आज के दौर में लोगों का दिमाग जितनी बड़ी संख्या में वैरायटी वाली खबरों, रीलों, चुटकुलों, वीडियों, सलाह, भाव-ताव और कई गैर जरूरी चीजों को प्रोसेस करके उनपर ध्यान देने के काम में लगा हुआ है उतना इतिहास में कभी नहीं देखा गया। ऐसा लगता है कि मनुष्य का दिमाग कितनी जल्दी-जल्दी एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे, तीसरे से चौथे मुद्दे और लगातार इसी तरह अपने ध्यान को बार-बार शिफ्ट करने की पॉवर रखता है, जिसकी परीक्षा लेने के लिए सभी ताकतों को एकसाथ काम पर लगा दिया गया है। अगर दिमाग की पॉवर को इन्ही कामों को करते-करते बढ़ाना ही इंटेलिजेंस की निशानी मान लिया गया है तो यह भी सच है कि जरूरी कामों पर फोकस रखने या ध्यान लगाने की पॉवर के सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो चुकी है जिसका खामियाजा किसी न किसी रूप में हर कोई चुकाने लगा है। स्थिति यह बनने लगी है कि बड़ी संख्या में लोगों के दिमाग में वास्तव में जरूरी बातों को समझने व उन्हें स्टोर करके रखने की जगह ही नहीं बची है तभी तो ऐसी बातों पर उनका ध्यान बड़ी मुश्किल से जाने लगा है। दुनियां के देशों के लीडर हो या बालीवुड के एक्टर, खिलाड़ी हो या राजनेता, अपराधी हो या सेलेब्रिटि, बाढ़ हो या भीषण गर्मी, इनसे जुड़ी हजारों-लाखों रीलों और वीडियों को देखने में न जाने कितने लोगों के करोड़ों घंटे रोजाना लग रहे हैं जिनसे अंत में छोटी सी मुस्कुराहट, तनाव, चिंता, हैरानी, बैचेनी, तुलना, गर्व जैसी कोई फायदा न देने वाली फीलिंग के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होता। इस माहौल में Common Sense के हिसाब से यह समझना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं होना चाहिए कि ऐसी कुछ गैर-जरूरी चीजों को बिना ध्यान दिए छोडऩे की पॉवर डवलप करना भी अब किसी इंटेलिजेंट दिमाग का ही काम कहा जाएगा। वैसे तो एक उम्र व कई सालों के अनुभव के बाद यह बात साफ हो जाती है कि रोजाना तरह-तरह की गैर-जरूरी जानकारियों के पानी में गोता लगाना किसी काम का नहीं है।
आज की डिजिटल इकोनोमी इंसान के दिमाग की पॉवर पर ही तो अपना साम्राज्य खड़ा कर रही है जो यह मानकर चलती है कि इंसान के पास अपने ध्यान को बार-बार भटकाने की असीमित पॉवर है। इंसानी दिमाग को खराब होने से बचाने के लिए यह जरूरी हो गया है कि ध्यान न देने की स्किल को डवलप करने पर भी मेहनत की जाए ताकि जो जरूरी हो उसी पर ध्यान लगाया जा सके। कई कहावतों के अनुसार भगवान के डर का अहसास ही समझदारी को जन्म देता है और आज हर कोई बार बार ध्यान भटकने के महसूस न होने वाले डर में जीने लगा है जिसके बाद दिमाग का समझदारी वाला उपयोग ही इस डर पर जीत दिला सकता है। हमारे सामने कई सफल लोगों के उदाहरण है जो उनके जीवन पर असर डालने वाली गैर-जरूरी बातों के शोर से दूर रहकर अपना काम करते हैं। इसी तरह कई कारोबारी फालतू की और समय खर्च करने वाली मीटिंग व चर्चाओं में अपना समय खराब नहीं करते। कई लोगों ने सोशल मीडिया से दूरी बना ली है। इसके पीछे का कारण यह है कि वे अपने दिमाग को उन स्थितियों व घटनाओं के लिए फ्री और खुला रखते हैं जो उनका ध्यान खींचकर कई तरह के मौके दे सकती है। सभी के लिए और विशेषकर आज की जेनरेशन (Gen Z) के लिए यह समझना जरूरी है कि क्या काम की बातें है और क्या नहीं। मगर ज्यादातर मामलों में यह तभी समझ आता है जब तक जीवन में कुछ खोने का अनुभव नहीं होता और यह अनुभव किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी की क्लास में नहीं सिखाया जा सकता। इसलिए समय को सबसे महत्वपूर्ण टीचर कहा जाता है जिसके साथ हर ट्रेंड पीछे छूट जाता है लेकिन उन ट्रेंड्स पर खर्च हुआ समय किसी के जीवन में वापिस लौटकर नहीं आता। यह मान लेना सबसे बड़ी भूल होगी कि किसी की नजरों से छुपकर गैर-जरूरी कामों पर आसानी से समय बर्बाद किया जा सकता है और दिमाग भी खराब किया जा सकता है। यह माहौल आजकल काम कर रहे यंग लोगों में ट्रेंड कर रहा है जो अपने बॉस या कंपनी मालिक को बेवकूफ मानकर अपना समय खराब करने में होशियारी का प्रदर्शन करने लगे हैं जबकि बिना शोर मचाए अच्छा काम करके दिखाना ही आगे बढऩे की सही निशानी है। जगह-जगह पर ध्यान लगाकर अच्छे रिजल्ट देते रहने की असीमित शक्ति किसी के पास नहीं है इसलिए अपने दिमाग को साफ व स्वस्थ रखने की ट्रेनिंग के साथ ‘ध्यान’ न देने की स्किल में महारथ हासिल करना समय की मांग कही जा सकती है।