ऑइल लॉबी तीसरी बार एक्टिव हो गई लगती है। अमेरिका में पिछली सदी के पहले तीन दशकों में पैसेंजर वेहीकल इंडस्ट्री पर इलेक्ट्रिक कार का ही दबदबा था। फिर एक्सॉन सहित कई अन्य ऑइल कंपनियों को तेल का खजाना मिल गया जिसके लिए उन्हें ऐसे कस्टमर सैगमेंट की जरूरत थी जो ऑइल पर निर्भर हो। बस पैसा फूंका और पूरी ऑटो इंडस्ट्री ईवी से आइस हो गई। दूसरा मौका तब आया जब 60 के दशक में अरब-इजराइल के बीच हुए योम किप्पुर वॉर के दौरान इजराइल का सपोर्ट करने के चलते अरब देशों ने अमेरिका का ऑइल ब्लॉकेड कर दिया था। हालत ऐसी हुई कि अमेरिका में पेट्रोल पंपों पर जानवर लोटने लगे थे। कई साल तक ईवी में बड़ा इंवेस्टमेंट हुआ, फिर ऑइल लॉबी एक्टिव हुई और ईवी बट्टेखाते चली गई। अब अमेरिका में ट्रंप के आने के बाद कुछ ऐसा ही हो रहा। ड्रिल बेबी ड्रिल वाले ट्रंप खुलेआम ऑइल लॉबी के लिए खेल रहे हैं और उन्होंने अमेरिका मेें आइस कारों को कैफे नॉम्र्स से मुक्ति दे दी है। एक लेटेस्ट रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल मार्केट में एक बार फिर ईवी से आइस की ओर हवा बह रही है। प्रोफेशनल सर्विसेज फर्म अन्स्र्ट एंड यंग ने कहा है कि यह बदलाव केवल टेक्नोलॉजी से नहीं, बल्कि पॉलिसी शिफ्ट, जियोपॉलिटिकल टेंशन और ईवी इंफ्रास्ट्रक्चर में गैप के कारण हो रहा है। यूूरोपियन यूनियन का 2035 तक आइस कार फेज-आउट प्लान पंचर होने लगा है। नए ड्राफ्ट में 2035 के फुल जीरो एमिशन के टार्गेट को आगे सरका कर 2040 किए जाने की चर्चा है, और हाइब्रिड को लॉन्ग रोप (ज्यादा मौका) देने की बात चल रही है। अन्स्र्ट एंड यंग के ग्लोबल मोबिलिटी प्रैक्टिस हेड कॉन्स्टेंटिन एम गॉल के अनुसार, ईवी का अडॉप्शन उम्मीद से कम रहा है। वर्ष 2024 में ग्लोबल लेवल पर ईवी का कुल न्यू कार सेल्स में शेयर लगभग 18 परसेंट रहा जबकि इंडस्ट्री का टार्गेट 25-30 परसेंट का था। चीन में भले ही ईवी का शेयर 35 परसेंट के करीब पहुंच चुका हो, लेकिन वहां बायर पावरट्रेन के बजाय डिजिटल इंटीग्रेशन पर फोकस कर रहे हैं।
डेटा में डुबकी : अन्स्र्ट एंड यंग के सर्वे के अनुसार अगले 24 महीनों में करीब 50 परसेंट ग्लोबल कार बायर नई या सेकंड-हैंड कारपेट्रोल या डीजल वाली खरीदने का प्लान कर रहे हैं। जबकि 2024 में ऐसा प्लान करने वाले केवल 37 परसेंट थे। इसी तरह बैटरी ईवी खरीदने की इच्छा 24 परसेंट से घटकर 14 परसेंट रह गई है। हाइब्रिड कारों की पसंद 21 परसेंट से गिरकर 16 परसेंट रह गई। जो बायर पहले पहले ईवी खरीदने का प्लान कर रहे थे उनमें से 36 परसेंट अब फैसला टाल रहे हैं या प्लान कैंसल कर चुके हैं। रिपोर्ट के अनुसार मामला कंज्यूमर बिहेवियर का कम और ग्लोबल ट्रेड बैलेंस का ज्यादा है। वर्ष 2023 में चीन ने करीब 12 लाख ईवी एक्सपोर्ट की थीं, जबकि 39 लाख आइस कार। वर्ष 2024 में यह बढक़र लगभग 45 लाख हो गया। इसी से अमेरिका, यूरोप, जापान और कोरिया की लीगेसी कंपनियों की जान हलक में अटकी हुई है। चीन को रोकने की कोशिश की इस ट्रेंड को हवा दे रही लगती है। अमेरिका ने चीनी ईवी पर 100 परसेंट और यूरोप ने 17-38 परसेंट अतिरिक्त इंपोर्ट ड्यूटी लगाी है। इसके बावजूद चीन की पेट्रोल-डीजल कार लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और आसियान मार्केट से अमेरिकी और यूरोपीय ब्रांड्स को बाहर कर रही हैं। ऑटो कंपनियों का कहना है कि उन्हें ट्रांजिशन (आइस से ईवी) के लिए कम से कम 10-15 साल का समय चाहिए, लेकिन ग्रीन ग्रुप्स का दावा है कि यदि 2030 तक ईवी का शेयर 50 परसेंट से ऊपर नहीं गया तो सीओ2 एमिशन रिडक्शन के ग्लोबल टारगेट लगभग असंभव हो जाएंगे।