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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

13-12-2025

उधार पर कुछ भी ‘महंगा’ नहीं लगता !

  •  बहुत से लोग उन दिनों को भुलाते जा रहे हैं जब वे खरीदने की इच्छा इसलिए पूरी नहीं कर पाते थे क्योंकि उन्हें चीजे महंगी लगती थी व उनके बजट के बाहर थी। परिवारों में बजट के हिसाब से ही खरीददारी करने का नियम फॉलो किया जाता था व उधार लेकर खरीददारी करने की हिम्मत विशेष मौको पर ही दिखाई जाती थी। लोग अगर खर्च नहीं करेंगे तो इकोनोमी की ग्रोथ नहीं होगी, इकोनोमिक्स के इस फार्मूले को करीब 25-30 साल पहले हमारे देश में अपनाया गया जो एक बड़ा कदम था। तब से लेकर आजतक खर्च को लगातार बढ़ाते रहने का जो सिलसिला शुरू हुआ है उसे रोकने या धीरे करने की रिस्क लेना किसी अपराध करने जैसा माना जाने लगा है। कमाई करके खर्च किया जाए जैसा पहले होता था तो कोई आपत्ति नहीं करेगा लेकिन हमारे यहां के लीडरों ने उधार लेकर खर्च करने के सिस्टम पर ज्यादा फोकस किया। पास का फायदा देखने की नीयत वाले ज्यादातर राजनेता जो हमारे लिए पॉलिसियां बनाते है, दूर के नुकसान को जानते हुए भी अनदेखा करते गए और आज भी करते जा रहे हैं। आज जो स्थितियां बन गई है उनमें एक ओर ‘उधार’ लेने के लिए उकसाने व प्रमोट करने में सरकारों से लेकर कारोबारों तक कोई पीछे नहीं रहना चाहता और दूसरी ओर कई लोगों को पहले लिया उधार चुकाने के लिए नया उधार लेना पड़ रहा है। अखबारों में या ऑनलाइन एप्स पर खरीदने के ऑफर्स में प्रोडक्ट की कीमत से ज्यादा EMI को Highlight (दिखाना) किया जाता है और कई मामलों में तो प्रोडक्ट की कुल कीमत कितनी है यह बताया ही नहीं जाता। उधार लेकर खर्च करने वालों के लिए उधार देने वालों की कोई कमी नहीं है। के्रेडिट कार्ड, बैंक, इंश्योरेंस, फाइनेंस, गोल्ड, प्रोपर्टी, शेयर आदि यानि व्यक्ति के पास जो कुछ भी पूंजी और Asset है उनके दम पर उधार लिया जा सकता है जो ज्यादातर खर्च करने की तलब की संतुष्टि के काम आता है न कि किसी जरूरत को पूरा करने के। उधार लेने और देने की आसानी का सबसे बड़ा असर यह हुआ है कि आजकल कंज्यूमर को कोई चीज महंगी ही नहीं लगती भले ही वह उसकी क्षमता से बाहर हो उल्टा लोग सबसे ज्यादा महंगी चीजों को ही खरीदना चाहते हैं। करोड़ों की कारों से लेकर लाखों रुपये के इलेक्ट्रोनिक प्रोडक्ट व हजारों रुपये के ब्रांडेड कपड़े जैसी कई चीजे खरीदने के लिए अब लम्बी प्लानिंग करने वाले ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे। बाजारों में एक ऐसी व्यवस्था अपनी पॉवर से लोगों की सोच को जीतने लगी है जिसमें लोग अगर कुछ खरीदने के बारे में बात भी करते हैं तो उनके मोबाइल व टीवी पर उसी से जुड़े विज्ञापन दिखने लगते हैं। यानि लोगों की इच्छा को किसी भी हाल में पूरा करने के लिए उन्हें तैयार करने में हर कोई जुट जाता है। आजकल ज्यादातर दो तरह के खरीददार बाजारों में देखे जा रहे हैं। पहले वे जो High इनकम वाले हैं और महंगे प्रोडक्ट खरीदने से पहले नहीं सोचते। दूसरे वे है जो हमेशा किसी डील या डिस्काउंट की तलाश में रहते हैं ताकि वे भी महंगे प्रोडक्ट खरीद सके। दूसरी कैटेगरी वाले हमेशा किसी न किसी तरह का Adjustment करने में लगे रहते हैं क्योंकि उनकी खरीददारी उधार पर ज्यादा निर्भर रहती है। पिछले 10 सालों में हर प्रोडक्ट या सर्विस के दाम 40-50 प्रतिशत से लेकर दोगुना तक हो चुके हैं फिर भी शायद एक भी सेक्टर एसा नहीं है जिसका Consumption कम हुआ है। ‘उधार’ की संजीवनी कई कारोबारों के लिए वरदान बन गई है जिनके प्रोडक्ट फुल कीमत की बजाए उधार पर ही ज्यादा बिकने लगे हैं। मोबाइल फोन, कारे व प्रोपर्टी इसके उदाहरण है जिनकी सेल्स के नम्बर के साथ-साथ उधार में घिरे लोग की संख्या भी बढ़ती जाती है। क्रेडिट कार्ड का उधार हो, गोल्ड लोन हो या पर्सनल लोन, हर तरह का उधार लेने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और शायद इन्ही के दम पर भारत की इकोनोमी के लगातार तेजी से बढ़ते रहने के खूब दावे हो रहे हैं। वैसे तो दुनिया के कई देश उधार के जाल में फंसे हुए हैं पर इकोनोमिक्स के नियम व इतिहास बताता है कि उधार अंत में मुसीबत का सबसे बड़ा कारण बन जाता है। हमारे देश के कई छोटे-बड़े और मशहूर कारोबार उधार की चोट से प्रभावित हो चुके हैं। महंगे को महंगा न मानने व समझने के माहौल में भले ही आज कुछ भी खरीदना महंगा न लगे पर उस खरीददारी के बोझ को सालों तक साथ लेकर चलने की व्यवस्था जिस तेजी से फैल रही है वह टिकाऊ व मजबूत इकोनोमी के लिए कितनी सही है या गलत, यह आज नहीं तो कल चर्चाओं का पहलू बना दिखलायी देगा।

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उधार पर कुछ भी ‘महंगा’ नहीं लगता !

 बहुत से लोग उन दिनों को भुलाते जा रहे हैं जब वे खरीदने की इच्छा इसलिए पूरी नहीं कर पाते थे क्योंकि उन्हें चीजे महंगी लगती थी व उनके बजट के बाहर थी। परिवारों में बजट के हिसाब से ही खरीददारी करने का नियम फॉलो किया जाता था व उधार लेकर खरीददारी करने की हिम्मत विशेष मौको पर ही दिखाई जाती थी। लोग अगर खर्च नहीं करेंगे तो इकोनोमी की ग्रोथ नहीं होगी, इकोनोमिक्स के इस फार्मूले को करीब 25-30 साल पहले हमारे देश में अपनाया गया जो एक बड़ा कदम था। तब से लेकर आजतक खर्च को लगातार बढ़ाते रहने का जो सिलसिला शुरू हुआ है उसे रोकने या धीरे करने की रिस्क लेना किसी अपराध करने जैसा माना जाने लगा है। कमाई करके खर्च किया जाए जैसा पहले होता था तो कोई आपत्ति नहीं करेगा लेकिन हमारे यहां के लीडरों ने उधार लेकर खर्च करने के सिस्टम पर ज्यादा फोकस किया। पास का फायदा देखने की नीयत वाले ज्यादातर राजनेता जो हमारे लिए पॉलिसियां बनाते है, दूर के नुकसान को जानते हुए भी अनदेखा करते गए और आज भी करते जा रहे हैं। आज जो स्थितियां बन गई है उनमें एक ओर ‘उधार’ लेने के लिए उकसाने व प्रमोट करने में सरकारों से लेकर कारोबारों तक कोई पीछे नहीं रहना चाहता और दूसरी ओर कई लोगों को पहले लिया उधार चुकाने के लिए नया उधार लेना पड़ रहा है। अखबारों में या ऑनलाइन एप्स पर खरीदने के ऑफर्स में प्रोडक्ट की कीमत से ज्यादा EMI को Highlight (दिखाना) किया जाता है और कई मामलों में तो प्रोडक्ट की कुल कीमत कितनी है यह बताया ही नहीं जाता। उधार लेकर खर्च करने वालों के लिए उधार देने वालों की कोई कमी नहीं है। के्रेडिट कार्ड, बैंक, इंश्योरेंस, फाइनेंस, गोल्ड, प्रोपर्टी, शेयर आदि यानि व्यक्ति के पास जो कुछ भी पूंजी और Asset है उनके दम पर उधार लिया जा सकता है जो ज्यादातर खर्च करने की तलब की संतुष्टि के काम आता है न कि किसी जरूरत को पूरा करने के। उधार लेने और देने की आसानी का सबसे बड़ा असर यह हुआ है कि आजकल कंज्यूमर को कोई चीज महंगी ही नहीं लगती भले ही वह उसकी क्षमता से बाहर हो उल्टा लोग सबसे ज्यादा महंगी चीजों को ही खरीदना चाहते हैं। करोड़ों की कारों से लेकर लाखों रुपये के इलेक्ट्रोनिक प्रोडक्ट व हजारों रुपये के ब्रांडेड कपड़े जैसी कई चीजे खरीदने के लिए अब लम्बी प्लानिंग करने वाले ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे। बाजारों में एक ऐसी व्यवस्था अपनी पॉवर से लोगों की सोच को जीतने लगी है जिसमें लोग अगर कुछ खरीदने के बारे में बात भी करते हैं तो उनके मोबाइल व टीवी पर उसी से जुड़े विज्ञापन दिखने लगते हैं। यानि लोगों की इच्छा को किसी भी हाल में पूरा करने के लिए उन्हें तैयार करने में हर कोई जुट जाता है। आजकल ज्यादातर दो तरह के खरीददार बाजारों में देखे जा रहे हैं। पहले वे जो High इनकम वाले हैं और महंगे प्रोडक्ट खरीदने से पहले नहीं सोचते। दूसरे वे है जो हमेशा किसी डील या डिस्काउंट की तलाश में रहते हैं ताकि वे भी महंगे प्रोडक्ट खरीद सके। दूसरी कैटेगरी वाले हमेशा किसी न किसी तरह का Adjustment करने में लगे रहते हैं क्योंकि उनकी खरीददारी उधार पर ज्यादा निर्भर रहती है। पिछले 10 सालों में हर प्रोडक्ट या सर्विस के दाम 40-50 प्रतिशत से लेकर दोगुना तक हो चुके हैं फिर भी शायद एक भी सेक्टर एसा नहीं है जिसका Consumption कम हुआ है। ‘उधार’ की संजीवनी कई कारोबारों के लिए वरदान बन गई है जिनके प्रोडक्ट फुल कीमत की बजाए उधार पर ही ज्यादा बिकने लगे हैं। मोबाइल फोन, कारे व प्रोपर्टी इसके उदाहरण है जिनकी सेल्स के नम्बर के साथ-साथ उधार में घिरे लोग की संख्या भी बढ़ती जाती है। क्रेडिट कार्ड का उधार हो, गोल्ड लोन हो या पर्सनल लोन, हर तरह का उधार लेने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और शायद इन्ही के दम पर भारत की इकोनोमी के लगातार तेजी से बढ़ते रहने के खूब दावे हो रहे हैं। वैसे तो दुनिया के कई देश उधार के जाल में फंसे हुए हैं पर इकोनोमिक्स के नियम व इतिहास बताता है कि उधार अंत में मुसीबत का सबसे बड़ा कारण बन जाता है। हमारे देश के कई छोटे-बड़े और मशहूर कारोबार उधार की चोट से प्रभावित हो चुके हैं। महंगे को महंगा न मानने व समझने के माहौल में भले ही आज कुछ भी खरीदना महंगा न लगे पर उस खरीददारी के बोझ को सालों तक साथ लेकर चलने की व्यवस्था जिस तेजी से फैल रही है वह टिकाऊ व मजबूत इकोनोमी के लिए कितनी सही है या गलत, यह आज नहीं तो कल चर्चाओं का पहलू बना दिखलायी देगा।


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