एक आम बोलचाल का शब्द बन गया है...भाषण मत दो आसाराम की तरह। लेकिन भारत में भाषण देना सबको पसंद है एक्शन बहुत कम को। भारत भाषण का देश और जापान एक्शन का। एक ताजा मामला सामने आया है। जापान के एग्रीकल्चर मिनिस्टर ने किसी कार्यक्रम में हल्के अंदाज में ऐसे ही कह दिया कि ...उन्हें चावल खरीदने नहीं पड़ते...सपोर्टर गिफ्ट में दे देते हैं। बस एथिक्स और नेशनल प्राइड के देश जापान में आ गया तूफान। नतीजा...मंत्री ताकु एतो को रिजायन करना पड़ गया क्योंकि उनके इस हल्के-फुल्के कमेंट से जनता भडक़ उठी थी। जापान में दरअसल खराब मौसम और चावल किसानों को संरक्षण देने वाली पॉलिसी के कारण उत्पादन घट रहा है जिससे चावल की कीमतें बढ़ रही हैं। वैसे भी प्रधान मंत्री शिगेरू इशिबा की सरकार ऊपरी सदन के चुनाव और अमेरिका के साथ चल रही टैरिफ वार्ता से पहले कमजोर अप्रूवल रेटिंग से जूझ रही है। क्योटो न्यूज के एक सर्वे के अनुसार इशिबा के मंत्रिमंडल की अप्रूवल रेटिंग गिरकर 27.4 परसेंट के ऑलटाइम लो लेवल पर आ गई है। देश के मतदाता चावल की महंगाई को रोकने में सरकार की नाकामी और बढ़ती मुद्रास्फीति से तेजी से नाराज है। देश भर के लगभग 1,000 सुपरमार्केट में चावल की कीमतें 11 मई को समाप्त सप्ताह में 5 किलोग्राम चावल के बैग की कीमत 54 येन बढक़र 4,268 येन ($29.63 डॉलर) हो गईं। केओ विश्वविद्यालय में पॉलिसी मैनेजमेंट की प्रोफेसर सयुरी शिराई ने कहा कि चावल की सप्लाई दबाव में है क्योंकि चावल के खेत छोटे हैं और उनमें भी बुजुर्ग काम करते हैं। वैसे भी जापानियों को जापानी चावल ही चाहिए। जापान की चावल इकोनॉमी ग्लोबल ट्रेड से कटी हुई है और किसानों को संरक्षण देने के लिए सरकार इंपोर्ट पर भारी टैक्स लगाती है। फिर टूरिस्ट की रेलमपेल बढऩे से जापानी चावल की डिमांड आसमान पर है। डेटा हब ट्रिज के अनुसार जापान अपनी जरूरत का लगभग 60 परसेंट खाद्यान्न इंपोर्ट करता है। देश में खाद्य आत्मनिर्भरता दर भी 38 परसेंट है जिसे सरकार का लक्ष्य वित्तीय वर्ष 2030 तक 45 परसेंट तक पहुंचाने का है।