TOP

ई - पेपर Subscribe Now!

ePaper
Subscribe Now!

Download
Android Mobile App

Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

11-07-2025

KGF गोल्डमाइन में फिर लौटेगी शाइन

  •  करीब 24 साल पहले बंद कर दी गई कर्नाटक की ऐतिहासिक कोलार गोल्ड फील्ड्स (केजीएफ) एक बार फिर सरकार की नजर में आ गई है। खान मंत्रालय ने इन सुनसान पड़ी खदानों में जमा सोने से भरपूर मिल टेलिंग्स (बचे हुए रसायनयुक्त रेत के टीले) की नीलामी प्रक्रिया शुरू कर दी है। रिपोर्ट के अनुसार, इन टेलिंग्स का वैल्यूएशन करीब 30 हजार करोड़ रुपये है। इन टेलिंग्स में अब भी सोने के अवशेष के साथ-साथ पैलेडियम और रॉडियम जैसे प्रेशियस मेटल ग्रुप (प्लैटिनम ग्रुप एलिमेंट्स) मौजूद हैं। इनकी नीलामी प्रक्रिया के लिए एसबीआई कैप्स को ट्रांजैक्शनल एडवाइजर नियुक्त किया गया है और यह प्रक्रिया 18-24 महीनों में पूरी होने की उम्मीद है। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार यदि इन टेलिंग्स से एक टन सोना भी निकल आया तो भी फायदे का सौदा होगा क्योंकि 1 ग्राम सोना 9 हजार रुपये का है। 2021 की एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, इन टेलिंग्स से प्रति टन 2 ग्राम तक सोना और पैलेडियम निकाला जा सकता है। अनुमानत: 3 करोड़ टन टेलिंग्स में 6 हजार प्रति ग्राम की दर से 36 हजार करोड़ बनते हैं। यदि रॉडियम को भी शामिल किया जाए, तो यह और अधिक हो सकती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस बार बचे हुए मेटल को रिकवर करने के लिए साइनाइड-रहित तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा।  वर्ष 2001 में बंद हुई भारत गोल्ड माइन्स लि. के स्वामित्व वाली भूमि पर ये टेलिंग्स स्थित हैं। जून 2024 में कर्नाटक सरकार ने नीलामी को मंजूरी दी थी। कंपनी के कर्मचारियों का एक संगठन भी इस खदान को फिर शुरू करने की मांग कर रहा है और उन्होनें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी मास्टर प्लान सौंपा है। एक रिपोर्ट के अनुसार इस खदान से हर साल 100 टन सोने का उत्पादन हो सकता है। हालांकि 2001 में बंद होने के बाद से 1,400 किलोमीटर लंबी सुरंगों में साइनाइड मिला पानी जमा हो चुका है और ज्यादातर मशीनें जंग खा चुकी हैं ऐसे में शुरुआत में बड़े इंवेस्टमेंट की जरूरत होगी। कोलार गोल्ड फील्ड्स यानी केजीएफ कभी ठंडे मौसम, यूरोपीय आर्किटेक्चर और एंग्लो-इंडियन आबादी के चलते  ‘मिनी इंग्लैंड’ कहा जाता था। यहां एशिया की पहली विद्युत-चालित खदान चलाई गई थी और दुनिया की दूसरी सबसे गहरी सोने की खान स्थित थी। 1902 में ब्रिटिश सरकार ने शिवानासमुद्र में जलविद्युत संयंत्र स्थापित कर केजीएफ को बिजली दी थी। वर्ष 1903 में बनाई गई रॉबर्टसनपेट, भारत की शुरुआती नियोजित बस्तियों में से एक थी। वर्ष 1930 तक, यहां 30 हजार से अधिक लोग खानों में काम करते थे। 

Share
KGF गोल्डमाइन में फिर लौटेगी शाइन

 करीब 24 साल पहले बंद कर दी गई कर्नाटक की ऐतिहासिक कोलार गोल्ड फील्ड्स (केजीएफ) एक बार फिर सरकार की नजर में आ गई है। खान मंत्रालय ने इन सुनसान पड़ी खदानों में जमा सोने से भरपूर मिल टेलिंग्स (बचे हुए रसायनयुक्त रेत के टीले) की नीलामी प्रक्रिया शुरू कर दी है। रिपोर्ट के अनुसार, इन टेलिंग्स का वैल्यूएशन करीब 30 हजार करोड़ रुपये है। इन टेलिंग्स में अब भी सोने के अवशेष के साथ-साथ पैलेडियम और रॉडियम जैसे प्रेशियस मेटल ग्रुप (प्लैटिनम ग्रुप एलिमेंट्स) मौजूद हैं। इनकी नीलामी प्रक्रिया के लिए एसबीआई कैप्स को ट्रांजैक्शनल एडवाइजर नियुक्त किया गया है और यह प्रक्रिया 18-24 महीनों में पूरी होने की उम्मीद है। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार यदि इन टेलिंग्स से एक टन सोना भी निकल आया तो भी फायदे का सौदा होगा क्योंकि 1 ग्राम सोना 9 हजार रुपये का है। 2021 की एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, इन टेलिंग्स से प्रति टन 2 ग्राम तक सोना और पैलेडियम निकाला जा सकता है। अनुमानत: 3 करोड़ टन टेलिंग्स में 6 हजार प्रति ग्राम की दर से 36 हजार करोड़ बनते हैं। यदि रॉडियम को भी शामिल किया जाए, तो यह और अधिक हो सकती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस बार बचे हुए मेटल को रिकवर करने के लिए साइनाइड-रहित तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा।  वर्ष 2001 में बंद हुई भारत गोल्ड माइन्स लि. के स्वामित्व वाली भूमि पर ये टेलिंग्स स्थित हैं। जून 2024 में कर्नाटक सरकार ने नीलामी को मंजूरी दी थी। कंपनी के कर्मचारियों का एक संगठन भी इस खदान को फिर शुरू करने की मांग कर रहा है और उन्होनें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी मास्टर प्लान सौंपा है। एक रिपोर्ट के अनुसार इस खदान से हर साल 100 टन सोने का उत्पादन हो सकता है। हालांकि 2001 में बंद होने के बाद से 1,400 किलोमीटर लंबी सुरंगों में साइनाइड मिला पानी जमा हो चुका है और ज्यादातर मशीनें जंग खा चुकी हैं ऐसे में शुरुआत में बड़े इंवेस्टमेंट की जरूरत होगी। कोलार गोल्ड फील्ड्स यानी केजीएफ कभी ठंडे मौसम, यूरोपीय आर्किटेक्चर और एंग्लो-इंडियन आबादी के चलते  ‘मिनी इंग्लैंड’ कहा जाता था। यहां एशिया की पहली विद्युत-चालित खदान चलाई गई थी और दुनिया की दूसरी सबसे गहरी सोने की खान स्थित थी। 1902 में ब्रिटिश सरकार ने शिवानासमुद्र में जलविद्युत संयंत्र स्थापित कर केजीएफ को बिजली दी थी। वर्ष 1903 में बनाई गई रॉबर्टसनपेट, भारत की शुरुआती नियोजित बस्तियों में से एक थी। वर्ष 1930 तक, यहां 30 हजार से अधिक लोग खानों में काम करते थे। 


Label

PREMIUM

CONNECT WITH US

X
Login
X

Login

X

Click here to make payment and subscribe
X

Please subscribe to view this section.

X

Please become paid subscriber to read complete news