भारत की दिग्गज कार कंपनियों टाटा, ह्यूंदे, महिन्द्रा और जेएसडब्ल्यू एमजी मोटर ने सरकार से प्रस्तावित नए कैफे नॉम्र्स में दी गई ...कार के वजन के आधार पर रियायत...को वापस लेने की मांग की है। कंपनियों का कहना है कि गाड़ी के वजन के आधार पर कैफे मानकों में प्रस्तावित इस रियायत का सिर्फ एक कंपनी को फायदा होगा। हालांकि इन कंपनियों ने सरकार को लिखे अपने पत्रों में किसी खिलाड़ी का नाम नहीं लिखा, लेकिन इंडस्ट्री डेटा और इंडस्ट्री एक्जेक्टिव्स साफ इशारा कर रहे हैं यह कोई और नहीं बल्कि मारुति सुजुकी है। भारत के मौजूदा कैफे (कॉर्पोरेट एवरेज फ्यूल एफीशिएंसी) मानकों में 3,500 किलोग्राम से कम वजन वाली सभी यात्री कारों पर एक जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड एमिशन की लिमिट लागू होती है। लेकिन नए नियम में इस औसत कार्बन डाई ऑक्साइड एमिशन उत्सर्जन को 113 ग्राम/किमी से घटाकर 91.7 ग्राम/किमी करने का प्रस्ताव किया गया है। इससे छोटी कारों के लिए लक्ष्य पूरा करना और मुश्किल हो जाएगा जबकि बड़ी एसयूवी के लिए यह तुलनात्मक रूप से आसान रहेगा। इससे कंपनियों पर अधिक ईवी बेचने का दबाव पड़ेगा। सरकार ने कैफे नॉम्र्स के लेटेस्ट ड्राफ्ट में 909 किलोग्राम या इससे कम वजन, चार मीटर से कम लंबाई और 1200 सीसी या उससे कम इंजन क्षमता वाली पेट्रोल कारों को कार्बन डाई ऑक्साइड एमिशन में छूट देने का प्रस्ताव किया है। सरकार का तर्क है कि इन छोटे मॉडलों में एमिशन एफीशिएंसी सुधारने की सीमित क्षमता होती है। इस प्रस्ताव से एसयूवी पर फोकस करने वाली कंपनियों और मारुति सुजुकी के बीच तीखा मतभेद पैदा हो गया है। क्योंकि देश की सबसे बड़ी कार कंपनी मारुति की कुल सेल्स में लगभग 16 परसेंट शेयर 909 किलोग्राम से कम वजन वाले मॉडलों की है। हालांकि प्रीमियम मॉडलों की ओर बायर का रुझान बढऩे से एंट्री, स्मॉल और कॉम्पेक्ट कारों की मांग धीरे-धीरे घट रही है। इंडस्ट्री एक्जेक्टिव्स के अनुसार 909 किलोग्राम की लिमिट का कोई तर्क नहीं है और इसे मनमाने रूप से तय किया गया है। यह 909 किलोग्राम की लिमिट किसाी भी इंटरनेशनल बेंचमार्क के अनुरूप नहीं है, और इससे सिर्फ एक कंपनी को लाभ मिलेगा। इंडस्ट्री का तर्क है कि अगर कोई रियायत देनी है तो वह कम से कम 1170 किग्रा तक की सभी कारों के लिए लागू हो। भारत में बिकने वाली ज्यादातर कारों का औसत वजन करीब इतना ही होता है। इसमें कहा गया है कि हल्का वाहन हमेशा सस्ता वाहन नहीं होता, क्योंकि कई 909 किग्रा से कम वजन वाली कारें भी 10 लाख तक बिकती हैं। महिंद्रा ने पावर मिनिस्ट्री को लिखे पत्र में कहा कि वजन या आकार के आधार पर किसी भी विशेष श्रेणी (स्पेशल कैटेगरी) की छूट देश की सुरक्षित और स्वच्छ कारों की दिशा में प्रगति को प्रभावित कर सकती है, और उद्योग में लेवल प्लेइंग फील्ड (समान प्रतिस्पर्धा) के माहौल को बिगाड़ सकती है। दूसरी ओर ह्यूंदे ने उद्योग मंत्रालय को चेतावनी दी कि इस तरह के अपवादों को इंटरनेशनल लेवल पर भारत की रिग्रेसिव पॉलिसी (पीछे जाने वाली नीति) के रूप में देखा जाएगा जबकि दुनिया •ाीरो एमिशन मानकों की ओर बढ़ रही है। कंपनी ने लिखा कि अचानक किए गए बदलाव उद्योग की स्थिरता और ग्राहक हितों को नुकसान पहुंचा सकते हैं, क्योंकि इंवेस्टमेंट और टेक्निकल स्ट्रेटेजी लॉन्ग टर्म के मानकों पर आधारित होती हैं। वहीं जेएसडब्ल्यू एमजी मोटर ने अपने पत्र में कहा कि 909 किलोग्राम से कम वजन वाली 95 परसेंट कारें सिर्फ एक ही कंपनी द्वारा बेची जाती हैं, इसलिए इस रियायत का लाभ एकतरफा रहेगा। लेकिन मारुति सुजुकी का दावा है कि छोटे वाहन कम ईंधन जलाते हैं और कम कार्ब डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन करते हैं। इसलिए इन्हें सपोर्ट करना और बचाए रखना भारत के उत्सर्जन लक्ष्यों और ईंधन बचत—दोनों के लिए फायदेमंद होगा। कंपनी का कहना है कि बायर एसयूवी की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे लाइट कारों की सेल्स घट रही है इसलिए विशेष रियायत से इन स्मॉल कारों को जीवित रखने में मदद मिल सकती है।