दुनिया भर में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की अनुमानित डिमांड को पूरा करने के लिए वर्ष 2030 तक आवश्यक कंप्यूटिंग पावर को फंड करने के लिए सालाना आधार पर कम से कम 2 ट्रिलियन डॉलर रेवेन्यू की आवश्यकता होगी। यह जानकारी एक रिपोर्ट में दी गई। बेन एंड कंपनी के नए रिसर्च के अनुसार, एआई से जुड़ी सेविंग के साथ भी दुनिया को डिमांड के साथ तालमेल रखने के लिए 800 बिलियन डॉलर की कमी पड़ती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक ग्लोबल लेवल पर एआई कंप्यूटिंग की डिमांड 200 गीगावॉट तक पहुंच सकती है, जिसमें अमेरिका की हिस्सेदारी लगभग आधी होगी। अगर अमेरिका में काम करने वाली कंपनियां भी अपना ऑन-प्रिमाइस आईटी बजट क्लाउड में शिफ्ट करती हैं और सेल्स, मार्केटिंग, कस्टमर सपोर्ट, आरएंडडी में एआई को अप्लाई कर सेविंग को नए डेटा सेंटर पर कैपिटल स्पेंडिंग में दोबारा निवेश करें तो भी पूरे निवेश को फंड करने के लिए रेवेन्यू कम पड़ेगा क्योंकि एआई की कंप्यूटिंग डिमांड तेजी से बढ़ रही है। बेन के ग्लोबल टेक्नोलॉजी प्रैक्टिस के चेयरमैन डेविड क्राफोर्ड ने कहा कि वर्ष 2030 तक टेक्नोलॉजी के अधिकारी लगभग 500 बिलियन डॉलर के पूंजीगत व्यय को लागू करने और मांग को मुनाफे के साथ पूरा करने के लिए लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर का नया राजस्व जुटाने की चुनौती का सामना करेंगे। एआई कंप्यूटिंग की मांग सेमीकंडक्टर की क्षमता से भी तेज गति से बढ़ रही है, इसलिए ऐसे ट्रेंड सामने आ रहे हैं कि दशकों से क्षमता न जोडऩे वाले ग्रिड में भी पावर सप्लाई में भारी वृद्धि की जरूरत होगी। बेन की एक स्टडी में पाया गया कि टैरिफ, एक्सपोर्ट कंट्रोल और दुनियाभर की सरकारों द्वारा स्वदेशी एआई को बढ़ावा देने की कोशिश से ग्लोबल टेक्नोलॉजी सप्लाई चेन का विघटन तेजी से बढ़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, जैसे-जैसे कम्प्यूटेशनल डिमांड बढ़ती जा रही है, प्रमुख कंपनियां एआई क्षमताओं के परीक्षण से आगे बढक़र अब एआई से लाभ कमाने की ओर बढ़ रही हैं। संगठन के स्तर पर इस टेक्नोलॉजी को कोर वर्कफ्लो में लागू किया जा रहा है, जिससे गत दो वर्षों में 10 से 25 प्रतिशत तक ईबीआईटीडीए कमाई हुई है। कटिंग एज डोमेज जैसे एआई अब केवल इकोनॉमिक ग्रोथ के कैटलिस्ट नहीं रहे बल्कि वे अब देश की देशों की राजनीतिक शक्ति और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण बन गए हैं। बेन की ग्लोबल टेक्नोलॉजी प्रैक्टिस की हेड, एने होकर ने कहा कि स्वतंत्र आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस क्षमताएं अब आर्थिक और सैन्य शक्ति के समान ही एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बढ़त के रूप में देखी जा रही हैं।