ग्लोबल अकाउंटिंग फर्म प्राइसवाटरहाउस कूपर्स प्राइवेट लि. (पीडब्ल्यूसी) के खिलाफ लंबे समय से चल रहे केस में बड़ा फैसला आया है। प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत अपीलीय ट्रिब्यूनल ने कंपनी के खिलाफ फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) उल्लंघन के आरोप को सत्यापित पाया। हालांकि एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) द्वारा लगाए गए 230.4 करोड़ के जुर्माने को घटाकर 80.5 करोड़ कर दिया है। यह मामला 2019 में ईडी के स्पेशल डायरेक्टर (ईस्टर्न रीजन) द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस से जुड़ा है, जो एक पीआईएल पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद शुरू हुआ था। ईडी की जांच में सामने आया कि पीडब्ल्यूसी ने अपने विदेशी नेटवर्क की इकाई प्राइसवाटरहाउस कूपर्स सर्विसेज बीवी से प्राप्त फंड को ग्रांट्स के रूप में दिखाकर गैर-अनुमति वाले सेक्टर में एफडीआई को रूट किया। ईडी के अनुसार, ये नेटवर्क सर्विस चार्जेज के नाम पर कैपिटल इनफ्लो थे और इनका उपयोग कैपिटल अकाउंट ट्रांजैक्शन (सीएटी) के रूप में किया गया। पीडब्ल्यूसी का यह एक्शन आरबीआई की बिना पूर्व मंजूरी के फेमा नियमों का उल्लंघन है।
ट्रिब्यूनल ने पीडब्ल्यूसी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि इन फंड्स का इस्तेमाल केवल ऑपरेशनल सपोर्ट के लिए हुआ था और इनमें कोई बॉर्डर क्रॉसिंग असैट / लायबिलिटी ट्रांसफर नहीं था। ट्रिब्यूनल ने पाया कि जो ग्रांट एग्रीमेंट्स (जीए-1 और जीए-2) थे, उनमें कंडीशनल लायबिलिटी जुड़ी हुई थी — जैसे समय पर उपयोग न होने पर रिफंड की शर्त के साथ मिले थे। इस तरह ये स्पष्ट रूप से कैपिटल ट्रांजैक्शन था। ट्रिब्यूनल ने पीडब्ल्यूसी के पूर्व अधिकारियों — श्यामल मुखर्जी, दीपक कपूर और रमेश रंजन — पर लगे जुर्माने को कम किया और पूर्व कर्मचारी शिवम दुबे का जुर्माना पूरी तरह से माफ कर दिया। ट्रिब्यूनल ने माना कि दुबे ने केवल अधिकारियों के निर्देश का पालन किया और उनके पास कोई स्वतंत्र निर्णय का अधिकार नहीं था। इसके साथ ही पीडब्ल्यूसी द्वारा यह दावा कि ईडी ने एडजुडिकेशन रूल्स (न्यायनिर्णय) नियमों का उल्लंघन किया है जिसे ट्रिब्यूनल ने खारिज कर दिया। ट्रिब्यूनल ने कहा कि फेमा के तहत कैपिटल की परिभाषा कानून में तय मानकों के अनुसार होगी, न कि पीडब्ल्यूसी की सुविधा के अनुसार।