एक वो गजल नहीं है...फिर छिड़ी रात बात फूलों की। कुछ ऐसा ही स्मॉल कार में हो रहा है। भारत में मारुति ने स्मॉल कार के लिए सरकारी सपोर्ट की मांग की है। कंपनी का कहना है कि स्मॉल कार की डिमांड रिकवरी नहीं होगी तो कार सेल्स भी ग्रोथ के रास्ते पर मुश्किल लौट पाएगी। हालांकि मारुति की इस डिमांड को ऑटो इंक से सपोर्ट नहीं मिला। लेकिन यूरोप में दो दिग्गज साथ होकर ईयू से स्मॉल कार कैटेगरी को सपोर्ट देने की मांग कर रहे हैं। स्टेलांटिस और रेनो ने ईयू से कहा है कि चीनी कार कंपनियां यूरोप के बाजार में उतर रहे हैं ऐसे में नई स्मॉल कार कैटेगरी बनाए जाने की जरूरत है। इन कारों में बेसिक सेफ्टी फीचर्स हों और लागत भी कम हो। पिछले दो महीनों में स्टेलांटिस के चेयरमेन जॉन एल्कान और रेनो के सीईओ लुका दे मेओ ने मिलकर स्मॉल कार को लेकर जबरदस्त कैंपेन चलाया है। इस कैंपेन का मकसद ऐसी स्मॉल कार कैटेगरी को जीवित करना है जिसे यूरोप के ऑटो कंपनियां यह कहकर भुला चुकी हैं कि इनमें मुनाफा नहीं होता। ऑटो कंपनियां कहती हैं कि कारों पर जबरदस्त नियम लाद दिए गए हैं जिससे इनकी साइज, वेट और प्राइस तीनों बढ़ गई हैं। एल्कान ने पिछले सप्ताह कहा कि यूरोप को जापान की तरह अपनी केई कार जैसी कैटेगरी की जरूरत है। केई कार छोटी अर्बन कार होती हैं जिनका बॉडी और इंजन साइज तय होता है। इन पर टेक्स भी कम लगता है और इंश्योरेंस कॉस्ट भी कम होती है। एल्कान के अनुसार जापान की केई कार जैसी कैटेगरी को यूरोप में ई-कार कहा जा सकता है। जापान में केई कार का शेयर 40 परसेंट है। एल्कान कहते हैं कि जापान के पास केई कार है, तो यूरोप में ई-कार क्यों नहीं हो सकती। एल्कान पिछले महीने रेनो के दे मेओ के साथ एक जॉइंट आर्टिकल भी लिख चुके हैं। हालांकि दे मेओ ने रेनो को छोडक़र लक्जरी फैशन हाउस ज्वॉइन कर लिया है। लेकिन रेनो इस कैंपेन को आगे ले जाना चाहती है। रेनो के परचेज और पार्टनरशिप के डायरेक्टर फ्रांस्वा प्रोवोस्ट कहते हैं कि स्मॉल कार में ग्रोथ की अपॉर्चुनिटी है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। चीनी कंपनियां यूरोप में ज्यादातर बड़ी इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड कारों पर फोकस कर रही है लेकिन अब छोटी इलेक्ट्रिक कारें भी आने लगी हैं। बीवाईडी ने एक महीने पहले 20 हजार यूरो की एंट्री प्राइस पर डॉल्फिन सर्फ को लॉन्च किया है। इसमें एक रिवॉल्विंग बड़ी टचस्क्रीन और एंटी फोग मिरर जैसे फीचर हैं। इसके मुकाबले की रेनो5 की प्राइस 5 हजार यूरो ज्यादा है। ऑटो एनेलिस्ट फ्लावियन नूनी कहते हैं कि...यूरोपियन ऑटो कंपनियां बड़े प्रेशर में हैं। अब वो यह सोचने लगी हैं कि क्या सस्ती कारों से सेल्स बढ़ाने और एमिशन टार्गेट्स हासिल करने में मदद मिल सकती है। वे कहते हैं कि 2019 के मुकाबले मार्केट 20 परसेंट घट चुका है। लीगेसी ब्रांड्स के लिए ही मार्केट कम पड़ रहा है ऊपर से चीनी कंपनियां आ रही हैं। यूरोप के कार मार्केट में स्मॉल कार का शेयर केवल 5 परसेंट है। हालांकि 1980 में यह 50 परसेंट तक था। वर्तमान में, छोटी कारों की हिस्सेदारी कुल बाजार में केवल 5 परसेंट है, लेकिन 1980 के दशक में यह 50 परसेंट तक थी। एसएंडपी ग्लोबल का मानना है कि अगर इस कैटेगरी में नए मॉडल लॉन्च होते हैं तो 2030 तक कैटेगरी की सेल्स 6 लाख यूनिट्स तक पहुंच सकती है। यूरोपीय संघ के जनरल सेफ्टी रेग्युलेशन्स 2 के तहत गाडिय़ों में साइड एयरबैग, स्लीप सेंसर, लेन अलर्ट और बहुत कड़े क्रेश टेस्ट अनिवार्य हैं। इनके ऊपर एमिशन नॉम्र्स के चलते एक गाड़ी की लागत 1000 से 1600 डॉलर तक बढ़ जाती है। केई कार की तरह अर्बन कम्यूटिंग की कारों में कड़े सेफ्टी नॉम्र्स की जरूरत नहीं है। यूरोपियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने भी एम0 या ई-कार कैटेगरी का सपोर्ट किया है। हालांकि ईयू का मानना है कि अभी यह कहा नहीं जा सकता है कि इस स्मॉल कार कैटेगरी के दम पर चीनी कारों का सही से मुकाबला किया जा सकता है। दूसरी ओर यूरो एनकैप के डायरेक्टर मैथ्यू एवरी कहते हैं कि यूरोप में बिक रही चीनी कारें 5-स्टार रेटिंग वाली हैं।