5. अपने विचारों का अवलोकन करें वह आपके शब्द बनते हैं, अपने शब्दों पर निगरानी रखें वे आपकी क्रियाएं बनते हैं। अपनी क्रियाओं को जांचे वे आपकी आदत बनती है। अपनी आदतों को परखिये वे आपका चरित्र बनती हंै। आप किसी को बदल नहीं सकते। अपनी माता-पिता, बहन , भाई, मित्र व बॉस को भी नहीं। इसलिए सर्वप्रथम स्वयं को बदलो। आपकी भावनाएं आपके मनुष्य होने की निशानी है लेकिन इनका संतुलित होना आवश्यक है। असंतुलित भावनाएं न सिर्फ आपकी दूसरे लोगों के साथ संबंधों को खराब करती है बल्कि आपके जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं। 6.जब तक आप अपने आप पर विश्वास नहीं करेंगे तब तक दूसरों से अपनी तुलना करते रहेंगे। जलन व हीन भावना के शिकार हो जाएंगे । परिस्थितियां कैसी भी हो स्वयं में और अपनी क्षमताओं में विश्वास रखें। अपनी क्षमता को कम न आंके। अपने जीवन की तुलना किसी के साथ नहीं करना चाहिए। सूर्य और चंद्रमा के बीच कोई तुलना नहीं, जब जिसका वक्त आता है वह चमकता है।‘आप जैसे हैं वैसे ही खुद को स्वीकारें, किसी की नकल करने या किसी के जैसा बनने का प्रयास ना करें। अपने आप से प्रेम करें और स्वयं को बेहतर से बेहतर बनाने का प्रयास करें।’ 7. सुखद स्वस्थ प्रसन्न जीवन जीने के 3 उपाय हैं। भूत को याद मत करो, भविष्य की फरियाद मत करो और वर्तमान को बर्बाद मत करो। प्रसन्न रहने का सूत्र भी यही है क्योंकि भूत को लौटाया नहीं जा सकता, भविष्य को लाया नहीं जा सकता और इसी कारण वर्तमान में जीने वाला प्रसन्न रहता है। इसे यूं समझा जाए वर्तमान कैश पेमेंट है, भूतकाल बाउंस चैक है भविष्य प्रॉमिससरी नोट है, इसलिए वर्तमान में जिए। 8. क्षमा करना सीखें अगर आप किसी के लिए मन में दुर्भावना पालोगे तो आप कड़वाहट से भर जाओगे लेकिन अगर आप किसी को माफ कर सकते हैं ,जिसने आपको गुस्सा दिलाया है तो यह उसके लिए ही नहीं आपके लिए भी एक सकारात्मक बात होगी। आपको यह समझना चाहिए कि हर कोई ठीक उसी प्रकार से व्यवहार नहीं करेगा जैसा आप चाहते हैं। 9. अच्छे मित्र बनाएं। नारिघंमम यूनिवर्सिटी के एक शोध के अनुसार जिन वयस्क लोगों के 10 दोस्त हैं वह अन्य लोगों की तुलना में अधिक खुश मित्र थे तथा तनाव रहित थे। अपने सह-कर्मियों की सफलता पर उनसे जलने से बेहतर है कि सफलता के लिए अपने प्रयासों को गति दी जायें,दूसरों से जलने से आपके हाथ सिर्फ दु:ख और चिड़चिड़ापन पन ही आयेगा। एक कवि ने कहा है ‘बहुत से लोग अपने दुखों के गीत गाते हैं , दिवाली हो या होली केवल सदा मातम मनाते हैं । मगर दुनिया उन्हीं की रागिनी पर झूमती है हरदम ,
कि जो जलती चिता पर बैठकर वीणा बजाते हैं।’जीवन में उतार-चढ़ाव तो हमेशा ही आते रहते हैं। धूप के बाद छांव और दुख: के बाद सुख यही जीवन का सार है। हमें इस बात को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए। जीवन में कोई भी चीज हमेशा एक समान नहीं रहती है। वक्त के साथ सब कुछ बदलता है। किसी भी परिस्थिति में धैर्य नहीं खोना चाहिए क्योंकि अगर आज आपके ऊपर दुख: का पहाड़ टूटा है तो भी यह वक्त चला जाएगा और अगर आज आप किसी चीज को लेकर बहुत खुश हैं तो भी यह वक्त गुजर जाएगा। इसलिए हमेशा खुद को एक समान रखने की कोशिश करें। आप प्रतिदिन यह महसूस करते होंगे कि एक दिन में ही सूर्य की तीन दशाएं होती है , सुबह बाल सूर्य, दोपहर में धधकता हुआ तथा शाम को अस्ताचल की ओर। इस दुनिया में मौजूद हर किसी इंसान के जीवन में कुछ ना कुछ वेदना, तड़पन, दुख:, पीड़ा, तकलीफ तो है। आपको खुद के आसपास जितने भी चेहरे नजर आते हैं उन सभी को कुछ ना कुछ तकलीफ या परेशानी जरूर होगी। हर इंसान किसी ना किसी परेशानी से जूझ रहा है लेकिन असल मायने में वही इंसान जिंदगी जीना जानता है, जो अपने दुख: को नजरअंदाज करके सदैव जीवन में आगे बढऩे का हुनर रखता है। वो कभी अपने दुख: का रोना नहीं रोता ,एक बार तकलीफ में होने पर कदम भले ही डगमगा उठे लेकिन कदम को रुकने नहीं देना है। हालात कैसे भी हो बस चलते रहना ही यही जिंदगी है।
‘अभिमन्यु की तरह वीर बनो।
कृष्ण की तरह धर्म का साथ दो ।।
विदुर की तरह स्पष्ट वाली शुभचिंतक बनो।
घटोत्कच की तरह धर्म कार्य में सहर्ष बलिदान दो।
अर्जुन की तरह अपनी बागडोर भगवान के हाथों में सौंप दो।’
सुख चाहते हो तो देर रात तक जागना नहीं, शांति चाहते हो तो दिन में सोना नहीं, सम्मान चाहते हो तो व्यर्थ मे बोलना नहीं और प्रेम चाहते हो तो अपनों को छोडऩा नहीं। 10. वेदों में विनम्रता और शालीनता को मानव जीवन का आधार स्तंभ कहा गया है। ऋग्वेद में कहा गया है हम छोटे, बड़े ,युवाओं और वृद्ध सबके प्रति विनम्र बने। मनुस्मृति में कहा गया है अहंकार से मुक्त विनम्र जीवन आयु, विद्या, यश और बल में वृद्धि करता है और यही हमारी प्रसन्नता और खुशहाली को बढ़ाते हैं कहा भी गया है। विनम्रता मानवता का श्रृंगार है।