करोड़ों छोटे भारतीय रिटेलर का प्रतिनिधित्व करने वाले कई संगठनों ने सरकार से आग्रह किया है कि वह अमेजन की उस अपील को अस्वीकार कर दे जिसमें ई-कॉमर्स दिग्गज ने निर्यात क्षेत्र में विदेशी निवेश नियमों को आसान बनाने की मांग की है। यह विरोध उस समय बढ़ रहा है जब इस विवादास्पद नीति परिवर्तन पर बहस तेज हो गई है। भारत में मौजूदा नियमों के तहत अमेजन और वॉलमार्ट जैसी कंपनियों को कस्टमर को सीधे सामान बेचने या अपने पास माल रखने की अनुमति नहीं है। वे केवल एक ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म चला सकती हैं, जहां बायर को वेंडर के साथ जोड़ा जाता है और कंपनी बदले में शुल्क वसूलती है। यही प्रतिबंध निर्यात पर भी लागू होता है। रिपोर्ट के मुताबिक अमेजन लंबे समय से सरकार पर दबाव बना रही है कि इन नियमों से निर्यात क्षेत्र को छूट दी जाए। ऐसा होने पर अमेजन इंडिया खुद वेंडर से माल खरीदकर सीधे इंटरनेशनल ग्राहकों को बेच सकेगी। यह नियम वर्ष से नई दिल्ली और वॉशिंगटन के बीच मतभेद का कारण रहा है, खासकर तब जब दोनों देश व्यापार समझौते को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। स्विट्जरलैंड स्थित मजदूर संगठन यूएनआई ग्लोबल और भारत के 30 से अधिक किसान व रिटेलर समूहों ने वाणिज्य मंत्रालय को लिखे पत्र में कहा कि यदि अमेजन को सीधे उत्पाद खरीदने की अनुमति दी जाती है तो छोटे व्यापारियों के कारोबार पर गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा। पत्र में चेतावनी दी गई कि अमेजन अपने बड़े खरीद तंत्र के दम पर प्राइसिंग पर कंट्रोल कर लेगा और छोटे रिटेलरों को खत्म कर सकता है। गौरतलब है कि भारत के प्रतिस्पर्धा आयोग ने पिछले वर्ष जांच में पाया था कि अमेजन ने प्रतिस्पर्धा कानूनों का उल्लंघन किया, जिसमें वह अपने चहेते वेंडरों को बढ़ावा देता है और उत्पादों को लागत से भी कम दाम पर बेचकर मार्केट को खराब कर रहा है। बीते महीने अधिकारियों के साथ एक बैठक में अमेजन ने तर्क दिया कि यदि उसे निर्यात के लिए सीधे उत्पाद बेचने की अनुमति दी जाती है, तो इससे छोटे वेंडरों को फायदा होगा। कंपनी का कहना था कि वह कस्टम क्लियरेंस जैसी प्रक्रियाओं में मदद करेगी और विक्रेताओं को इंटरनेशनल बाजारों तक पहुुंच मिलेगी। भारत का ई-कॉमर्स क्षेत्र आने वाले वर्षों में तेजी से बढऩे की संभावना है और अनुमान है कि यह 2030 तक 345 बिलियन डॉलर के स्तर को पार कर जाएगा।