भारतीय प्रवासी समुदाय द्वारा भारत भेजी गई रेमिटेन्स राशि ने नया रिकॉर्ड स्थापित किया है। पिछले वित्त वर्ष में विदेशों में बसे भारतीयों ने कुल 135.46 बिलियन डॉलर भारत भेजे, जो ऑल टाइम रिकॉर्ड है। पिछले एक दशक से अधिक समय से भारत दुनिया का सबसे ज्यादा रेमिटेन्स प्राप्त करने वाला शीर्ष देश बना हुआ है। आरबीआई के लेटेस्ट बैलेंस ऑफ पेमेंट्स डेटा के अनुसार, एनआरआई से प्राप्त ग्रॉस इनवर्ड रेमिटेन्स (प्राइवेट ट्रांसफर्स) में पिछले वर्ष की तुलना में 14 परसेंट की ग्रोथ हुई है। जो वित्त वर्ष 2016-17 में मिले 61 बिलियन डॉलर के रेमिटेंस से दोगुना से भी ज्यादा है। आरबीआई के अनुसार भारत के कुल करंट अकाउंट इनफ्लो में रेमिटेंस का शेयर 10 परसेंट से भी अधिक हैं। पिछले वित्त वर्ष में भारत का कुल करंट अकाउंट इंफ्लो 1 ट्रिलियन डॉलर रहा था। आरबीआई के एक रिसर्च पेपर के अनुसार भारत उन देशों में शामिल है जहां यूएस$200 ट्रांसफर करने की लागत तुलनात्मक रूप से कम है। आईडीएफसी फस्र्ट बैंक की चीफ इकोनॉमिस्ट गौरा सेनगुप्ता के अनुसार अब विकसित देशों — जैसे यूएस, यूके, और सिंगापुर भारत के स्किल्ड लेबर का प्रतिशत बढ़ा है। आरबीआई डेटा के अनुसार, कुल रेमिटेन्स में इन तीन देशों की हिस्सेदारी 45 परसेंट है। दूसरी ओर खाड़ी के देशों की भारत के रेमिटेंस में हिस्सेदारी घट रही है। सॉफ्टवेयर सर्विसेज और बिजनेस सर्विसेज से होने वाली आय भी बड़े करंट अकाउंट इनफ्लो का हिस्सा हैं, जिनमें प्रत्येक ने पिछले साल 100 बिलियन डॉलर से अधिक अर्जित किया। जब इन दोनों को रेमिटेन्स के साथ जोड़ें तो ये तीनों का ग्रॉस करंट अकाउंट इंनफ्लो में शेयर 40 परसेंट से अधिक हो जाता है। आरबीआई के अनुसार भारत में रेमिटेंस इंफ्लो एफडीआई से ज्यादा रहते हैं और यह लगातार एक बड़ा एक्सटर्नल फाइनेंसिंग का स्रोत बने हुए हैं। रेमिटेंस से भारत के ट्रेड डेफिसिट की भरपाई करने में भी मदद मिलती है। वित्त वर्ष25 में भारत का मर्चेंडाइज ट्रेड डेफिसिट 287 बिलियन डॉलर था। ऐसे में 135.46 बिलियन डॉलर के रेमिटेंस ट्रेड डेफिसिट का लगभग 47 परसेंट हिस्सा कवर करते हैं।
