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21-06-2025

विदेशी इंवेस्टर्स के लिए बैंक ओनरशिप नियमों को आसान करेगा इंडिया

  •  आरबीआई बैंक ओनरशिप के नियमों में ढील देने पर विचार कर रहा है। आरबीआई का मानना है कि ओनरशिप नियमों में ढील देने से विदेशी संस्थाएं भारत के बैंकों में बड़ी हिस्सेदारी ले सकेंगी। यह कदम विदेशी निवेशकों की अधिग्रहण में रुचि और भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में लॉन्ग टर्म कैपिटल की जरूरत को ध्यान में रखकर लिया जा सकता है। आरबीआई ने पिछले महीने जापान के सुमितोमो मित्सुई बैंकिंग कॉर्पोरेशन को यस बैंक में 20 परसेंट शेयर खरीदने की अनुमति दी। दो विदेशी संस्थाएं आईडीबीआई बैंक में हिस्सेदारी खरीदने के लिए अखाड़े में उतरे हुए हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि भारत को बैंकिंग में फॉरेन ओनरशिप के नियमों को रिव्यू करने की जरूरत है। पिछले दिनों आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा था कि बैंकों में शेयरहोल्डिंग और लाइसेंसिंग नियमों की समीक्षा की जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार बैंकिंग रेगुलेटर आरबीआई वित्तीय संस्थानों को अधिक हिस्सेदारी रखने में मामले में लचीला रुख अपना सकता है। हालांकि यह एप्रूवल केस-टू-केस बेसिस पर होगा। कुछ नियमों में बदलाव करने पर भी विचार किया जा रहा है जिससे विदेशी अधिग्रहण के लिए बनी रोक-टोक को हटाया जा सके। एनालिस्टों का मानना है कि विदेशी बैंक भारत में एएंडए डील्स के लिए बड़े उत्सुक हैं। जब से भारत ने कई देशों के साथ रीजनल ट्रेड एग्रीमेंट्स को फास्ट्रेक किया है तब से एशिया और मिडिल ईस्ट के इंटरनेशनल बैंकों को भारत में नई अपॉर्चुनिटी नजर आ रही है। भारतीय बैंक संघ (आईबीए) के उपाध्यक्ष माधव नायर के अनुसार भारत की हाई इकोनॉमिक ग्रोथ और कम बैंकिंग पेनीट्रेशन के कारण विदेशी बैंक रुचि दिखा रहे हैं। बैंकिंग पूंजी जुटाने के मामले में भारत अभी भी अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से पीछे है। मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस की एसोसिएट मैनेजिंग डायरेक्टर अल्का अंबरासु का कहना है कि भारत को मीडियम टर्म में अपने बैंकिंग सिस्टम के लिए ज्यादा फंड की जरूरत होगी। हालांकि सिटीबैंक, एचएसबीसी, और स्टैंडर्ड चार्टर्ड जैसे कई इंटरवेशनल बैंक भारत में मौजूद हैं, लेकिन वे ज्यादातर कॉर्पोरेट बैंकिंग, ट्रांजैक्शन सर्विस और ट्रेडिंग तक सीमित हैं। ये आमजन को बैंकिंग और फाइनेेंस सर्विस नहीं देते।  आरबीआई के अनुसार भारत में बैंक क्रेडिट में विदेशी बैंकों का शेयर 4 परसेंट से भी कम है।  भारत में जहां पोर्टफोलियो निवेशकों सहित विदेशी निवेशक 74 परसेंट तक की हिस्सेदारी ले सकते हैं लेकिन किसी रणनीतिक विदेशी निवेशक के लिए यह सीमा 15 परसेंट ही है। इसके अलावा वोटिंग अधिकारों पर 26 परसेंट की लिमिट, 15 वर्ष के भीतर हिस्सेदारी घटाकर 26 परसेंट करने की अनिवार्यता विदेशी बैंकों को भारत के बैंकिंग सैक्टर में बड़ा दांव खेलने से रोक रही है। सूत्र के अनुसार यस बैंक डील की ही तर्ज पर आरबीआई हिस्सेदारी बेचने की समयसीमा में ढील देने पर विचार कर रहा है। यह 1.3 बिलियन डॉलर (लगभग 13,000 करोड़ रुपये) की डील भारत के फाइनेंस सैक्टर का अब तक का सबसे बड़ा क्रॉस-बॉर्डर अधिग्रहण है। कनाडा की फेयरफैक्स होल्डिंग्स और एमिरेट्स एनबीडी सरकारी आईडीबीआई बैंक में 60 परसेंट हिस्सेदारी के लिए मुकाबले में उतरे हुए हैं। एमिरेट्स एनबीडी को हाल ही में भारत में सब्सिडियरी बनाने का एप्रूवल दिया गया है। इस तरह यह डीबीएस (सिंगापुर) और स्टेट बैंक ऑफ मॉरिशस के बाद ऐसा करने वाला तीसरा प्रमुख विदेशी बैंक बन गया है।

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विदेशी इंवेस्टर्स के लिए बैंक ओनरशिप नियमों को आसान करेगा इंडिया

 आरबीआई बैंक ओनरशिप के नियमों में ढील देने पर विचार कर रहा है। आरबीआई का मानना है कि ओनरशिप नियमों में ढील देने से विदेशी संस्थाएं भारत के बैंकों में बड़ी हिस्सेदारी ले सकेंगी। यह कदम विदेशी निवेशकों की अधिग्रहण में रुचि और भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में लॉन्ग टर्म कैपिटल की जरूरत को ध्यान में रखकर लिया जा सकता है। आरबीआई ने पिछले महीने जापान के सुमितोमो मित्सुई बैंकिंग कॉर्पोरेशन को यस बैंक में 20 परसेंट शेयर खरीदने की अनुमति दी। दो विदेशी संस्थाएं आईडीबीआई बैंक में हिस्सेदारी खरीदने के लिए अखाड़े में उतरे हुए हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि भारत को बैंकिंग में फॉरेन ओनरशिप के नियमों को रिव्यू करने की जरूरत है। पिछले दिनों आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा था कि बैंकों में शेयरहोल्डिंग और लाइसेंसिंग नियमों की समीक्षा की जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार बैंकिंग रेगुलेटर आरबीआई वित्तीय संस्थानों को अधिक हिस्सेदारी रखने में मामले में लचीला रुख अपना सकता है। हालांकि यह एप्रूवल केस-टू-केस बेसिस पर होगा। कुछ नियमों में बदलाव करने पर भी विचार किया जा रहा है जिससे विदेशी अधिग्रहण के लिए बनी रोक-टोक को हटाया जा सके। एनालिस्टों का मानना है कि विदेशी बैंक भारत में एएंडए डील्स के लिए बड़े उत्सुक हैं। जब से भारत ने कई देशों के साथ रीजनल ट्रेड एग्रीमेंट्स को फास्ट्रेक किया है तब से एशिया और मिडिल ईस्ट के इंटरनेशनल बैंकों को भारत में नई अपॉर्चुनिटी नजर आ रही है। भारतीय बैंक संघ (आईबीए) के उपाध्यक्ष माधव नायर के अनुसार भारत की हाई इकोनॉमिक ग्रोथ और कम बैंकिंग पेनीट्रेशन के कारण विदेशी बैंक रुचि दिखा रहे हैं। बैंकिंग पूंजी जुटाने के मामले में भारत अभी भी अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से पीछे है। मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस की एसोसिएट मैनेजिंग डायरेक्टर अल्का अंबरासु का कहना है कि भारत को मीडियम टर्म में अपने बैंकिंग सिस्टम के लिए ज्यादा फंड की जरूरत होगी। हालांकि सिटीबैंक, एचएसबीसी, और स्टैंडर्ड चार्टर्ड जैसे कई इंटरवेशनल बैंक भारत में मौजूद हैं, लेकिन वे ज्यादातर कॉर्पोरेट बैंकिंग, ट्रांजैक्शन सर्विस और ट्रेडिंग तक सीमित हैं। ये आमजन को बैंकिंग और फाइनेेंस सर्विस नहीं देते।  आरबीआई के अनुसार भारत में बैंक क्रेडिट में विदेशी बैंकों का शेयर 4 परसेंट से भी कम है।  भारत में जहां पोर्टफोलियो निवेशकों सहित विदेशी निवेशक 74 परसेंट तक की हिस्सेदारी ले सकते हैं लेकिन किसी रणनीतिक विदेशी निवेशक के लिए यह सीमा 15 परसेंट ही है। इसके अलावा वोटिंग अधिकारों पर 26 परसेंट की लिमिट, 15 वर्ष के भीतर हिस्सेदारी घटाकर 26 परसेंट करने की अनिवार्यता विदेशी बैंकों को भारत के बैंकिंग सैक्टर में बड़ा दांव खेलने से रोक रही है। सूत्र के अनुसार यस बैंक डील की ही तर्ज पर आरबीआई हिस्सेदारी बेचने की समयसीमा में ढील देने पर विचार कर रहा है। यह 1.3 बिलियन डॉलर (लगभग 13,000 करोड़ रुपये) की डील भारत के फाइनेंस सैक्टर का अब तक का सबसे बड़ा क्रॉस-बॉर्डर अधिग्रहण है। कनाडा की फेयरफैक्स होल्डिंग्स और एमिरेट्स एनबीडी सरकारी आईडीबीआई बैंक में 60 परसेंट हिस्सेदारी के लिए मुकाबले में उतरे हुए हैं। एमिरेट्स एनबीडी को हाल ही में भारत में सब्सिडियरी बनाने का एप्रूवल दिया गया है। इस तरह यह डीबीएस (सिंगापुर) और स्टेट बैंक ऑफ मॉरिशस के बाद ऐसा करने वाला तीसरा प्रमुख विदेशी बैंक बन गया है।


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