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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

26-07-2025

क्या ‘कीमतों’ और ‘इकोनोमी’ को कंट्रोल किया जा सकता?

  •  आमतौर पर कारोबारों में, इंवेस्टमेंट की गणित समझने में, सरकारों द्वारा अपने काम का लेखा-जोखा बताने में और इनकम व खर्च के मामलों में भी इतिहास (Past) से तुलना करने का चलन रहता है। यही नहीं इतिहास को ही आधार बनाकर फ्यूचर का अंदाजा लगाया जाता है जिसके भरोसे छोटे-बड़े हर तरह के निर्णय लिए जाते हैं। क्या फ्यूचर को समझने की पॉवर इंसान के अलावा किसी और के पास है या हो सकती है इसपर आप विचार जरूर करें क्योंकि इन दिनों AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) द्वारा पूरी इकोनोमी को कंट्रोल करने की बातें चल रही है। आसान शब्दों में इस भ्रम को सच्चाई बताकर लोगों को यकीन दिलाने की कोशिशें हो रही है जिसमें यह दावा किया जा रहा है कि AI ‘कीमतों’ को तय करने के फार्मूले और फ्री मार्केट की गणित को बदलने की क्षमता रखती है। इसका मतलब यह भी हुआ कि अब बाजार में कीमतें डिमांड और सप्लाई से नहीं बल्कि AI की पॉवर से तय की जा सकती है, ऐसा दावा AI पर काम कर रहे कई एक्सपर्ट करने लगे हैं। यह दावा कितना सही साबित होगा यह तो समय बता ही देगा पर इस दावे से लोगों को डराने का इंटेलिजेंट काम करने वालों को ‘कीमतों’ के बिहेवियर पर ध्यान देना चाहिए जो सॉफ्टवेयर में कोडिंग से नहीं बल्कि डिमांड, सप्लाई, प्रॉफिट, घाटा, इंफोर्मेशन, इन्नोवेशन, कमी, स्टॉक, प्रोडक्शन, कॉम्पीटिशन जैसे कई कारणों से तय होती है और इन सभी का अंदाजा लगाने के लिए कही न कही फ्यूचर की ओर ध्यान दिया जाता है। AI पुराने डेटा पर अपना काम करती है जबकि कीमतें तय करने जैसे तेजी से बदलने वाले इकोनोमिक निर्णय फ्यूचर को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं। कीमतों के बारे में यह याद करना भी दिलचस्प है कि वह पहले से उपलब्ध कोई जानकारी या नम्बर नहीं है जिसे सॉफ्टवेयर में डालकर उसका निर्णय स्वीकार किया जा सके बल्कि कीमतें बाजार व्यवस्था से तय होती है जिन्हें बाजारों की चाल से कभी अलग नहीं किया जा सकता। कीमतों का न तो पहले अंदाजा लगाया जा सकता है और न ही उनके घटने-बढऩे का ट्रेंड सही-सही पता चल सकता है।

    वास्तव में कीमतों को तय करने में कारोबारों व कारोबारियों का प्रमुख रोल है जो अपने विजन से फ्यूचर में डवलप होने वाली डिमांड और उसे पूरा करने की क्षमता का अनुमान लगाते हैं और अपनी इस स्किल के भरोसे फ्यूचर पर दांव खेल जाते हैं लेकिन AI के मॉडल कारोबारों की इस व्यवस्था को पूरी तरह अलग रखकर काम करते हैं। अगर इंसान का दिमाग इकोनोमिक निर्णय न करें तो यह कौन बताएगा कि सीमित बजट में हॉस्पिटल बनाने से ज्यादा वेल्यू मिलेगी या कोई फैक्ट्री लगाने से। ऐसे निर्णय सिर्फ नफा-नुकसान के लिए नहीं लिये जाते बल्कि इनके लिए आगे की सोच का भी बड़ा रोल होता है जो ्रढ्ढ जैसी टेक्नोलॉजी के बस की बात नहीं है। चाहे कोई भी इकोनोमिक निर्णय हो, पर्सनल, कारोबारी या सरकारी, वह आने वाले दिनों को ध्यान में रखकर लिया जाता है जबकि AI के पास पुराने डेटा को आधार बनाकर निर्णय बताने का ही एकमात्र रास्ता है। AI ट्रेंड बता सकती है पर आगे होने वाले इन्नोवेशन और लोगों की बदलती आदतें, इच्छाएं व जरूरतों का अंदाजा नहीं लगा सकती। जो कभी सोचा ही न गया हो उसका पता लगाने की काबिलियत वैसे तो किसी के पास नहीं है पर Common Sense के हिसाब से अभी तक यह कर पाने की थोड़ी बहुत काबिलियत AI जैसी टेक्नोलॉजी से ज्यादा इंसान के पास ही है। फ्यूचर का अनुमान लगाने के लिए आजकल इतिहास से ज्यादा महत्वपूर्ण फ्री मार्केट हो गया है जहां स्थितियां तेजी से बार-बार बदलती रहती है और ऐसे में अपनी स्ट्रेटेजी बदलकर ‘कीमतों’ को अपने फायदे के लिए तय करने का काम टेक्नोलॉजी शायद ही कभी कर पाए पर अगर ऐसा हुआ और ऐसा होना स्वीकार कर लिया गया तो इकोनोमिक ग्रोथ को चलाने वाला इंजन कमियों और संभावनाओं के दम पर आगे बढऩे की बजाए लोगों की उम्मीदों को दबाते हुए एक सीमित दायरे तक सिमट कर रह जाएगा। इसके अलावा भी कई ऐसी स्थितियां बन सकती है जिनका अंदाजा AI तो क्या इंसान के दिमाग के साथ-साथ कोई भी आज नहीं लगा सकता इसलिए AI द्वारा फ्री मार्केट व इकोनोमी को कंट्रोल करने की पॉवर हासिल करके फ्यूचर को काबू में करने जैसे दावों में दम कम ही लगता है।

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क्या ‘कीमतों’ और ‘इकोनोमी’ को कंट्रोल किया जा सकता?

 आमतौर पर कारोबारों में, इंवेस्टमेंट की गणित समझने में, सरकारों द्वारा अपने काम का लेखा-जोखा बताने में और इनकम व खर्च के मामलों में भी इतिहास (Past) से तुलना करने का चलन रहता है। यही नहीं इतिहास को ही आधार बनाकर फ्यूचर का अंदाजा लगाया जाता है जिसके भरोसे छोटे-बड़े हर तरह के निर्णय लिए जाते हैं। क्या फ्यूचर को समझने की पॉवर इंसान के अलावा किसी और के पास है या हो सकती है इसपर आप विचार जरूर करें क्योंकि इन दिनों AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) द्वारा पूरी इकोनोमी को कंट्रोल करने की बातें चल रही है। आसान शब्दों में इस भ्रम को सच्चाई बताकर लोगों को यकीन दिलाने की कोशिशें हो रही है जिसमें यह दावा किया जा रहा है कि AI ‘कीमतों’ को तय करने के फार्मूले और फ्री मार्केट की गणित को बदलने की क्षमता रखती है। इसका मतलब यह भी हुआ कि अब बाजार में कीमतें डिमांड और सप्लाई से नहीं बल्कि AI की पॉवर से तय की जा सकती है, ऐसा दावा AI पर काम कर रहे कई एक्सपर्ट करने लगे हैं। यह दावा कितना सही साबित होगा यह तो समय बता ही देगा पर इस दावे से लोगों को डराने का इंटेलिजेंट काम करने वालों को ‘कीमतों’ के बिहेवियर पर ध्यान देना चाहिए जो सॉफ्टवेयर में कोडिंग से नहीं बल्कि डिमांड, सप्लाई, प्रॉफिट, घाटा, इंफोर्मेशन, इन्नोवेशन, कमी, स्टॉक, प्रोडक्शन, कॉम्पीटिशन जैसे कई कारणों से तय होती है और इन सभी का अंदाजा लगाने के लिए कही न कही फ्यूचर की ओर ध्यान दिया जाता है। AI पुराने डेटा पर अपना काम करती है जबकि कीमतें तय करने जैसे तेजी से बदलने वाले इकोनोमिक निर्णय फ्यूचर को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं। कीमतों के बारे में यह याद करना भी दिलचस्प है कि वह पहले से उपलब्ध कोई जानकारी या नम्बर नहीं है जिसे सॉफ्टवेयर में डालकर उसका निर्णय स्वीकार किया जा सके बल्कि कीमतें बाजार व्यवस्था से तय होती है जिन्हें बाजारों की चाल से कभी अलग नहीं किया जा सकता। कीमतों का न तो पहले अंदाजा लगाया जा सकता है और न ही उनके घटने-बढऩे का ट्रेंड सही-सही पता चल सकता है।

वास्तव में कीमतों को तय करने में कारोबारों व कारोबारियों का प्रमुख रोल है जो अपने विजन से फ्यूचर में डवलप होने वाली डिमांड और उसे पूरा करने की क्षमता का अनुमान लगाते हैं और अपनी इस स्किल के भरोसे फ्यूचर पर दांव खेल जाते हैं लेकिन AI के मॉडल कारोबारों की इस व्यवस्था को पूरी तरह अलग रखकर काम करते हैं। अगर इंसान का दिमाग इकोनोमिक निर्णय न करें तो यह कौन बताएगा कि सीमित बजट में हॉस्पिटल बनाने से ज्यादा वेल्यू मिलेगी या कोई फैक्ट्री लगाने से। ऐसे निर्णय सिर्फ नफा-नुकसान के लिए नहीं लिये जाते बल्कि इनके लिए आगे की सोच का भी बड़ा रोल होता है जो ्रढ्ढ जैसी टेक्नोलॉजी के बस की बात नहीं है। चाहे कोई भी इकोनोमिक निर्णय हो, पर्सनल, कारोबारी या सरकारी, वह आने वाले दिनों को ध्यान में रखकर लिया जाता है जबकि AI के पास पुराने डेटा को आधार बनाकर निर्णय बताने का ही एकमात्र रास्ता है। AI ट्रेंड बता सकती है पर आगे होने वाले इन्नोवेशन और लोगों की बदलती आदतें, इच्छाएं व जरूरतों का अंदाजा नहीं लगा सकती। जो कभी सोचा ही न गया हो उसका पता लगाने की काबिलियत वैसे तो किसी के पास नहीं है पर Common Sense के हिसाब से अभी तक यह कर पाने की थोड़ी बहुत काबिलियत AI जैसी टेक्नोलॉजी से ज्यादा इंसान के पास ही है। फ्यूचर का अनुमान लगाने के लिए आजकल इतिहास से ज्यादा महत्वपूर्ण फ्री मार्केट हो गया है जहां स्थितियां तेजी से बार-बार बदलती रहती है और ऐसे में अपनी स्ट्रेटेजी बदलकर ‘कीमतों’ को अपने फायदे के लिए तय करने का काम टेक्नोलॉजी शायद ही कभी कर पाए पर अगर ऐसा हुआ और ऐसा होना स्वीकार कर लिया गया तो इकोनोमिक ग्रोथ को चलाने वाला इंजन कमियों और संभावनाओं के दम पर आगे बढऩे की बजाए लोगों की उम्मीदों को दबाते हुए एक सीमित दायरे तक सिमट कर रह जाएगा। इसके अलावा भी कई ऐसी स्थितियां बन सकती है जिनका अंदाजा AI तो क्या इंसान के दिमाग के साथ-साथ कोई भी आज नहीं लगा सकता इसलिए AI द्वारा फ्री मार्केट व इकोनोमी को कंट्रोल करने की पॉवर हासिल करके फ्यूचर को काबू में करने जैसे दावों में दम कम ही लगता है।


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