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10-12-2025

सभी वन मामले सीधे हमारे पास क्यों आते हैं? : सुप्रीम कोर्ट

  •  सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को लेकर आश्चर्य जताया कि वन और झीलों से संबंधित सभी मामले उच्च न्यायालयों को दरकिनार करके शीर्ष अदालत में क्यों आ रहे हैं, वह भी 1995 की एक लंबित जनहित याचिका में अंतरिम आवेदन के रूप में। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने सवाल किया, सभी वन मामले इस न्यायालय में क्यों आ रहे हैं? सुखना झील मामले से संबंधित एक आवेदन का हवाला देते हुए, प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ निजी डेवलपर और अन्य के इशारे पर एक दोस्ताना मैच चल रहा है। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत की टिप्पणियां इस तथ्य के मद्देनजर महत्वपूर्ण हैं कि पूर्व प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई के नेतृत्व वाली पीठ सहित शीर्ष अदालत की पिछली कई पीठें पूरे देश में आरक्षित वन, झीलों, बाघ अभयारण्यों आदि के संबंध में वन और अन्य प्रासंगिक कानूनों के विशिष्ट उल्लंघनों को उठाते हुए दायर अंतरिम आवेदनों (आईए) पर कई निर्देश, आदेश और निर्णय पारित करती रही हैं। ये अंतरिम आवेदन अधिकतर 1995 की लंबित जनहित याचिका में दायर की गई हैं, जिसका शीर्षक टी एन गोदावर्मन तिरुमुलपद है। शुरुआत में, पीठ को चंडीगढ़ स्थित सुखना झील से संबंधित एक याचिका के बारे में बताया गया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम सुखना झील की बात कर रहे हैं। यह पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय से 500 मीटर दूर है... और हम संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उनकी शक्ति छीन रहे हैं और इसे यहां सूचीबद्ध कर रहे हैं।’’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हमें बताएं कि हितधारक कौन हैं। हम देखना चाहते हैं कि क्या जलग्रहण क्षेत्र संरक्षित है और राज्य द्वारा सुधारात्मक उपाय किए गए हैं। राज्य का कहना है कि हमने निर्णय ले लिया है और अब केंद्र (भारत) निर्णय करेगा।’’  प्रधान न्यायाधीश ने कहा, हम जानते हैं कि सुखना झील का जलग्रहण क्षेत्र किस तरह व्यवस्थित रूप से अवरुद्ध हो गया है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों को जैसे ही यह सूचित किया जाता है कि उच्चतम न्यायालय इस मामले पर विचार कर रहा है, वे कदम नहीं उठाते। पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी और वन मामले में न्यायमित्र के रूप में न्यायालय की सहायता कर रहे वरिष्ठ वकील के. परमेश्वर से कहा कि वे उन स्थानीय मुद्दों से न्यायालय को अवगत कराएं, जिन्हें उच्च न्यायालय स्वयं निपटा सकते हैं। पीठ ने यह भी पूछा कि 1995 की जनहित याचिका में सभी विशिष्ट मुद्दे क्यों उठाए जा रहे हैं और कहा कि अलग-अलग याचिकाएं दायर करके इनसे स्वतंत्र रूप से निपटा जा सकता है। पीठ ने कहा कि मामलों को उच्च न्यायालयों को भेजने पर निर्णय लिया जा सकता है।

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सभी वन मामले सीधे हमारे पास क्यों आते हैं? : सुप्रीम कोर्ट

 सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को लेकर आश्चर्य जताया कि वन और झीलों से संबंधित सभी मामले उच्च न्यायालयों को दरकिनार करके शीर्ष अदालत में क्यों आ रहे हैं, वह भी 1995 की एक लंबित जनहित याचिका में अंतरिम आवेदन के रूप में। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने सवाल किया, सभी वन मामले इस न्यायालय में क्यों आ रहे हैं? सुखना झील मामले से संबंधित एक आवेदन का हवाला देते हुए, प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ निजी डेवलपर और अन्य के इशारे पर एक दोस्ताना मैच चल रहा है। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत की टिप्पणियां इस तथ्य के मद्देनजर महत्वपूर्ण हैं कि पूर्व प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई के नेतृत्व वाली पीठ सहित शीर्ष अदालत की पिछली कई पीठें पूरे देश में आरक्षित वन, झीलों, बाघ अभयारण्यों आदि के संबंध में वन और अन्य प्रासंगिक कानूनों के विशिष्ट उल्लंघनों को उठाते हुए दायर अंतरिम आवेदनों (आईए) पर कई निर्देश, आदेश और निर्णय पारित करती रही हैं। ये अंतरिम आवेदन अधिकतर 1995 की लंबित जनहित याचिका में दायर की गई हैं, जिसका शीर्षक टी एन गोदावर्मन तिरुमुलपद है। शुरुआत में, पीठ को चंडीगढ़ स्थित सुखना झील से संबंधित एक याचिका के बारे में बताया गया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम सुखना झील की बात कर रहे हैं। यह पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय से 500 मीटर दूर है... और हम संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उनकी शक्ति छीन रहे हैं और इसे यहां सूचीबद्ध कर रहे हैं।’’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हमें बताएं कि हितधारक कौन हैं। हम देखना चाहते हैं कि क्या जलग्रहण क्षेत्र संरक्षित है और राज्य द्वारा सुधारात्मक उपाय किए गए हैं। राज्य का कहना है कि हमने निर्णय ले लिया है और अब केंद्र (भारत) निर्णय करेगा।’’  प्रधान न्यायाधीश ने कहा, हम जानते हैं कि सुखना झील का जलग्रहण क्षेत्र किस तरह व्यवस्थित रूप से अवरुद्ध हो गया है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों को जैसे ही यह सूचित किया जाता है कि उच्चतम न्यायालय इस मामले पर विचार कर रहा है, वे कदम नहीं उठाते। पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी और वन मामले में न्यायमित्र के रूप में न्यायालय की सहायता कर रहे वरिष्ठ वकील के. परमेश्वर से कहा कि वे उन स्थानीय मुद्दों से न्यायालय को अवगत कराएं, जिन्हें उच्च न्यायालय स्वयं निपटा सकते हैं। पीठ ने यह भी पूछा कि 1995 की जनहित याचिका में सभी विशिष्ट मुद्दे क्यों उठाए जा रहे हैं और कहा कि अलग-अलग याचिकाएं दायर करके इनसे स्वतंत्र रूप से निपटा जा सकता है। पीठ ने कहा कि मामलों को उच्च न्यायालयों को भेजने पर निर्णय लिया जा सकता है।


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