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13-05-2025

भारत के लिए चुनौती और अवसर दोनो पेश करता है अमेरिकी-चीन शुल्क करार : निर्यातक

  •  अमेरिका और चीन के बीच अधिकतर शुल्क वृद्धि को 90 दिन तक निलंबित करने का समझौता भारत के लिए चुनौतियां व अवसर दोनों पेश करता है। भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (फियो) ने यह बात कही है। अमेरिका और चीन ने हाल ही में एक-दूसरे पर लगाए भारी शुल्क में से अधिकतर पर 90 दिन की रोक लगाने को लेकर दोनों देशों के बीच सहमति बनने की जानकारी दी है। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जेमिसन ग्रीर ने कहा कि अमेरिका ने चीनी वस्तुओं पर 145 प्रतिशत शुल्क दर का 115 प्रतिशत घटाकर 30 प्रतिशत करने पर, जबकि चीन ने अमेरिकी वस्तुओं पर अपनी दर को भी इतना की कम कर 10 प्रतिशत करने पर सहमति व्यक्त की है। फियो के अध्यक्ष एस. सी. रल्हन ने कहा कि यह घोषणा दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार तनाव में आई कमी को दर्शाती है। उन्होंने कहा, ‘‘ हालांकि, इस तरह के घटनाक्रम वैश्विक व्यापार स्थिरता के लिए मोटे तौर पर सकारात्मक हैं, हालांकि ये भारत के लिए चुनौतियां तथा अवसर दोनों प्रस्तुत करते हैं।’’ रल्हन ने कहा कि शुल्क में कमी से इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और रसायन जैसे उच्च मूल्य वाले क्षेत्रों में अमेरिका-चीन द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि होने की संभावना है। उन्होंने कहा कि इससे दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और लातिनी अमेरिका जैसे बाजारों में भारतीय निर्यातकों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है, जहां भारत ने हाल ही में अमेरिका-चीन व्यापार बाधाओं का लाभ उठाते हुए अपनी पैठ बनाई है। हालांकि, रल्हन ने कहा कि भारत इस बदलाव का लाभ उन क्षेत्रों में निर्यात को मजबूत करने के लिए उठा सकता है जो अमेरिका-चीन व्यापार से अपेक्षाकृत अछूते हैं जैसे औषधि एपीआई, रत्न व आभूषण, इंजीनियरिंग से जुड़ा सामान, कार्बनिक रसायन और आईटी-सक्षम सेवाएं। उन्होंने कहा, ‘‘ भारत को अपनी तरजीही व्यापार पहुंच को सुरक्षित और विस्तारित करने के लिए अमेरिका के साथ सक्रिय रूप से जुडऩा चाहिए। एक विश्वसनीय वैकल्पिक स्रोत गंतव्य के रूप में अपनी भूमिका को बढ़ाना चाहिए।’’ एक अन्य निर्यातक ने कहा कि भारत सरकार को चीन से भारत में होने वाले आयात पर कड़ी नजर रखनी चाहिए। अमेरिका और चीन, भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं। चीन 2013-14 से 2017-18 तक और 2020-21 में भी भारत का शीर्ष व्यापारिक साझेदार रहा है। इसके बाद से अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा।भारत के कुल वस्तु निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी करीब 18 प्रतिशत, आयात में 6.22 प्रतिशत और द्विपक्षीय व्यापार में 10.73 प्रतिशत है। दूसरी ओर, निर्यात में चीन की हिस्सेदारी करीब चार प्रतिशत और आयात में 15 प्रतिशत है। वित्त वर्ष 2024-25 में, अमेरिका को भारत का निर्यात 2023-24 के 77.52 अरब अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 11.6 प्रतिशत बढक़र 86.51 अरब डॉलर हो गया। 2024-25 में आयात 7.44 प्रतिशत बढक़र 45.33 अरब डॉलर रहा जबकि 2023-24 में यह 42.2 अरब डॉलर था। अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष 2024-25 में बढक़र 41.18 अरब डॉलर हो गया। चीन को भारत का निर्यात 2024-25 में सालाना आधार पर 14.5 प्रतिशत घटकर 14.25 अरब डॉलर रह गया। आयात 11.52 प्रतिशत बढक़र 113.45 अरब डॉलर हो गया, जो 2023-24 में 101.73 अरब डॉलर था। व्यापार घाटा 2024-25 में बढक़र 99.2 अरब डॉलर हो गया।

     
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भारत के लिए चुनौती और अवसर दोनो पेश करता है अमेरिकी-चीन शुल्क करार : निर्यातक

 अमेरिका और चीन के बीच अधिकतर शुल्क वृद्धि को 90 दिन तक निलंबित करने का समझौता भारत के लिए चुनौतियां व अवसर दोनों पेश करता है। भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (फियो) ने यह बात कही है। अमेरिका और चीन ने हाल ही में एक-दूसरे पर लगाए भारी शुल्क में से अधिकतर पर 90 दिन की रोक लगाने को लेकर दोनों देशों के बीच सहमति बनने की जानकारी दी है। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जेमिसन ग्रीर ने कहा कि अमेरिका ने चीनी वस्तुओं पर 145 प्रतिशत शुल्क दर का 115 प्रतिशत घटाकर 30 प्रतिशत करने पर, जबकि चीन ने अमेरिकी वस्तुओं पर अपनी दर को भी इतना की कम कर 10 प्रतिशत करने पर सहमति व्यक्त की है। फियो के अध्यक्ष एस. सी. रल्हन ने कहा कि यह घोषणा दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार तनाव में आई कमी को दर्शाती है। उन्होंने कहा, ‘‘ हालांकि, इस तरह के घटनाक्रम वैश्विक व्यापार स्थिरता के लिए मोटे तौर पर सकारात्मक हैं, हालांकि ये भारत के लिए चुनौतियां तथा अवसर दोनों प्रस्तुत करते हैं।’’ रल्हन ने कहा कि शुल्क में कमी से इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और रसायन जैसे उच्च मूल्य वाले क्षेत्रों में अमेरिका-चीन द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि होने की संभावना है। उन्होंने कहा कि इससे दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और लातिनी अमेरिका जैसे बाजारों में भारतीय निर्यातकों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है, जहां भारत ने हाल ही में अमेरिका-चीन व्यापार बाधाओं का लाभ उठाते हुए अपनी पैठ बनाई है। हालांकि, रल्हन ने कहा कि भारत इस बदलाव का लाभ उन क्षेत्रों में निर्यात को मजबूत करने के लिए उठा सकता है जो अमेरिका-चीन व्यापार से अपेक्षाकृत अछूते हैं जैसे औषधि एपीआई, रत्न व आभूषण, इंजीनियरिंग से जुड़ा सामान, कार्बनिक रसायन और आईटी-सक्षम सेवाएं। उन्होंने कहा, ‘‘ भारत को अपनी तरजीही व्यापार पहुंच को सुरक्षित और विस्तारित करने के लिए अमेरिका के साथ सक्रिय रूप से जुडऩा चाहिए। एक विश्वसनीय वैकल्पिक स्रोत गंतव्य के रूप में अपनी भूमिका को बढ़ाना चाहिए।’’ एक अन्य निर्यातक ने कहा कि भारत सरकार को चीन से भारत में होने वाले आयात पर कड़ी नजर रखनी चाहिए। अमेरिका और चीन, भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं। चीन 2013-14 से 2017-18 तक और 2020-21 में भी भारत का शीर्ष व्यापारिक साझेदार रहा है। इसके बाद से अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा।भारत के कुल वस्तु निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी करीब 18 प्रतिशत, आयात में 6.22 प्रतिशत और द्विपक्षीय व्यापार में 10.73 प्रतिशत है। दूसरी ओर, निर्यात में चीन की हिस्सेदारी करीब चार प्रतिशत और आयात में 15 प्रतिशत है। वित्त वर्ष 2024-25 में, अमेरिका को भारत का निर्यात 2023-24 के 77.52 अरब अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 11.6 प्रतिशत बढक़र 86.51 अरब डॉलर हो गया। 2024-25 में आयात 7.44 प्रतिशत बढक़र 45.33 अरब डॉलर रहा जबकि 2023-24 में यह 42.2 अरब डॉलर था। अमेरिका के साथ व्यापार अधिशेष 2024-25 में बढक़र 41.18 अरब डॉलर हो गया। चीन को भारत का निर्यात 2024-25 में सालाना आधार पर 14.5 प्रतिशत घटकर 14.25 अरब डॉलर रह गया। आयात 11.52 प्रतिशत बढक़र 113.45 अरब डॉलर हो गया, जो 2023-24 में 101.73 अरब डॉलर था। व्यापार घाटा 2024-25 में बढक़र 99.2 अरब डॉलर हो गया।

 

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