वो दौर आपको याद होगा। जब आप किराना दुकान पर पारले जी लेने जाते थे। और दुकानदार प्रिंट प्राइस पर सेल्स टैक्स अलग से लेते थे। फिर दौर आया मैक्सीमम रिटेल प्राइस (सेल्स टैक्स या जीएसटी शामिल) का। लेकिन अब भारत सरकार प्रॉडक्ट प्राइसिंग के पूरे सिस्टम को ओवरहॉल करने की तैयारी कर रही है। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि केंद्र सरकार पैकेज्ड प्रॉडक्ट्स की प्राइसिंग में ट्रांसपेरेंसी लाने के लिए एमआरपी के सिस्टम को अपडेट करने पर विचार कर रही है। मिनिस्ट्री ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स ...लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट, 2009... (विधिक मापविज्ञान अधिनियम, 2009) और इसके नियमों के तहत ऐसा फ्रेमवर्क तैयार कर रही है, जिसमें प्रॉडक्ट की प्राइस को तीन हिस्सों में विभाजित कर साफ-साफ लिखा जा सके। रिपोर्ट कहती है कि प्राइस को बेस प्राइस (मूल कीमत), जीएसटी (टैक्स), और डीलर/रिटेलर मार्जिन में बांटकर प्रॉडक्ट के पैकेट पर लिखा जाएगा। अभी क्या: वर्तमान में लीगल मेट्रोलॉजी (पैकेज्ड कमोडिटी) नियम, 2011 के तहत सभी मैन्युफैक्चरर्स को पैकेट पर "MRP inclusive of all taxes... लिखना होता है। सरकार का मानना है कि इस प्राइसिंग सिस्टम से टैक्स और डीलर मार्जिन आदि कंपोनेंट्स का पता नहीं चलता। इससे कंज्यूमर को सही जानकारी नहीं मिल पाती और प्राइसिंग में ट्रांसपेरेंसी की कमी बनी रहती है। इसे देखते हुए सरकार पैकेट पर छपने वाली एमआरपी को बेस प्राइस, जीएसटी और डीलर मार्जिन में बांटने के प्लान पर काम कर रही है। कंज्यूमर अफेयस सेक्रेटरी निधि खरे के अनुसार इससे कंज्यूमर को साफ-साफ पता लग पाएगा कि अमुक प्रॉडक्ट पर कितना टैक्स और डीलर मार्जिन है।
लेकिन: कंपनियों का मानना है कि यह सिस्टम बहुत कॉम्प्लेक्स है और इससे कॉस्ट भी बढ़ेगी। उनके अनुसार, बार-बार लेबलिंग अपडेट करना कठिन होगा और सप्लाई चेन पर असर पड़ेगा। खासकर छोटे पैकेज्ड प्रोडक्ट्स पर सीमित जगह में इतना सारा विवरण चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
