आरबीआई ने बुधवार की एमपीसी (मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी) की बैठक के बाद कहा कि फिलहाल रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया जा रहा है। यानी अगली रिव्यू मीटिंग तक यह 5.5 परसेंट पर ही रहेगी। एनेलिस्ट कहते हैं कि आरबीआई को शायद भारत में भी चीन की तरह डीफ्लेशन का डर है इसलिए उसने रेपो रेट में कोई कटौती नहीं की है। डीफ्लेशन यानी प्राइस घट जाना। ऐसा होने पर मैन्युफैक्चरर और सर्विस प्रॉवाइडर के पास बिजनस करने के कोई इंसेंटिव नहीं रहता। भारत में डीफ्लेशन का डर इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि कंज्यूमर डिमांड कमजोर है और कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (रिटेल इंफ्लेशन) 2.1 परसेंट रह गई है। आरबीआई ने कहा कि पीएसयू और प्राइवेट बैंकों के पास 67 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा रकम जमा है जिसका कोई दावेदार नहीं है। आरबीआई ने एमपीसी की बैठक के बाद मृत डिपॉजिटर की जमा रकम के सैटलमेंट की प्रक्रिया को ठीक करने का प्रस्ताव रखा है। केंद्रीय बैंक ने कहा कि इस संदर्भ में शीघ्र ही एक ड्राफ्ट जारी कर आमजन की राय ली जाएगी। आरबीआई ने कहा, बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के तहत वर्तमान निर्देशों के अनुसार, बैंकों को नामितों/कानूनी उत्तराधिकारियों द्वारा किए गए दावों के जल्दी त्वरित और आसान सैटलमेंट के लिए सरल प्रक्रिया अपनानी होती है, लेकिन यह अलग-अलग बैंकों में अलग-अलग होती है। कस्टमर सर्विस स्टेंडर्ड को सुधारने के लिए अब इसे सुव्यवस्थित करने का फैसला लिया गया है। इसके तहत अनक्लेम्ड डिपॉजिट के दावे के लिए जरूरी कागजात को स्टेंडर्डाइज किया जाएगा। वर्तमान में, अधिकांश बैंक नामांकन (नॉमिनी) की सुविधा देते हैं। लेकिन एकरूपता की कमी के कारण मृतक के परिवारजनों को दावे करने में कठिनाई और देरी का सामना करना पड़ता है।
साथ में लगी टेबल से पता चलता है कि बैंकों के पास 67 हजार करोड़ रुपये जमा है जिनका या तो कोई दावेदार सामने नहीं आया है या फिर दावों का सैटलमेंट नहीं हो पाया है। एनेलिस्ट कहते हैं भारत में बैंकों में बिना दावे की जमा राशि की अनुमानित कुल राशि 67,003 करोड़ रुपए है। इस बड़ी अनक्लेम्ड रकम का बड़ा कारण या तो डिपॉजिटर या उनके परिवारजनों को इनकी जानकारी नहीं होना या दस्तावेज गुम हो जाना है। कई खातों में नॉमिनी नहीं होते जिससे डिपॉजिटर की मृत्यु के बाद आश्रितों को धन निकालने में बड़ी परेशानी होती है। आरबीआई के उद्गम पोर्टल (UUUUUnclaimed Deposits-Gateway to Access Information) से यह पता लगाया जा सकता है कि बैंक में कोई भूली हुई राशि है या नहीं। लेकिन आरबीआई ने कहा है कि प्रक्रिया को आसान बनाने की दिशा में एक पहला कदम था। लेकिन अब यह समाधान का एक हिस्सा भर है और ऐसे दावों को निपटाने के लिए समेकित कार्यवाही की जरूरत है। नॉमिनी की अनुपस्थिति में किसी खाते का दावा करना बेहद जटिल और थकाऊ प्रक्रिया है। इसके साथ ही, बैंकों में दावे की प्रक्रियाएं भी अलग-अलग होती हैं, जिससे लॉकर या जमा धन प्राप्त करना और मुश्किल हो जाता है। ऐसे में आरबीआई प्रक्रिया को स्टेंडर्डाइज करने के साथ ही जरूरी दस्तावेजों की लिस्ट जारी कर सकता है। एनेलिस्ट यह भी कहते हैं कि लोग हर निवेश में नॉमिनी जरूर बनाए। साथ ही, परिवारजनों को अपने निवेशों की जानकारी देना भी बहुत जरूरी है।
