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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

24-07-2025

कंपनी भी हो सकती है विक्टिम : सुप्रीम कोर्ट

  • आप जानते हैं भारत में मंदिर में विराजमान देवता को मंदिर सम्पत्ति का कानूनी मालिक माना जाता है और उनकी अर्चना करने वाले को सेवक या सेवायत या उनका प्रतिनिधि। कोर्ट में विवाद की स्थिति में देवता खुद अपने केस की प्रतिनिधि के जरिए पैरवी करते हैं। हाल ही सुप्रीम कोर्ट ने कंपनियों के भी पर्सोनिफिकेशन (व्यक्तिकरण) का फैसला सुनाया है। माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला क्रिमिनल केस में कॉर्पोरेट राइट्स को फंडामेंटल राइट्स की दिशा ही बदल सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कंपनियों को भी पीडि़त या विक्टिम माना जा सकता है और वे आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत दोषमुक्ति के खिलाफ अपील करने की हकदार हैं। कोर्ट ने कहा कि भले ही राज्य सरकार अपराधी को बरी करने के खिलाफ अपील नहीं करें लेकिन कंपनी खुद कर सकती है। जस्टिस अहसानुुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने एशियन पेंट्स लि. द्वारा दायर अपील को मंजूर कर लिया। कंपनी ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें नकली पेंट बेचने के एक मामले में आरोपी को बरी कर दिया था। यह मामला एशियन पेंट्स के ब्रांड नाम से जुड़े उत्पादों को लेकर था।

    पेंच क्या : सुप्रीम कोर्ट में जो मुद्दा पहुंचा वह यह था कि...कोई कंपनी पीडि़त या विक्टिम की परिभाषा में आती है या नहीं। वह भी विशेष रूप से सीआरपीसी की धारा 2(व) और धारा 372 के संदर्भ में। यदि हां, तो क्या उसे दोषमुक्ति के खिलाफ अपील करने का अधिकार होना चाहिए, भले ही उच्च न्यायालय ने अपील को खारिज कर दिया हो।

    विवाद क्या : विवाद 2016 में शुरू हुआ था जब एशियन पेंट्स ने ट्रेडमार्क के उल्लंघन को लेकर एक कंसल्टेंसी के माध्यम से राजस्थान के टोंगा क्षेत्र में गोपीनाथ ट्रेडर्स नाम की एक दुकान के खिलाफ मामला दर्ज कराया। इस दुकान में एशियन पेंट्स के ब्रांड नाम वाले नकली पेंट उत्पाद बेचे जा रहे थे। दुकान का संचालन राम बाबू नामक व्यक्ति करता था और उसकी दुकान से नकली पेंट की 22 बाल्टियां जब्त की गई थीं। हालांकि, निचली अदालत ने सबूतों के अभाव में आरोपी को बरी कर दिया। जब एशियन पेंट्स ने इस दोषमुक्ति को चुनौती देने के लिए हाईकोर्ट में अपील की, तो अदालत ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि केवल मूल शिकायतकर्ता यानी पुलिस या राज्य ही अपील कर सकता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस मत को खारिज करते हुए कहा कि जो लोग कॉर्पोरेट अपराधों से प्रभावित होते हैं, वे भी धारा 2(व) के तहत पीडि़त या विक्टिम की परिभाषा में आते हैं। जिसे किसी अपराध के कारण कोई हानि, चोट या क्षति हुई हो भले ही मामला किस श्रेणी का हो। वरिष्ठ अधिवक्ता तपेश कुमार सिंह और अधिवक्ता अजय सिंह ने एशियन पेंट्स की ओर से दलील देते हुए कहा कि कंपनी को नकली प्रॉडक्ट्स के चलते वित्तीय हानि, ब्रांड को नुकसान और भरोसे की कमी जैसी वास्तविक और गंभीर क्षति हुई है।

    अदालत ने कहा : यह तर्क कि अपीलकर्ता को कोई हानि नहीं हुई, इसलिए वह अपील नहीं कर सकता। इस आधार पर तो पूरी धारा 372 को ही निरस्त करनी पड़ेगी। यह अनुचित है और कानून की मंशा के विपरीत भी है। पीठ ने माना कि नकली उत्पाद बाजार में कंपनी के नाम पर बेचे जा रहे थे, जिससे उपभोक्ता भ्रमित होते और कंपनी को वित्तीय नुकसान होता। इससे साफ होता है अपीलकर्ता को ‘पीडि़त यानी विक्टिम’ माना जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं माना गया तो सीआरपीसी की धारा 372 में पीडि़त को जो अपील का अधिकार दिया है, वह पूरी तरह निष्प्रभावी हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि कंपनियां भी कानूनी तौर पर पीडि़त हो सकती हैं और उन्हें भी अपील का वैसा ही अधिकार मिलना चाहिए जैसा किसी व्यक्ति को होता है।

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कंपनी भी हो सकती है विक्टिम : सुप्रीम कोर्ट

आप जानते हैं भारत में मंदिर में विराजमान देवता को मंदिर सम्पत्ति का कानूनी मालिक माना जाता है और उनकी अर्चना करने वाले को सेवक या सेवायत या उनका प्रतिनिधि। कोर्ट में विवाद की स्थिति में देवता खुद अपने केस की प्रतिनिधि के जरिए पैरवी करते हैं। हाल ही सुप्रीम कोर्ट ने कंपनियों के भी पर्सोनिफिकेशन (व्यक्तिकरण) का फैसला सुनाया है। माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला क्रिमिनल केस में कॉर्पोरेट राइट्स को फंडामेंटल राइट्स की दिशा ही बदल सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कंपनियों को भी पीडि़त या विक्टिम माना जा सकता है और वे आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत दोषमुक्ति के खिलाफ अपील करने की हकदार हैं। कोर्ट ने कहा कि भले ही राज्य सरकार अपराधी को बरी करने के खिलाफ अपील नहीं करें लेकिन कंपनी खुद कर सकती है। जस्टिस अहसानुुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने एशियन पेंट्स लि. द्वारा दायर अपील को मंजूर कर लिया। कंपनी ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें नकली पेंट बेचने के एक मामले में आरोपी को बरी कर दिया था। यह मामला एशियन पेंट्स के ब्रांड नाम से जुड़े उत्पादों को लेकर था।

पेंच क्या : सुप्रीम कोर्ट में जो मुद्दा पहुंचा वह यह था कि...कोई कंपनी पीडि़त या विक्टिम की परिभाषा में आती है या नहीं। वह भी विशेष रूप से सीआरपीसी की धारा 2(व) और धारा 372 के संदर्भ में। यदि हां, तो क्या उसे दोषमुक्ति के खिलाफ अपील करने का अधिकार होना चाहिए, भले ही उच्च न्यायालय ने अपील को खारिज कर दिया हो।

विवाद क्या : विवाद 2016 में शुरू हुआ था जब एशियन पेंट्स ने ट्रेडमार्क के उल्लंघन को लेकर एक कंसल्टेंसी के माध्यम से राजस्थान के टोंगा क्षेत्र में गोपीनाथ ट्रेडर्स नाम की एक दुकान के खिलाफ मामला दर्ज कराया। इस दुकान में एशियन पेंट्स के ब्रांड नाम वाले नकली पेंट उत्पाद बेचे जा रहे थे। दुकान का संचालन राम बाबू नामक व्यक्ति करता था और उसकी दुकान से नकली पेंट की 22 बाल्टियां जब्त की गई थीं। हालांकि, निचली अदालत ने सबूतों के अभाव में आरोपी को बरी कर दिया। जब एशियन पेंट्स ने इस दोषमुक्ति को चुनौती देने के लिए हाईकोर्ट में अपील की, तो अदालत ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि केवल मूल शिकायतकर्ता यानी पुलिस या राज्य ही अपील कर सकता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस मत को खारिज करते हुए कहा कि जो लोग कॉर्पोरेट अपराधों से प्रभावित होते हैं, वे भी धारा 2(व) के तहत पीडि़त या विक्टिम की परिभाषा में आते हैं। जिसे किसी अपराध के कारण कोई हानि, चोट या क्षति हुई हो भले ही मामला किस श्रेणी का हो। वरिष्ठ अधिवक्ता तपेश कुमार सिंह और अधिवक्ता अजय सिंह ने एशियन पेंट्स की ओर से दलील देते हुए कहा कि कंपनी को नकली प्रॉडक्ट्स के चलते वित्तीय हानि, ब्रांड को नुकसान और भरोसे की कमी जैसी वास्तविक और गंभीर क्षति हुई है।

अदालत ने कहा : यह तर्क कि अपीलकर्ता को कोई हानि नहीं हुई, इसलिए वह अपील नहीं कर सकता। इस आधार पर तो पूरी धारा 372 को ही निरस्त करनी पड़ेगी। यह अनुचित है और कानून की मंशा के विपरीत भी है। पीठ ने माना कि नकली उत्पाद बाजार में कंपनी के नाम पर बेचे जा रहे थे, जिससे उपभोक्ता भ्रमित होते और कंपनी को वित्तीय नुकसान होता। इससे साफ होता है अपीलकर्ता को ‘पीडि़त यानी विक्टिम’ माना जाना चाहिए। अगर ऐसा नहीं माना गया तो सीआरपीसी की धारा 372 में पीडि़त को जो अपील का अधिकार दिया है, वह पूरी तरह निष्प्रभावी हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि कंपनियां भी कानूनी तौर पर पीडि़त हो सकती हैं और उन्हें भी अपील का वैसा ही अधिकार मिलना चाहिए जैसा किसी व्यक्ति को होता है।


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