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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

09-12-2025

रास्ता दिखाते हैं ‘Super Rich’!

  •  आजकल कारोबारी दुनिया में शायद ही ऐसा कोई सेक्टर, प्रोडक्ट या सर्विस बची है जो Monopoly जैसी स्थिति में हो यानि लगभग हर कारोबार किसी न किसी रूप में कंपीटिशन के कभी न खत्म होने वाले खेल का हिस्सा बना हुआ है। कंपीटिशन को बढ़ाते रहने की वकालत सरकारों से लेकर टॉप बिजनस स्कूल व नामी लोग लगातार करते आए हैं पर कंपीटिशन में टिके रहना कितना चुनौतीपूर्ण काम है यह आम कारोबारी से बेहतर कोई नहीं समझ सकता कंपीटिशन में आगे रहने के वैसे तो सभी के अपने-अपने तरीके व फार्मूले हैं पर कंपीटिशन में बने रहने की असली चुनौती Higher Middle, Middle व इससे नीचे वाले इनकम ग्रुप के बीच कारोबार करने वालों में ज्यादा है क्योंकि यह क्लास कीमतों के प्रति सजग व संवेदनशील रहती हैं यानि कीमतें इनकी खरीददारी में मुख्य रोल निभाती हैं। इस क्लास के बीच कारोबार करने वालों के मार्जिन हमेशा ही दबाव में बने रहते हैं और इनके पास कीमतों को कॉस्ट के हिसाब से ऊपर-नीचे करने की आजादी बहुत कम होती है। दूसरी ओर आजकल तेजी से बढ़ती Super Rich कहलाने वाली क्लास है जिनके बीच कारोबार करने वालों को कंपीटिशन उतना परेशान नहीं करता बशर्तें उनकी नए-नए आइडिया व क्रिएटिविटी डवलप करने की फैक्ट्री लगातार चलती रहे। इस क्लास को न कीमतों की परवाह होती है और न ही खर्च की क्योंकि इन्हें ऐसे प्रोडक्ट या सर्विस पसंद आते हैं जो एक्सक्लूसिव हो या जिनके बारे में बहुत कम लोगों को पता हो और इनके लिए वे कितना भी खर्च कर सकते हैं। कारोबारों की ग्रोथ के लिए जरूरी है कि Super Rich की कैटेगरी वाले लोगों की संख्या बढ़े क्योंकि यह Class कम संख्या में बढ़ते-बढ़ते करोड़ों आम लोगों के लिए ऐसा टार्गेट बन जाती है जहां तक हर कोई पहुंचने के सपने देखने लगता है। अगर हम पिछले 20-25 सालों का इतिहास देखें तो पता चलता है कि इकोनॉमी की ग्रोथ में ऐसे कारोबारों ने ज्यादा योगदान दिया है जो लोगों की जरूरतों की बजाय उनके सपनों को बेचने का काम कर रहे थे यानि मिडिल क्लास और इससे ऊपर की क्लास ने Consumption के पैटर्न को पूरी तरह बदलकर कारोबार के नए मौके देने में महत्वपूर्ण रोल निभाया है। दुनियाभर में लक्जरी आइटमों की खरीद का 55 प्रतिशत हिस्सा ऐसे लोगों से आता है जो साल का करीब 2 लाख रुपया लक्जरी व फैन्सी प्रोडक्ट पर खर्च करते हैं। यह ट्रेंड हम शॉपिंग मॉल व ऑनलाइन शॉपिंग में साफ-साफ देख सकते हैं जहां नामी ब्रांड के प्रोडक्ट खरीदने की इच्छा रखने वाले बजट न होते हुए भी उन्हें हासिल करने के तरीके ढूंढते रहते हैं और उन्हें खरीदकर ही संतुष्ट हो पाते हैं। कारोबारों व इंवेस्टरों के लिए यह साफ संकेत है कि अच्छी ग्रोथ के बावजूद कई छुपे हुए कारणों से सुस्ती के माहौल में चल रही इकोनोमी में सुरक्षित दांव लगाने के मौके Super Rich लोगों की पसंद व उनके सपनों के आस-पास ही ज्यादा मौजूद है। वैसे तो कारोबारी Sentiment मौटे रूप में शेयर बाजारों से जुड़ा रहने लगा है जहां की तेजी-मंदी रातो-रात सोचने व समझने के तरीको को बदलने की पॉवर रखती है। Super Rich के बीच कारोबार या इंवेस्टमेंट करने वालो के लिए शेयर बाजारों की स्थिति का भी असर कम ही रहता है क्योंकि भले ही शेयर बाजार कैसा भी रहे फिर भी हमारे सामने अमीरों के और अधिक अमीर होने के उदाहरण मौजूद है यानि बढ़ता इनकम गैप एक तरह से कई कारोबारों को सपोर्ट करने का जरिया बनता जा रहा है। पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत में भी लक्जरी प्रोडक्ट, ज्वैलरी, बिजनस क्लास से एयर ट्रेवल, हॉलीडे, लक्जरी कार, होम फर्निशिंग जैसी चीजों पर खर्च बढ़ रहा है जो ज्यादातर Super Rich ही कर रहे हैं। बाजारों की स्थिति भी ऐसी है कि ये अमीरों को ही ज्यादा सपोर्ट करते हुए उन्हें और अमीर बना रहे हैं इसलिए कारोबारी और इकोनोमिक ट्रेंड को जानने व समझने के लिए Super Rich क्लास के खर्चों पर निगाह रखकर उनमें से कारोबार और इंवेस्टमेंट के मौके ढंूढे जा सकते हैं और इस थीम को Confuse करने वाली आज की स्थितियों में कुछ भी नया सोचने से पहले ध्यान में रखा जा सकता है।

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रास्ता दिखाते हैं ‘Super Rich’!

 आजकल कारोबारी दुनिया में शायद ही ऐसा कोई सेक्टर, प्रोडक्ट या सर्विस बची है जो Monopoly जैसी स्थिति में हो यानि लगभग हर कारोबार किसी न किसी रूप में कंपीटिशन के कभी न खत्म होने वाले खेल का हिस्सा बना हुआ है। कंपीटिशन को बढ़ाते रहने की वकालत सरकारों से लेकर टॉप बिजनस स्कूल व नामी लोग लगातार करते आए हैं पर कंपीटिशन में टिके रहना कितना चुनौतीपूर्ण काम है यह आम कारोबारी से बेहतर कोई नहीं समझ सकता कंपीटिशन में आगे रहने के वैसे तो सभी के अपने-अपने तरीके व फार्मूले हैं पर कंपीटिशन में बने रहने की असली चुनौती Higher Middle, Middle व इससे नीचे वाले इनकम ग्रुप के बीच कारोबार करने वालों में ज्यादा है क्योंकि यह क्लास कीमतों के प्रति सजग व संवेदनशील रहती हैं यानि कीमतें इनकी खरीददारी में मुख्य रोल निभाती हैं। इस क्लास के बीच कारोबार करने वालों के मार्जिन हमेशा ही दबाव में बने रहते हैं और इनके पास कीमतों को कॉस्ट के हिसाब से ऊपर-नीचे करने की आजादी बहुत कम होती है। दूसरी ओर आजकल तेजी से बढ़ती Super Rich कहलाने वाली क्लास है जिनके बीच कारोबार करने वालों को कंपीटिशन उतना परेशान नहीं करता बशर्तें उनकी नए-नए आइडिया व क्रिएटिविटी डवलप करने की फैक्ट्री लगातार चलती रहे। इस क्लास को न कीमतों की परवाह होती है और न ही खर्च की क्योंकि इन्हें ऐसे प्रोडक्ट या सर्विस पसंद आते हैं जो एक्सक्लूसिव हो या जिनके बारे में बहुत कम लोगों को पता हो और इनके लिए वे कितना भी खर्च कर सकते हैं। कारोबारों की ग्रोथ के लिए जरूरी है कि Super Rich की कैटेगरी वाले लोगों की संख्या बढ़े क्योंकि यह Class कम संख्या में बढ़ते-बढ़ते करोड़ों आम लोगों के लिए ऐसा टार्गेट बन जाती है जहां तक हर कोई पहुंचने के सपने देखने लगता है। अगर हम पिछले 20-25 सालों का इतिहास देखें तो पता चलता है कि इकोनॉमी की ग्रोथ में ऐसे कारोबारों ने ज्यादा योगदान दिया है जो लोगों की जरूरतों की बजाय उनके सपनों को बेचने का काम कर रहे थे यानि मिडिल क्लास और इससे ऊपर की क्लास ने Consumption के पैटर्न को पूरी तरह बदलकर कारोबार के नए मौके देने में महत्वपूर्ण रोल निभाया है। दुनियाभर में लक्जरी आइटमों की खरीद का 55 प्रतिशत हिस्सा ऐसे लोगों से आता है जो साल का करीब 2 लाख रुपया लक्जरी व फैन्सी प्रोडक्ट पर खर्च करते हैं। यह ट्रेंड हम शॉपिंग मॉल व ऑनलाइन शॉपिंग में साफ-साफ देख सकते हैं जहां नामी ब्रांड के प्रोडक्ट खरीदने की इच्छा रखने वाले बजट न होते हुए भी उन्हें हासिल करने के तरीके ढूंढते रहते हैं और उन्हें खरीदकर ही संतुष्ट हो पाते हैं। कारोबारों व इंवेस्टरों के लिए यह साफ संकेत है कि अच्छी ग्रोथ के बावजूद कई छुपे हुए कारणों से सुस्ती के माहौल में चल रही इकोनोमी में सुरक्षित दांव लगाने के मौके Super Rich लोगों की पसंद व उनके सपनों के आस-पास ही ज्यादा मौजूद है। वैसे तो कारोबारी Sentiment मौटे रूप में शेयर बाजारों से जुड़ा रहने लगा है जहां की तेजी-मंदी रातो-रात सोचने व समझने के तरीको को बदलने की पॉवर रखती है। Super Rich के बीच कारोबार या इंवेस्टमेंट करने वालो के लिए शेयर बाजारों की स्थिति का भी असर कम ही रहता है क्योंकि भले ही शेयर बाजार कैसा भी रहे फिर भी हमारे सामने अमीरों के और अधिक अमीर होने के उदाहरण मौजूद है यानि बढ़ता इनकम गैप एक तरह से कई कारोबारों को सपोर्ट करने का जरिया बनता जा रहा है। पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत में भी लक्जरी प्रोडक्ट, ज्वैलरी, बिजनस क्लास से एयर ट्रेवल, हॉलीडे, लक्जरी कार, होम फर्निशिंग जैसी चीजों पर खर्च बढ़ रहा है जो ज्यादातर Super Rich ही कर रहे हैं। बाजारों की स्थिति भी ऐसी है कि ये अमीरों को ही ज्यादा सपोर्ट करते हुए उन्हें और अमीर बना रहे हैं इसलिए कारोबारी और इकोनोमिक ट्रेंड को जानने व समझने के लिए Super Rich क्लास के खर्चों पर निगाह रखकर उनमें से कारोबार और इंवेस्टमेंट के मौके ढंूढे जा सकते हैं और इस थीम को Confuse करने वाली आज की स्थितियों में कुछ भी नया सोचने से पहले ध्यान में रखा जा सकता है।


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