किसी भी देश के लोगों की खरीदने की ‘पॉवर’ पर दुनिया भर की दिग्गज लक्जरी व लाफस्टाइल कंपनियां नजर रखती है व इस डेटा को लगातार ट्रेक करते हुए अपने लिए उभरते बाजारों को ढूंढती रहती है। इन कंपनियों के लिए यह काम आजकल सबसे महत्वपूर्ण बना हुआ है क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े बाजार अमेरिका व चीन में लक्जरी आइटमों की सेल्स लगातार पिछले 3-4 सालों से गिरती जा रही है। चीन व अमेरिका के बाजारों में कुल ग्लोबल लक्जरी सेल्स की आधी सेल्स होती है लेकिन चीन में लक्जरी प्रोडक्ट की डिमांड पिछले 4 वर्षों से नहीं बढ़ी है जिसका कारण वहां आई प्रॉपर्टी बाजार की मंदी को माना जा रहा है क्योंकि इसके चलते चीन की घरेलू वेल्थ में 30 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है। इसी तरह अमेरिका में लक्जरी प्रोडक्ट सेल्स वर्ष 2022 में पीक पर रही जिसके बाद लगातार गिरती जा रही है। पिछले 20 सालों में लक्जरी प्रोडक्ट की ग्लोबल सेल्स एवरेज 6 प्रतिशत सालाना बढ़ी है पर वर्ष 2025 में इसमें 2 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट का अनुमान है जिसे देखते हुए कंपनियां भारत जैसे देशों के बाजारों की तरफ देख रही है। अमेरिका व चीन के मुकाबले दूसरे देशों की खरीदने की पॉवर की सच्चाई को देखकर कंपनियों को गिरती सेल्स से राहत मिलने की उम्मीद कम ही है। भारत की स्थिति खरीदने की पॉवर के मामले में ज्यादा अच्छी नहीं है और चीन व अमेरिका से तो इस मामले में दूर-दूर तक कोई मुकाबला नहीं किया जा सकता। इस कड़वी सच्चाई को साबित करने के कई उदारहण मौजूद है पर इस सच्चाई को स्वीकार करके इसमें सुधार करने के प्रयासों के कितने उदाहरण सामने है यह पता लगाने की कोशिश आप भी कर सकते हैं। भारत और चीन भले ही जनसंख्या के मामले में आसपास हो पर लक्जरी ब्रांड Louis Vuitton के चीन में 60 से ज्यादा शोरूम है जबकि भारत में इसके सिर्फ तीन ही शोरूम है। आज भारत में लक्जरी ब्रांड की सेल्स 1 बिलियन डॉलर (करीब 8.5 हजार करोड़ रुपये) के करीब है जबकि चीन में 45 बिलियन डॉलर के लक्जरी प्रोडक्ट हर साल बिकते है। हमारे देश में लक्जरी ब्रांड ज्यादातर फाइव स्टार होटलों या एयरपोर्ट पर बिकते है क्योंकि इनके खरीददार इन्ही जगहों पर पाए जाते हैं। रिटेल सेल्स के लिहाज से भारत में सिर्फ 8 लक्जरी शॉपिंग माल है जो पूरे देश में लक्जरी प्रोडक्ट के खरीददारों के लिए उपलब्ध है। यह भी दिलचस्प है कि भारत में लक्जरी आइटमों पर लगने वाला इंपोर्ट टैक्स कीमतों में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर देता है जिसके कारण लोग विदेशों से इन्हें ज्यादा खरीदते है। दरअसल हमारे यहां अमीर व वेल्दी कंज्यूमरों का अलग ग्रुप बनता जा रहा है जो खुद को भीड़ से अलग रखने के लिए लक्जरी प्रोडक्ट ज्यादा खरीदते है। वहीं दूसरी ओर हमारे यहां की मिडिल क्लास और अन्य देशों की मिडिल क्लास की खरीदने की पॉवर में इतना अंतर है कि लक्जरी प्रोडक्ट की 50 प्रतिशत से ज्यादा ग्लोबल सेल्स करोड़ों मिडिल क्लास के खरीददारों से आती है जिनमें भारत के मिडिल क्लास की हिस्सेदारी नाममात्र की ही है। लक्जरी पर खर्च करने की पॉवर हो या हर तरह का खर्च करने की पॉवर की बात हो देानों ही मामलों में अमीरों द्वारा किए जा रहे खर्च को उतना महत्व नहीं दिया जाता जितना मिडिल क्लास के खर्च करने की पॉवर का होता है क्योंकि अमीरों के पास तो हमेशा यह पॉवर बनी रहती है पर मिडिल क्लास की पॉवर देश की इकोनोमी, GDP व सैलरी से सीधी जुड़ी होती है जिसके कारण वह परमानेंट खरीददार की कैटेगरी में नहीं माने जाती। चीन में जब वर्ष 2009 से 2019 के बीच इकोनोमी हर साल 8 प्रतिशत की रेट से बढ़ी तो चीन में मिडिल क्लास की इनकम भी तेजी से बढ़ी व यही मिडिल क्लास लक्जरी प्रोडक्ट खरीदकर दुनिया को अपने पॉवरफुल होने का संदेश देने लगी और इस तरह ग्लोबल लेवल पर लक्जरी प्रोडक्ट की 25 प्रतिशत सेल्स चीन से आने लगी। क्या हम यह स्थिति भारत में या किसी और देश में देख पा रहे हैं यह ऐसा बड़ा सवाल है जिसपर लोग अलग-अलग सोच भले ही रखते हो पर अगर खरीदने की पॉवर को ध्यान में रखकर देखा जाए तो आज भी चीन, अमेरिका सहित कई छोटे देशों के सामने भी भारत की स्थिति उतनी अच्छी नहीं है जितनी मानी जाती है और इससे अंदाजा मिलता है कि इनकम, खर्च और लक्जरी पर खर्च करने के मामले में हमारे लोगों की पॉवर में कितना दम है।