भारत अगले दशक में घरेलू खनन के जरिये अपनी स्वर्ण मांग का लगभग 20 परसेंट पूरा कर सकता है, जिससे वह वैश्विक बाजार में प्राइस-मेकर बनने की दिशा में आगे बढ़ सकेगा। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के इंडिया के सीईओ सचिन जैन ने एक जेम्स एंड ज्यूलरी कॉन्फ्रेंस में कहा कि, पर्याप्त घरेलू खनन और मजबूत गोल्ड बैंकिंग सिस्टम के अभाव में भारत अभी तक वैश्विक कीमतों का ‘प्राइस-टेकर’ बना हुआ है। उन्होंने उद्योग मंडल चैंबर ऑफ कॉमर्स ऑफ इंडिया (सीसीआई) के सम्मेलन में कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक की पहल और बैंकिंग प्रणाली के विकास के साथ भारत की ग्लोबल गोल्ड प्राइस पर पकड़ मजबूत होगी और यह प्राइस मेकर बनने का आगे बढ़ेगा। भारत अभी सोने की कीमतें खुद तय नहीं करता है और वह विदेशी बाजारों में तय होने वाली कीमतों को मानने के लिए मजबूर होने की वजह से प्राइस-टेकर है। लेकिन घरेलू स्तर पर सोने का खनन बढऩे से वह इसकी कीमतों को भी प्रभावित या तय करने की क्षमता हासिल कर लेगा, जो कि प्राइस-मेकर होगा। आदित्य बिड़ला समूह की नोवेल ज्वेल्स के सीईओ संदीप कोहली के अनुसार भारतीय उपभोक्ताओं के पास करीब 25,000 टन सोना है, जबकि सरकार के पास केवल 800 टन सोना मौजूद है। सोने की इतनी बड़ी खपत होने के बावजूद कीमतों परभारत का प्रभाव सीमित है। एमएमटीसी-पीएएमपी इंडिया के सीईओ समित गुहा ने कहा कि, ग्लोबल कंपीटिशन के लिए ओईसीडी और एलबीएमए जैसे मानकों को अपनाना जरूरी है और 24 कैरेट सोने की ईंट एवं सिल्ली के एक्सपोर्ट पर लगा बैन भी हटाया जाना चाहिए।