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26-05-2025

अब डब्ल्यूएचओ करेगी वेटलॉस दवाओं का प्रमोशन

  •  कोविड के दौरान चीन के सपोर्ट में आने के बाद डब्ल्यूएचओ को दुनियाभर के देशों में कड़ी आलोचना सहनी पड़ी थी। अमेरिकी प्रेसिडेंट डॉनाल्ड ट्रंप ने तो डब्ल्यूएचओ की फंडिंग ही बंद कर दी है। लेकिन अब डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि मोटापे के ईलाज के लिए वेटलॉस दवाओं की सिफारिश की जाएगी। डब्ल्यूएचओ का दावा है दुनिया में एक अरब से ज्यादा लोग मोटापे से परेशान हैं और इनमें से लगभग 70 परसेंट लो एंड मीडियम इनकम वाले देशों में रहते हैं। खासकर पश्चिमी देशों में नोवो नोर्डिस्क की ओ•ोम्पिक और वेगोवी के साथ ही एली लिली की जेपबाउंड प्रमुख वेटलॉस दवाएं हैं। इन दवाओं को जीएलपी-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट के रूप में जाना जाता है, जो एक ऐसे हार्मोन की नकल करती हैं जो पाचन को धीमा कर देता है। जिससे लंबे समय तक पेट भरा हुआ महसूस होता है और बार-बार खाने की तलब कम लगती है। क्लिनिकल ट्रायल में यह बात सामने आई है कि जिन लोगों ने इन दवाओं को लिया उन्हें 15 से 20 परसेंट वजन घटाने में मदद मिली है। इन दवाओं की शुरुआत अमेरिका और जर्मनी और ब्रिटेन जैसे हाई इनकम देशों में हुई थी और अन्य उच्च आय वाले देशों में शुरू की गई हैं। इन दवाओं की शुरुआत वैसे तो डायबिटीज रोगियों के लिए हुई थी लेकिन साइडइफेक्ट के रूप में वजन घट जाने के कारण अब कंपनियां इन्हें वेटलॉस दवाओं के रूप में बेच रही हैं। इन दवाओं का अमेरिका में कई बिलियन डॉलर का मार्केट तैयार हो चुका है। रिपोर्ट्स कहती हैं कि एक महीने की खुराक करीब 1 हजार डॉलर की पड़ती है और लगातार कई महीने तक इन दवाओं को लेना पड़ता है। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि मोटापे के इलाज के रूप में डब्ल्यूएचओ अगस्त में इन दवाओं को लेकर एक सिफारिश जारी करेगा।  डब्ल्यूएचओ के एक्सपर्ट्स इन जीएलपी-1 दवाओं को असेंशियल मेडिसिन यानी जरूरी दवाओं की लिस्ट में शामिल करने पर भी विचार कर रहे हैं। जरूरी दवाओं की लिस्ट वह होती है जो सभी हॉस्पिटल और नर्सिंग होम में हमेशा मौजूद रहती है। डब्ल्यूएचओ इस बात पर भी विचार कर रहा है क्या गरीब देशों में दवाओं को सहायता के रूप में उपलब्ध कराया जा सकता है। डब्ल्यूएचओ ने वर्ष 2002 में एचआईवी की दवाओं को जरूरी दवाओं की लिस्ट में शामिल किया था। वर्ष 2023 में भी डब्ल्यूएचओ के पास इसी तरह का प्रस्ताव आया था लेकिन तब संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने कहा था कि उसे लॉन्ग टर्म फायदों के और ज्यादा सबूत चाहिएं। रिपोर्ट कहती हैं कि ओ•ोम्पिक और वेगोवी दवाओं के एपीआई (बेसिक फॉर्मूला) के पेटेंट वर्ष 2026 में खत्म हो जाएंगे। ऐसे में कई कंपनियां इन दवाओं के सस्ते जेनेरिक वर्जन लॉन्च करने के प्लान पर काम कर रही हैं।

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अब डब्ल्यूएचओ करेगी वेटलॉस दवाओं का प्रमोशन

 कोविड के दौरान चीन के सपोर्ट में आने के बाद डब्ल्यूएचओ को दुनियाभर के देशों में कड़ी आलोचना सहनी पड़ी थी। अमेरिकी प्रेसिडेंट डॉनाल्ड ट्रंप ने तो डब्ल्यूएचओ की फंडिंग ही बंद कर दी है। लेकिन अब डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि मोटापे के ईलाज के लिए वेटलॉस दवाओं की सिफारिश की जाएगी। डब्ल्यूएचओ का दावा है दुनिया में एक अरब से ज्यादा लोग मोटापे से परेशान हैं और इनमें से लगभग 70 परसेंट लो एंड मीडियम इनकम वाले देशों में रहते हैं। खासकर पश्चिमी देशों में नोवो नोर्डिस्क की ओ•ोम्पिक और वेगोवी के साथ ही एली लिली की जेपबाउंड प्रमुख वेटलॉस दवाएं हैं। इन दवाओं को जीएलपी-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट के रूप में जाना जाता है, जो एक ऐसे हार्मोन की नकल करती हैं जो पाचन को धीमा कर देता है। जिससे लंबे समय तक पेट भरा हुआ महसूस होता है और बार-बार खाने की तलब कम लगती है। क्लिनिकल ट्रायल में यह बात सामने आई है कि जिन लोगों ने इन दवाओं को लिया उन्हें 15 से 20 परसेंट वजन घटाने में मदद मिली है। इन दवाओं की शुरुआत अमेरिका और जर्मनी और ब्रिटेन जैसे हाई इनकम देशों में हुई थी और अन्य उच्च आय वाले देशों में शुरू की गई हैं। इन दवाओं की शुरुआत वैसे तो डायबिटीज रोगियों के लिए हुई थी लेकिन साइडइफेक्ट के रूप में वजन घट जाने के कारण अब कंपनियां इन्हें वेटलॉस दवाओं के रूप में बेच रही हैं। इन दवाओं का अमेरिका में कई बिलियन डॉलर का मार्केट तैयार हो चुका है। रिपोर्ट्स कहती हैं कि एक महीने की खुराक करीब 1 हजार डॉलर की पड़ती है और लगातार कई महीने तक इन दवाओं को लेना पड़ता है। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि मोटापे के इलाज के रूप में डब्ल्यूएचओ अगस्त में इन दवाओं को लेकर एक सिफारिश जारी करेगा।  डब्ल्यूएचओ के एक्सपर्ट्स इन जीएलपी-1 दवाओं को असेंशियल मेडिसिन यानी जरूरी दवाओं की लिस्ट में शामिल करने पर भी विचार कर रहे हैं। जरूरी दवाओं की लिस्ट वह होती है जो सभी हॉस्पिटल और नर्सिंग होम में हमेशा मौजूद रहती है। डब्ल्यूएचओ इस बात पर भी विचार कर रहा है क्या गरीब देशों में दवाओं को सहायता के रूप में उपलब्ध कराया जा सकता है। डब्ल्यूएचओ ने वर्ष 2002 में एचआईवी की दवाओं को जरूरी दवाओं की लिस्ट में शामिल किया था। वर्ष 2023 में भी डब्ल्यूएचओ के पास इसी तरह का प्रस्ताव आया था लेकिन तब संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने कहा था कि उसे लॉन्ग टर्म फायदों के और ज्यादा सबूत चाहिएं। रिपोर्ट कहती हैं कि ओ•ोम्पिक और वेगोवी दवाओं के एपीआई (बेसिक फॉर्मूला) के पेटेंट वर्ष 2026 में खत्म हो जाएंगे। ऐसे में कई कंपनियां इन दवाओं के सस्ते जेनेरिक वर्जन लॉन्च करने के प्लान पर काम कर रही हैं।


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