पिछली मई में दिल्ली पानी के लिए तड़प रही थी। इस मई में ऐसी झमाझम हुई कि यमुना सडक़ों पर आ गई। नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) के चेयरमैन शाजी के.वी ने कहा कि रूरल इकोनॉमी और फाइनेंशियल सिस्टम पर क्लाइमेट चेंज के असर को कम करने के लिए 1 हजार करोड़ रुपये का फंड बनाया जाएगा। नाबार्ड इससे पहले 750 करोड़ रुपये का नबवेंचर्स फंड1 लॉन्च कर चुका है जिससे उन कंपनियों को बढ़ावा दिया जा रहा है जो रूरल इकोनॉमी पर क्लाइमेट चेंज के असर को कम करती हैं। इंटरनेशनल सिस्टम में एक शब्द है फोर वेदर पेरिल्स...यानी चार मौसमी खतरों में बाढ़, चक्रवात, बर्फबारी और तूफान को शामिल किया जाता है। इन फोर वेदर पेरिल के कारण दुनिया को हर साल 200 बिलियन डॉलर करीब 17 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है। इनके कारण अमेरिका के जीडीपी को 0.4 परसेंट (97 बिलियन डॉलर) और फिलीपिन्स के जीडीपी को 3 परसेंट यानी 12 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है। एशियन डवलपमेंट बैंक ने कहा है कि डवलपिंग एशिया-पैसिफिक में 2070 तक क्लाइमेंट चेंज के कारण जीडीपी 17 परसेंट तक घट सकता है। जर्मनी के पोट्सडैम इंस्टीट्यूट फोर क्लाइमेट इंपैक्ट रिसर्च का मानना है कि 2050 तक क्लाइमेंट चेंज के कारण ग्लोबल जीडीपी 20 परसेंट घट जाएगा जो कि करीब 38 लाख करोड़ डॉलर होता है। साथ में लगी टेबल 1 में केवल फोर वेदर पेरिल्स यानी चार मौसमी खतरों से होने वाले आर्थिक नुकसान को ही शामिल किया गया है। यदि इसमें लू और अन्य को भी शामिल कर लिया जाए तो नुकसान बहुत बढ़ जाएगा। आरबीआई ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि अत्यधिक गर्मी और अत्यधिक नमी के कारण काम के घंटों पर बुरा असर पड़ता है जिससे 2030 तक भारत जीडीपी पर 4.5 परसेंट तक का असर पड़ सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि हीट स्ट्रैस (लू आदि) के कारण दुनियाभर में 2030 तक 8 करोड़ नौकरियां खतरे में पड़ जाएंगी जिनमें से 3.4 करोड़ अकेले भारत में होंगी। आरबीआई ने कहा है कि सबसे ज्यादा चिंता क्रॉप साइकल बदल जाने की है जिससे फसल उत्पादन पर असर पड़ेगा और महंगाई बढ़ जाने का खतरा है। टेबल 2 के अनुसार बिजली देश में कार्बन एमिशन का सबसे बड़ा जरिया है और इससे 10 लाख डॉलर का उत्पादन करने में 7264 टन कार्बन डाई ऑक्साइड पैदा होती है। इस लिहाज से दूसरे पायदान पर मेटल प्रॉडक्ट्स हैं और तीसरे पर वॉटर ट्रांसपोर्ट। लैंड ट्रांसपोर्ट यानी यानी सडक़ पर चलने वाली गाडिय़ां और रेल आदि का कार्बन एमिशन 379 टन ही है।

