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09-09-2025

जीएसटी कट से कंजम्प्शन बढ़ पाएगा सरपट?

  •  जीएसटी 2.0 को आजाद भारत के इतिहास में तीसरा बड़ा रिफॉर्म बताया जा रहा है। पहला 1991 का एलपीजी (लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन, ग्लोबलाइजेश), दूसरा जुलाई 2017 में वन नेशन वन टेक्स की थीम पर आया जीएसटी। जीएसटी के केवल दो स्लैब रखने से सरकार को हर साल लगभग 48 हजार करोड़ का रेवेन्यू लॉस उठाना पड़ेगा, लेकिन उम्मीद है कि इस घाटे की भरपाई 87,400 करोड़ की कंजम्पशन ग्रोथ से हो जाएगी। एनेलिस्ट कहते हैं कि हम हिंदुस्तानियों की कमाई एक रुपये बढ़ती है तो उसमें से 75 पैसे खर्च कर देते हैं। खर्च बढेगा को टेक्स मिलेगा और सरकार की उम्मीद इसी मल्टीप्लायर इफेक्ट के ट्रिगर होने से है। लेकिन असली चैलेंज टैक्स रिलीफ नहीं बल्कि क्रेडिट रिलीफ का है। पिछले दस साल में पर्सनल लोन 17 परसेंट की सीएजीआर से बढक़र जुलाई 2025 तक 61 लाख करोड़ तक पहुंच गए हैं। वहीं इंडिया इंक (बीएसई और एनएसई 500) का वेज बिल (सैलरी खर्च) इस दौरान केवल 10 परसेंट सीएजीआर से बढ़ा है। इसका सीधा अर्थ है कि कंजम्पशन में जो ग्रोथ दिख रही है वो सैलरी से नहीं बल्कि उधारी से हो रही है। क्रेडिट कार्ड पर बकाया 10 साल से 25 परसेंट सीएजीआर से बढ़ रहे हैं और अभी यह 2.91 लाख करोड़ रुपये पर हैं। भारत के 11.1 करोड़ क्रेडिट कार्ड यूजरों में से लगभग 25-26 परसेंट केवल मिनिमम पेमेंट करते हैं और 30-40 परसेंट बैलेंस को ईएमआई बदलते हैं। यानी करीब 35 परसेंट क्रेडिट कार्ड यूजर ही पूरा बकाया चुकाते हैं। पिछले साल क्रेडिट कार्ड से 5 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा कैश निकाला। गोल्ड लोन आठ साल में 25 हजार करोड़ से बढक़र 2.94 लाख करोड़ यानी 42 परसेंट सीएजीआर से बढ़ा है। एलआईसी ने वित्त वर्ष 25 में 1.28 लाख करोड़ के लोन पॉलिसियों पर दिए। ऑटो लोन 15 परसेंट सीएजीआर से बढ़ रहे हैं लेकिन 75 हजार से 1 लाख तक के टू-व्हीलर लोन में डिफॉल्ट बहुत हाई है। ट्रेजडी यह है कि भारत में होम लोन जीडीपी का केवल 11 परसेंट हैं जबकि नॉन-मॉर्टगेज पर्सनल लोन जीडीपी के 32 परसेंट हैं। स्मॉल टिकट पर्सनल लोन (25 हजार तक) में 7-8 परसेंट की डिफॉल्ट रेट है। बस इसीलिए सरकार की कंजम्पशन बढ़ाने की कवायद (जीएसटी 2.0) का सही रिटर्न मिलने को लेकर थोड़ी आशंका है। मिडलक्लास पर पहले से ही ईएमआई, क्रेडिट कार्ड और लोन का प्रेशर बहुत है। टैक्स कट का फायदा अक्सर तभी दिखता है जब डिस्पोजेबल (खर्च करने लायक आमदनी) इनकम में सहूलियत हो। एनेलिस्ट कहते हैं कि कंजम्पशन में रियल ग्रोथ तब दिखेगी जब सरकार एमएसएमई के लिए पैकेज लाएगी विशेषकर डायरेक्ट इनकम सपोर्ट देगी।

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जीएसटी कट से कंजम्प्शन बढ़ पाएगा सरपट?

 जीएसटी 2.0 को आजाद भारत के इतिहास में तीसरा बड़ा रिफॉर्म बताया जा रहा है। पहला 1991 का एलपीजी (लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन, ग्लोबलाइजेश), दूसरा जुलाई 2017 में वन नेशन वन टेक्स की थीम पर आया जीएसटी। जीएसटी के केवल दो स्लैब रखने से सरकार को हर साल लगभग 48 हजार करोड़ का रेवेन्यू लॉस उठाना पड़ेगा, लेकिन उम्मीद है कि इस घाटे की भरपाई 87,400 करोड़ की कंजम्पशन ग्रोथ से हो जाएगी। एनेलिस्ट कहते हैं कि हम हिंदुस्तानियों की कमाई एक रुपये बढ़ती है तो उसमें से 75 पैसे खर्च कर देते हैं। खर्च बढेगा को टेक्स मिलेगा और सरकार की उम्मीद इसी मल्टीप्लायर इफेक्ट के ट्रिगर होने से है। लेकिन असली चैलेंज टैक्स रिलीफ नहीं बल्कि क्रेडिट रिलीफ का है। पिछले दस साल में पर्सनल लोन 17 परसेंट की सीएजीआर से बढक़र जुलाई 2025 तक 61 लाख करोड़ तक पहुंच गए हैं। वहीं इंडिया इंक (बीएसई और एनएसई 500) का वेज बिल (सैलरी खर्च) इस दौरान केवल 10 परसेंट सीएजीआर से बढ़ा है। इसका सीधा अर्थ है कि कंजम्पशन में जो ग्रोथ दिख रही है वो सैलरी से नहीं बल्कि उधारी से हो रही है। क्रेडिट कार्ड पर बकाया 10 साल से 25 परसेंट सीएजीआर से बढ़ रहे हैं और अभी यह 2.91 लाख करोड़ रुपये पर हैं। भारत के 11.1 करोड़ क्रेडिट कार्ड यूजरों में से लगभग 25-26 परसेंट केवल मिनिमम पेमेंट करते हैं और 30-40 परसेंट बैलेंस को ईएमआई बदलते हैं। यानी करीब 35 परसेंट क्रेडिट कार्ड यूजर ही पूरा बकाया चुकाते हैं। पिछले साल क्रेडिट कार्ड से 5 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा कैश निकाला। गोल्ड लोन आठ साल में 25 हजार करोड़ से बढक़र 2.94 लाख करोड़ यानी 42 परसेंट सीएजीआर से बढ़ा है। एलआईसी ने वित्त वर्ष 25 में 1.28 लाख करोड़ के लोन पॉलिसियों पर दिए। ऑटो लोन 15 परसेंट सीएजीआर से बढ़ रहे हैं लेकिन 75 हजार से 1 लाख तक के टू-व्हीलर लोन में डिफॉल्ट बहुत हाई है। ट्रेजडी यह है कि भारत में होम लोन जीडीपी का केवल 11 परसेंट हैं जबकि नॉन-मॉर्टगेज पर्सनल लोन जीडीपी के 32 परसेंट हैं। स्मॉल टिकट पर्सनल लोन (25 हजार तक) में 7-8 परसेंट की डिफॉल्ट रेट है। बस इसीलिए सरकार की कंजम्पशन बढ़ाने की कवायद (जीएसटी 2.0) का सही रिटर्न मिलने को लेकर थोड़ी आशंका है। मिडलक्लास पर पहले से ही ईएमआई, क्रेडिट कार्ड और लोन का प्रेशर बहुत है। टैक्स कट का फायदा अक्सर तभी दिखता है जब डिस्पोजेबल (खर्च करने लायक आमदनी) इनकम में सहूलियत हो। एनेलिस्ट कहते हैं कि कंजम्पशन में रियल ग्रोथ तब दिखेगी जब सरकार एमएसएमई के लिए पैकेज लाएगी विशेषकर डायरेक्ट इनकम सपोर्ट देगी।


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