भारत में ऑर्गेनाइज्ड रिटेलिंग का दौर वर्ष 2000 के आसपास शुरू हुआ और करीब दस वर्ष तेजी से चला। अनेक शॉपिंग मॉल्स ने बिग सक्सेस देखा तो पैन इंडिया 74 मॉल्स ‘घोस्ट’ मॉल्स की कैटेगरी में आ गये है। टीयर वन सिटीज में 60 और टीयर टू सिटीज में 14 घोस्ट मॉल्स हैं। यानि कि इनमें हाई वैकेंसीज प्रदर्शित हो रही है। टेनेंट की कमी से जूझ रहे इन मॉल्स का इन्फ्रास्ट्रक्चर पुराना हो गया है या यह कहें कि कन्ज्यूमर्स गे्रड ए मॉल्स, हाई स्ट्रीट लोकेशंस पर जाना पसंद कर रहे हैं। हाई क्वालिटी मॉल्स में एंटरटेंमेंट के साथ शॉपिंग, जिम, एफएंडबी की सुविधाएं दी जा रही हैं। ऐसे में इनका डॉमीनेंस बढ़ रहा है। देश में घोस्ट मॉल्स इन्वेंट्री करीब 15.5 मिलियन स्कवायर फीट की है। देश के 32 शहरों में करीब 74 शॉपिंग सेंटर इनएक्टिव स्पेस शो कर रहे हैं। नाइट फे्रंक इंडिया एसेसमेंट के अनुसार टीयर वन सिटीज में 11.9 मिलियन स्कवायर फीट का डोरमेंट स्टॉक है और यह करीब 236 करोड़ रुपये की रेवेन्यू अपॉच्र्यूनिटी दे सकता है। इसी प्रकार टीयर टू सिटीज में 3.6 मिलियन स्कवायर फीट का स्टॉक है, यह करीब 121 करोड़ रुपये का रेवेन्यू अवसर दे सकता है। नाइट फे्रंक इंडिया के सीएमडी के अनुसार इंडिया का रिटेल सेक्टर ग्रोथ के अलग फेज में एंटर कर रहा है। मजबूत कन्जम्पशन हाई क्वालिटी ऑर्गेनाइज्ड रिटेल फॉर्मेट्स की ओर साफ तौर पर शिफ्ट हो रहा है। गे्रड ए मॉल्स में केवल 5.7 प्रतिशत वैकेंसी है। ऐसे में यहां पर एक्सपेंशन की ज्यादा सम्भावना है। कन्ज्यूमर डिमांड शिफ्ट होने के कारण ब्राण्ड्स भी इनमें अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाह रहे हैं। न्यू एज मॉल्स में एफएंडबी, एंटरटेंमेंट, एक्सपीरियंस ऑफरिंग ज्यादा हैं, जो कन्ज्यूमर्स को आकर्षित कर रही है। ओल्ड स्टाइल्ड मॉल्स से शायद वे बोर हो गये हैं और नया एक्सपीरियंस करना चाहते हैं। चिंता का विषय इंडस्ट्री के लिये है। घोस्ट मॉल्स इंडस्ट्री को स्मार्ट प्लानिंग करने के प्रति सचेत तो अवश्य कर रहे हैं। शॉपिंग सेंटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सीओओ के अनुसार रिटेल इको-सिस्टम में बदलाव आ रहे हैं। डवलपर्स, इन्वेस्टर्स भी इस विषय को भांप रहे हैं। डिमांड सप्लाई के बीच असंतुलन की स्थिति बन रही है। इंडस्ट्री एनेलिस्ट के अनुसार अब वायबल ऑप्शन यह है कि हाई क्वालिटी मॉल्स में को-वर्किंग स्पेस, हैल्थकेयर सेंटर, एज्यूकेशन सेंटर, एंटरमेंटमेंट जोन, ब्राण्ड स्टोर्स का मिक्स हो। ‘एजिंग’ मॉल्स को फिर से रीपोजीकशन किया जाये तभी घोस्ट मॉल्स की संख्या को कम किया जा सकता है। नये मॉल को डवलप करने की जगह स्लीपिंग मॉल्स यानि घोस्ट मॉल्स को रीडवलप करने पर विचार हो सकता है। इससे कॉस्ट घटाने में मदद मिलेगी।