आजकल मिडिल से ऊपर की क्लास वाले पेरेंट्स अपने बच्चों की पढ़ाई नामी व मशहूर विदेशी कॉलेज या यूनिवर्सिटी से पूरी करवाना चाहते है और इसके लिए अपनी क्षमता से बाहर जाकर व्यवस्था करना फैशन बन रहा है। वास्तव में पेरेंट्स कॉलेज से ज्यादा सुरक्षित कॅरियर को ध्यान में रखकर बच्चों को मशहूर जगहों से ग्रेज्युएट करवाना चाह रहे हैं ताकि उन्हें बड़ी व ग्लोबल कंपनियों में आसानी से नौकरी मिल जाए। इस बढ़ते ट्रेंड के बीच ज्यादातर पेरेंट्स इस सवाल को भूल जाते है कि क्या नामी कॉलेज ही सफलता की गारंटी रह गए है या जो इन कॉलेजों तक नहीं पहुंच पाते, क्या वे अच्छा कॅरियर नहीं बना पाएंगे? यह सच है और कई रिसर्च भी बताती है कि आजकल नामी कॉलेज से ग्रेज्युएट होने के बावजूद शानदार कॅरियर बना पाना किसी लॉटरी लगने से कम नहीं रहा और कॅरियर के इस सुरक्षित माने जाने वाले सफर में रूकावटें भी बहुत है। ज्यादातर पेरेंट्स व स्टूडेंट इस भ्रम में है कि हार्वर्ड जैसे मशहूर कॉलेजों से पढक़र निकलने वाले सभी ग्रेज्युएट सबसे ज्यादा कमाने वालों की कैटेगरी में आसानी से शामिल हो जाते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि भले ही हार्वर्ड जैसे कॉलेज अच्छे कॅरियर का दरवाजा खोलते हो, लेकिन हर ग्रेज्युएट के लिए शुरुआत में स्थितियां एक जैसी ही होती है चाहे वो हार्वर्ड से पढ़ा हो या किसी आम सरकारी या प्राइवेट कॉलेज से। हार्वर्ड जैसे टॉप कॉलेज कॅरियर की अच्छी शुरुआत जरूर दे देते है, लेकिन कई मामलों में आम कॉलेजों से पढ़े स्टूडेंट कॅरियर में ज्यादा सफल भी हुए है व ज्यादा कमाई भी कर पा रहे है। आजकल सोसाइटी में इनकम के हिसाब से टॉप पर आने वाले पेरेंट्स को इस बात की चिंता सताने लगी है कि उनका बच्चा अगर नामी व मशहूर कॉलेज से ग्रेज्युएट नहीं हो पाया तो वह उनकी जैसी लाइफस्टाइल को मैंटेंन नहीं कर पाएगा यानि उन्हें अपने बच्चों द्वारा अच्छी कमाई कर पाने की गारंटी सिर्फ टॉप कॉलेजों में ही दिखाई देती है। AI के डर में उलझ चुके कई अमीर कारोबारी घराने अपने बच्चों के लिए नामी कॉलेज की डिग्री को इंश्योरेंस पॉलिसी मानने लगे हैं। दुनिया के टॉप 50 कॉलेजों में एडमिशन दिलवाने का दावा करने वाले Counselor भी पेरेंट्स व स्टूडेंट को यही समझाते है कि अगर उनका बच्चा इन कॉलेजों से ग्रेज्युएट नहीं हुआ तो Mckinsey जैसी कंसल्टिंग कंपनियों में नौकरी नहीं मिलेगी। अभी बड़ी व ग्लोबल कंपनियों में छंटनी का दौर चल रहा है व ये कंपनियां नई नौकरियां देने में भी ‘कारोबारी’ दिमाग से सोचने लगी है यानि यह देखने लगी है कि नया ग्रेज्युएट उन्हें जल्दी से जल्दी कितना फायदा दे सकता है। पहले की तरह अब इन कंपनियों के दरवाजे पूरी तरह खुले नहीं रहते और इन आधे-अधूरे खुले दरवाजों में ज्यादातर वे गे्रज्युएट ही एंट्री पा रहे जो या तो कंपनी में काम कर रहे किसी व्यक्ति के जानकार है या हार्वर्ड जैसे कॉलेजों के Alumini नेटवर्क की सिफारिश के साथ आए है। एक स्टडी में पता चला कि Fortune 500 कंपनियों की कमान संभाल रहे CEO में से सिर्फ 34 ही नामी व मशहूर कॉलेजों से पढ़े है जबकि अन्य कॉलेजों से ग्रेज्युएट हुए 378 लोग भी ऐसी कंपनियों को सफलता से चला रहे है। हकीकत यह है कि मशहूर कॉलेज में एडमिशन के खेल को जीतने के चक्कर में लोग कॅरियर जैसे जीवन में कभी न खत्म होने वाले खेल को समय रहते उतना महत्व नहीं दे पा रहे हैं। मशहूर कॉलेज में एंट्री लॉटरी के समान है जो कोई भी जीत सकता है पर शानदार सफलता वाला लाखों में एक जैसे कॅरियर का जैकपाट हासिल करने के लिए नामी कॉलेज की डिग्री से ज्यादा Luck व Hard Work का आपसी तालमेल जरूरी है जो मशहूर कॉलेजों सहित किसी के कंट्रोल में नहीं है।