उत्तर भारत में रुक-रुक कर अच्छी बरसात होने से इस बार मक्की की फसल भरपूर आने के बावजूद भी तैयार माल भीग जाने से मंडियों में शॉर्टेज की स्थिति बन गई है। दूसरी ओर खपत वाले उद्योगों की लगातार लिवाली से बाजार बढऩे लगा है तथा इसमें चालू माह के अंतराल ही 100 रुपए प्रति क्विंटल की तेजी के आसार बन गए हैं। गौरतलब है कि मक्की की फसल प्रांतवार रबी व खरीफ की सीजन में अलग-अलग महीनों में आती है। गर्मी की मुख्य फसल बिहार में आने वाली पूरी तरह समाप्त हो गई है तथा वहां भी फसल तैयार होने पर बरसात के चलते बढिय़ा माल की कमी रही है। यही कारण है कि गुलाब बाग दरभंगा खगडिय़ा बेगूसराय पानीपतरा पूर्णिया सेमापुर आदि सभी उत्पादक क्षेत्रों के गोदाम पूरी तरह इस बार भर नहीं पाए थे। उसके बाद यूपी के कासगंज उझानी एटा आदि क्षेत्रों में मक्की आने लगी, लेकिन यहां भी फसल तैयार होने के साथ ही अब तक बरसात रुक रुक कर हो रही है। यही कारण है कि उत्पादन अधिक होने के बावजूद भी मंडियों में सूखी मक्की की भारी कमी बन गई है, जिस कारण अभी एक सप्ताह के अंतराल ही 45/50 रुपए बढक़र मंडियों में लूज भाव 2050/2060 रुपए प्रति क्विंटल हो गए हैं तथा रैक पॉइंट पर 2130/2150 रुपए प्रति कुंतल के बीच मकई के भाव बोलने लगे हैं तथा इन भावों में भी प्रचुर मात्रा में माल नहीं मिल पा रहा है। हरियाणा पंजाब पहुंच में बिहार की मक्की जो 2550/2575 रुपए प्रति क्विंटल पिछले महीने बिकी थी, उसके भाव 2640/2650 रुपए प्रति क्विंटल हो गए हैं। इसके अलावा यूपी की मक्की भी 2450 रुपए से बढक़र हरियाणा पंजाब पहुंच में 2500 रुपए हो गई है, बढिय़ा यूपी की सूखी मक्की 2535 रुपए तक भी बिकने की खबर मिल रही है। इसके बाद मध्य प्रदेश राजस्थान की मक्की अक्टूबर से शुरू होती है, लेकिन वहां भी इस बार बिजाई कम हुई है तथा बिजाई की हुई फसल भी अधिक बरसात से खेतों में गल गई है, इन परिस्थितियों में एमपी महाराष्ट्र की फसल में भी पोल का अंदेशा बन गया है। यही कारण है कि जिस भाव पर यूपी की मक्की यहां बिक रही है, इसमें आगे चलकर कारोबारी को भरपूर लाभ मिलने की संभावना है।