TOP

ई - पेपर Subscribe Now!

ePaper
Subscribe Now!

Download
Android Mobile App

Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

23-05-2025

न्याय पाने की थकाऊ यात्रा को दर्शाता है 26 वर्ष पुराने मामले पर कोर्ट का फैसला

  •  नयी दिल्ली/एजेंसी। दिल्ली की एक अदालत ने 1999 से लंबित एक संपत्ति विवाद पर फैसला सुनाते हुए कहा कि जब किसी मामले को निपटाने में 26 साल लग जाते हैं, तो न्यायिक प्रणाली को अपनी जिम्मेदारी बांटनी चाहिए। जिला न्यायाधीश मोनिका सरोहा ने कहा कि यह उनके समक्ष ‘सबसे पुराना लंबित मुकदमा’ था, जो करीबी पारिवारिक सदस्यों के बीच एक गहरे दर्दनाक विवाद से उत्पन्न हुआ था, और ऐसे मामलों ने अदालत को याद दिलाया कि ‘हर केस फाइल के पीछे रिश्तों की व्यक्तिगत कहानी होती है जो तनावपूर्ण होती है और समय.. जो हमेशा के लिए बर्बाद हो जाता हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह याद दिलाता है कि न्याय का मार्ग कितना लंबा, थकाऊ और प्रक्रियात्मक रूप से बोझिल हो सकता है।’’ न्यायाधीश वादी अशोक कुमार जेरथ द्वारा अपने पिता, भाई, भाभी और दो बहनों सहित प्रतिवादियों के खिलाफ दायर एक मुकदमे की सुनवाई कर रही थीं, जिसमें यह घोषित करने का अनुरोध किया गया था कि उनके पिता द्वारा किए गए कुछ संपत्ति हस्तांतरण शून्य और अमान्य हैं। गत 20 मई को अपने फैसले में, अदालत ने कहा कि वादी (अशोक और उनके कानूनी प्रतिनिधि) यह साबित करने में विफल रहे कि वह हस्तांतरित संपत्तियों के एकमात्र हकदार थे। फैसले में कहा गया, ‘‘दुखद बात यह है कि वादी जिसने यह मुकदमा दायर किया और अधिकांश प्रतिवादी जिनके खिलाफ यह मुकदमा मूल रूप से 1999 में दायर किया गया था, अब मर चुके हैं। यह मामला एक कानूनी इतिहास के रूप में खड़ा है जो इसके पक्षों से आगे निकल गया है, और यह मामला इस बात की याद दिलाता है कि न्याय का मार्ग कितना लंबा, थकाऊ और प्रक्रियात्मक रूप से बोझिल हो सकता है।’’ न्यायाधीश ने कहा कि जब किसी मामले को हल होने में 26 साल लग जाते हैं, तो न्यायालय सहित न्यायिक प्रणाली को दोष और जिम्मेदारी बांटने चाहिए। 

Share
न्याय पाने की थकाऊ यात्रा को दर्शाता है 26 वर्ष पुराने मामले पर कोर्ट का फैसला

 नयी दिल्ली/एजेंसी। दिल्ली की एक अदालत ने 1999 से लंबित एक संपत्ति विवाद पर फैसला सुनाते हुए कहा कि जब किसी मामले को निपटाने में 26 साल लग जाते हैं, तो न्यायिक प्रणाली को अपनी जिम्मेदारी बांटनी चाहिए। जिला न्यायाधीश मोनिका सरोहा ने कहा कि यह उनके समक्ष ‘सबसे पुराना लंबित मुकदमा’ था, जो करीबी पारिवारिक सदस्यों के बीच एक गहरे दर्दनाक विवाद से उत्पन्न हुआ था, और ऐसे मामलों ने अदालत को याद दिलाया कि ‘हर केस फाइल के पीछे रिश्तों की व्यक्तिगत कहानी होती है जो तनावपूर्ण होती है और समय.. जो हमेशा के लिए बर्बाद हो जाता हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह याद दिलाता है कि न्याय का मार्ग कितना लंबा, थकाऊ और प्रक्रियात्मक रूप से बोझिल हो सकता है।’’ न्यायाधीश वादी अशोक कुमार जेरथ द्वारा अपने पिता, भाई, भाभी और दो बहनों सहित प्रतिवादियों के खिलाफ दायर एक मुकदमे की सुनवाई कर रही थीं, जिसमें यह घोषित करने का अनुरोध किया गया था कि उनके पिता द्वारा किए गए कुछ संपत्ति हस्तांतरण शून्य और अमान्य हैं। गत 20 मई को अपने फैसले में, अदालत ने कहा कि वादी (अशोक और उनके कानूनी प्रतिनिधि) यह साबित करने में विफल रहे कि वह हस्तांतरित संपत्तियों के एकमात्र हकदार थे। फैसले में कहा गया, ‘‘दुखद बात यह है कि वादी जिसने यह मुकदमा दायर किया और अधिकांश प्रतिवादी जिनके खिलाफ यह मुकदमा मूल रूप से 1999 में दायर किया गया था, अब मर चुके हैं। यह मामला एक कानूनी इतिहास के रूप में खड़ा है जो इसके पक्षों से आगे निकल गया है, और यह मामला इस बात की याद दिलाता है कि न्याय का मार्ग कितना लंबा, थकाऊ और प्रक्रियात्मक रूप से बोझिल हो सकता है।’’ न्यायाधीश ने कहा कि जब किसी मामले को हल होने में 26 साल लग जाते हैं, तो न्यायालय सहित न्यायिक प्रणाली को दोष और जिम्मेदारी बांटने चाहिए। 


Label

PREMIUM

CONNECT WITH US

X
Login
X

Login

X

Click here to make payment and subscribe
X

Please subscribe to view this section.

X

Please become paid subscriber to read complete news