जयपुरञ्चनफा नुकसान रिसर्च
पिछले दिनों डॉनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी कंपनियों द्वारा विदेशों में कारोबार के लिए रिश्वत देने को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था। आप जानते हैं अमेरिका के बॉन्ड मार्केट से पैसा उठाने वाली अडानी एंटरप्राइजेज पर जो बाइडन की सरकार ने इसी कानून के तहत इंवेस्टर्स को अंधेरे में रखने के आरोप में कानूनी कार्यवाही शुरू की थी। ट्रंप ने यह कदम क्यों उठाया इसका अंदाजा अब लग रहा है। चर्चा है कि इंडिया-यूएस ट्रेड डील में यह मुद्दा बन गया है और भारत सरकार अमेरिकी कंपनियों के लिए सरकारी (पब्लिक प्रॉक्यॉरमेंट) खरीद के दरवाजे खोलने की तैयारी पूरी कर चुकी है। चर्चा है कि पिछले दिनों यूके के साथ एफटीए को लेकर बनी सहमति में भी भारत सरकार ने सर्विस एक्सपोर्ट और स्किल्ड वरकर्स के लिए यूके से कोटा बढ़वाने के लिए यही ऑफर दिया है। यूके की कंपनियां भारत में सरकारी खरीद में टेंडर प्रॉसेस में भाग लेना चाहती हैं।
रिपोर्ट्स के अनुसार केंद्र, राज्य और पीएसयू साल में करीब 700 से 750 बिलियन डॉलर की खरीदारी करते हैं। जो कि भारत के कुल जीडीपी का करीब 20 परसेंट है। माना जा रहा है कि जिन 72 देशों के साथ ट्रेड डील की बात चल रही है उन्हें भी यही ऑफर देना पड़ सकता है। हालांकि सरकार को इसमें इंडियन कंपनियों, एमएसएमई के कोटा को भी ध्यान रखना होगा। एमएसएमई को सरकारी खरीद में 25 परसेंट कोटा मिलता है। भारत में 5.93 करोड़ रजिस्टर्ड एमएसएमई हैं जिनमें 25 करोड़ जॉब्स बताए जाते हैं। भारत सरकार के डेटा के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 में एमएसएमई के प्रॉडक्ट्स का 12.39 लाख करोड़ रुपये का एक्सपोर्ट हुआ था जो कि भारत के कुल एक्सपोर्ट का 45 परसेंट था। एमएमएमई का कुल मैन्युफैक्चरिंग जीवीए (ग्रॉस वैल्यू एडिशन) में करीब 30 परसेंट शेयर है। चर्चा है कि अमेरिकी कंपनियों के लिए साल में 50 बिलियन डॉलर के टेंडर में भाग लेने का रास्ता खोला जा सकता है। ट्रेड डील के तहत यूके की कंपनियों को सरकार ने गुड्स, सर्विस और कंस्ट्रक्शन सैक्टर में हरी झंडी दे दी है। लेकिन यहां पेंच है। पेंच यह कि यूके को भी भारतीय कंपनियों के लिए अपने दरवाजे खोलने होंगे। भारत सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि इसे पॉलिसी शिफ्ट माना जाना चाहिए। भारत सरकारी खरीद के दरवाजे अपने पार्टनर देशों के लिए रेसिप्रोकल बेसिस पर खोलेगा। हालांकि यह रियायत केवल केंद्र सरकार के 50-60 बिलियन डॉलर के टेंडर के लिए ही दी जाएगी। इसके दायरे से राज्य और लोकल बॉडीज को अलग रखा जाएगा। सरकार का यह ऑफर बड़ा पॉलिसी शिफ्ट है क्योंकि भारत ने छोटे बिजनस को संरक्षण देने के लिए अब तक वल्र्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन के गवर्नमेंट प्रॉक्यॉरमेंट एग्रीमेंट को मंजूरी नहीं दी है। मार्च में भारत आए अमेरिका के ट्रेड रिप्रजेंटेटिव ने भी इस मुद्दे को उठाया बताया। कॉमर्स मिनिस्ट्री ने कहा है कि यूके की कंपनियों को नॉन-सेंसिटिव सैक्टर में लिमिटेड एक्सैस दिया जाएगा। यूके के सप्लायर भारत सरकार के 200 करोड़ रुपये के ज्यादा के टेंडर में भाग ले सकेंगे। यूके ने भी भारतीय कंपनियों को ऐसा ही मौका देने का वायदा किया है।