अमेरिका के एक दर्जन राज्यों ने प्रेसिडेंट डॉनाल्ड ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी को अदालत में चैलेंज करने का फैसला लिया है। इन राज्यों का आरोप है कि ट्रंप ने इमरजेंसी कानून के तहत यह टैरिफ लगाएं हैं और कांग्रेस को बाईपास करना गैरकानूनी है। मैनहट्टन में यूएस कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड में दायर मुकदमे में कहा है कि कांग्रेस ने ट्रंप को टैरिफ लगाने के लिए जरूरी पावर नहीं दी है और देश की ट्रेड पॉलिसी कांग्रेस की समीक्षा के बजाय प्रेसिडेंट की सनक की भेंट चढ़ गई है। शिकायत करने वाले राज्यों में ओरेगॉन, एरि•ाोना, कोलोराडो, कनेक्टिकट, डेलावेयर, इलिनॉइ. मेन, मिनेसोटा, नेवादा, न्यू मैक्सिको, न्यूयॉर्क और वरमॉन्ट शामिल हैं। शिकायत में कहा कि ट्रंप ने संवैधानिक व्यवस्था को बढ़ा दिया है और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अराजकता ला दी है। इससे पहले अमेरिका के कुछ छोटे कारोबारियों ने भी ट्रंप टैरिफ के खिलाफ यूएस कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल ट्रेड में शिकायत दर्ज कराई थी। हालांकि तीन जजों की एक बेंच ने यह कहते हुए इस शिकायत को खारिज कर दिया कि शिकायतकर्ता यह साबित करने में नाकामयाब रहे कि ट्रंप टैरिफ से उन पर तुरंत ऐसा असर पड़ेगा जिसकी भरपाई नहीं की जा सकेगी। राज्यों का आरोप है कि ट्रंप टैरिफ अमेरिकी कंज्यूमर पर हैवी टैक्स के बराबर है। न्यूयॉर्क की अटॉर्नी जनरल लेटिटिया जेम्स ने कहा प्रेसिडेंट के पास अपनी मर्जी से टैरिफ बढ़ाने की पावर नहीं है। डॉनाल्ड ट्रम्प ने वादा किया कि वह कीमतों को कम करेंगे और लिविंग कॉस्ट को कम करेंगे लेकिन इन अवैध टैरिफ से अमेरिकी परिवारों पर बिल्कुल विपरीत प्रभाव पड़ेगा। राज्यों का तर्क है कि राष्ट्रपति को इमरजेंसी पावर्स का दुरुपयोग करने से रोकने के लिए पांच दशक पहले एक कानून पारित किया गया था और इसे केवल असामान्य और असाधारण खतरे...के हालातों में ही लागू किया जा सकता है। जबकि ट्रंप के ट्रेड डेफिसिट सहित अन्य तर्क एमरजेंसी कानून की शर्त की पूरा नहीं करते।