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01-03-2025

फार्म सैक्टर में घट रहा मॉनसून का फैक्टर

  •  सऊदी का एक तिहाई यानी करीब 6.25 लाख वर्ग किमी रेगिस्तान है। लेकिन 2023 में सऊदी में 17 लाख मेट्रिक टन अनाज का उत्पादन हुआ।  इसका सीधा अर्थ है कि एग्रीकल्चर प्रॉडक्शन का अब नेचर के पहले जितना लेना देना नहीं रहा। इजरायल का उदाहरण आपके सामने है। भारत में भी कुछ ऐसा ही ट्रेंड दिखने लगा है क्योंकि रेनफॉल और एग्रीकल्चर यील्ड पहले जितनी डायरेक्टली प्रोपोर्शनल (सीधा समानुपात यानी एक बढ़ता है तो दूसरा भी बढ़ता है) नहीं रही। सीधी बात करें तो जब बारिश कम होती है तो जिंस उत्पादन भी घटता है लेकिन वर्ष 2012-13 औस 2022-23 के डेटा का एनेलिसिस करने से पता चलता है कि रेनफॉल का और जिन्स उत्पादन पर थोड़ा बहुत ही पॉजिटिव असर पड़ता है। उत्पादन पर असर भले ही कम पड़े लेकिन फूड प्राइस, बिजली, सिंचाई और फर्टिलाइजर की उपलब्धता आदि का संबंध बहुत गहरा है। सिर्फ 46 परसेंट सिंचित भूमि वाला गुजरात दुनिया का सबसे बड़ा प्रॉसेस्ड पटेटो प्रॉडक्ट्स (चिप्स, वेफर्स और फ्रेंच फ्राइ•ा) का सबसे बड़ा प्रॉड्यूसर है। ट्रेड फोरम पीएचडीसीसीआई के एक आंकलन के अनुसार भारत के फूडग्रेन प्रॉडक्शन पर रेनफॉल से भी ज्यादा असर अब फूडग्रेन प्राइस, बिजली, सिंचाई और फर्टिलाइजर की उपलब्धता का पड़ता है। इंडियाज एग्रीकल्चरल ट्रांसफॉर्मेशन: फ्रॉम फूड स्कैरसिटी टू सरप्लस नाम की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्ष के आंकड़ों के हिसाब से देखें तो बारिश का उत्पादन पर बहुत गहरा असर नहीं पड़ रहा। यह तब है जब भारत को मॉनसूनी खेती वाला देश माना जाता है। भारत सरकार के आंकड़े कहते हैं कि वर्ष 2022-23 में देश की 7.30 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि यानी 52 परसेंट ही सिंचित है जो वर्ष 2014 में 43 परसेंट थी। देश में कुल जोत 14.10 करोड़ हेक्टेयर की है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वेयरहाउसिंग की उपलब्धता का फूड ग्रेन प्रॉडक्शन पर बारिश से भी ज्यादा असर पड़ता है। जब गोदाम खाली होता है तो ज्यादा उत्पादन होता है और जब गोदाम में जगह नहीं होती तो किसान बुआई से बचता है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में भारत का फूड प्रॉसेसिंग सैक्टर 307 बिलियन डॉलर का था जो 2030 तक दोगुना से भी ज्यादा बढक़र 700 बिलियन डॉलर का हो जाएगा और इसका बड़ा कारण देश में प्रॉसेस्ड फूड की बढ़ रही डिमांड है। जैसे-जैसे देश में कंजम्पशन इकोनॉमी का विस्तार होगा वैसे वैसे इस सैक्टर का आगे भी विस्तार होता जाएगा और 2035 तक यह 1100 बिििलयन डॉलर और 2047 तक 2150 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा।

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फार्म सैक्टर में घट रहा मॉनसून का फैक्टर

 सऊदी का एक तिहाई यानी करीब 6.25 लाख वर्ग किमी रेगिस्तान है। लेकिन 2023 में सऊदी में 17 लाख मेट्रिक टन अनाज का उत्पादन हुआ।  इसका सीधा अर्थ है कि एग्रीकल्चर प्रॉडक्शन का अब नेचर के पहले जितना लेना देना नहीं रहा। इजरायल का उदाहरण आपके सामने है। भारत में भी कुछ ऐसा ही ट्रेंड दिखने लगा है क्योंकि रेनफॉल और एग्रीकल्चर यील्ड पहले जितनी डायरेक्टली प्रोपोर्शनल (सीधा समानुपात यानी एक बढ़ता है तो दूसरा भी बढ़ता है) नहीं रही। सीधी बात करें तो जब बारिश कम होती है तो जिंस उत्पादन भी घटता है लेकिन वर्ष 2012-13 औस 2022-23 के डेटा का एनेलिसिस करने से पता चलता है कि रेनफॉल का और जिन्स उत्पादन पर थोड़ा बहुत ही पॉजिटिव असर पड़ता है। उत्पादन पर असर भले ही कम पड़े लेकिन फूड प्राइस, बिजली, सिंचाई और फर्टिलाइजर की उपलब्धता आदि का संबंध बहुत गहरा है। सिर्फ 46 परसेंट सिंचित भूमि वाला गुजरात दुनिया का सबसे बड़ा प्रॉसेस्ड पटेटो प्रॉडक्ट्स (चिप्स, वेफर्स और फ्रेंच फ्राइ•ा) का सबसे बड़ा प्रॉड्यूसर है। ट्रेड फोरम पीएचडीसीसीआई के एक आंकलन के अनुसार भारत के फूडग्रेन प्रॉडक्शन पर रेनफॉल से भी ज्यादा असर अब फूडग्रेन प्राइस, बिजली, सिंचाई और फर्टिलाइजर की उपलब्धता का पड़ता है। इंडियाज एग्रीकल्चरल ट्रांसफॉर्मेशन: फ्रॉम फूड स्कैरसिटी टू सरप्लस नाम की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्ष के आंकड़ों के हिसाब से देखें तो बारिश का उत्पादन पर बहुत गहरा असर नहीं पड़ रहा। यह तब है जब भारत को मॉनसूनी खेती वाला देश माना जाता है। भारत सरकार के आंकड़े कहते हैं कि वर्ष 2022-23 में देश की 7.30 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि यानी 52 परसेंट ही सिंचित है जो वर्ष 2014 में 43 परसेंट थी। देश में कुल जोत 14.10 करोड़ हेक्टेयर की है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वेयरहाउसिंग की उपलब्धता का फूड ग्रेन प्रॉडक्शन पर बारिश से भी ज्यादा असर पड़ता है। जब गोदाम खाली होता है तो ज्यादा उत्पादन होता है और जब गोदाम में जगह नहीं होती तो किसान बुआई से बचता है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में भारत का फूड प्रॉसेसिंग सैक्टर 307 बिलियन डॉलर का था जो 2030 तक दोगुना से भी ज्यादा बढक़र 700 बिलियन डॉलर का हो जाएगा और इसका बड़ा कारण देश में प्रॉसेस्ड फूड की बढ़ रही डिमांड है। जैसे-जैसे देश में कंजम्पशन इकोनॉमी का विस्तार होगा वैसे वैसे इस सैक्टर का आगे भी विस्तार होता जाएगा और 2035 तक यह 1100 बिििलयन डॉलर और 2047 तक 2150 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा।


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