकल जाने से बिकवाल पीछे हट गए हैं, जिससे नीचे के भाव से बाजार 8/9 रुपए प्रति किलो बढ़ गए हैं। नई फसल आने में अभी डेढ़ महीने का समय बाकी है, इसे देखते हुए इसमें 10 रुपए प्रति किलो की और तेजी के आसार बन गए हैं। तिल्ली का उत्पादन इस बार 430-32 प्रतिशत रह जाने के बावजूद भी अफ्रीकन देशों के साथ-साथ ब्राज़ील सहित अन्य देशों की तिल्ली पूरे वर्ष पड़ते में आती रही, जिससे इसके भाव बढऩे की बजाय लगातार घटते चले गए। जो तिल्ली यहां सीजन में 105/6 प्रति किलो छतरपुर लाइन में बिकी थी, उसके भाव उक्त उत्पादक मंदिरों में 72/73 रुपए प्रति किलो तक पिछले महीने के शुरुआत में रह गए थे, उसके बाद आयातकों ने अफ्रीकन देशों से माल मंगाना बंद कर दिया गया तथा बिक्री के कोई टेंडर नहीं आए। अत: जो माल देसी-विदेशी स्टॉक में पड़े थे, वह कटते चले गए, क्योंकि सितंबर-अक्टूबर में नई फसल तिल्ली की आ जाएगी। अब स्थिति यह बन गई है कि विगत दो वर्षों से तिल्ली में कारोबारियों को भारी घाटा लगने से चालू सीजन में भी बिजाई, गत वर्ष की अपेक्षा और कम हो गई है। नई फसल से पहले देसी-विदेशी माल निकट में कोई और आने वाले नहीं हैं, इस वजह से घरेलू मंडियों में खपत वाले उद्योगों की तिल्ली में चौतरफा लिवाली बढ़ गई है, जिस कारण जो तिल्ली नीचे में 71/72 रुपए प्रति किलो मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ की मंडियों में बिकी थी, वर्तमान में 85/86 रुपए प्रति किलो हो गए हैं। इधर हलिंग का माल भी ग्वालियर में जो 85 रुपए बिका था, उसके भाव 93 रुपए बोलने लगे हैं तथा इन भाव में बिकवाल नहीं आ रहे हैं, जिससे इसमें 10 रुपए प्रति किलो की और तेजी के आसार बन गए हैं। नई फसल के लिए अधिक बरसात से खतरा पैदा हो गया है तथा कुछ क्षेत्रों में तिल्ली की फसल खराब होने की भी खबर आ रही है, इसी वजह से पुरानी तिल्ली को कारोबारी, जो स्टॉक में बची है, उसको बेचने से पीछे हट गए हैं। हम मानते हैं कि जो फसल बोई गई है, वह कुछ क्षेत्रों के अलावा बहुत बढिय़ा है, लेकिन औसतन बिजाई किसान करने से पीछे हट गए हैं, क्योंकि विदेशी मार्केट का पूरी तरह से दहशत है, इन सारी परिस्थितियों को देखते हुए अभी कारोबारियों को और लाभ मिलेगा।