उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्राथमिकी दर्ज होने और उसके बाद की छानबीन के बाद केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की जांच के निर्देश को संभावित संदिग्धों या आरोपियों द्वारा चुनौती नहीं दी जा सकती है। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने एक फैसले में महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं, जिसमें उसने कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा। उच्च न्यायालय ने सीबीआई को 2019 में बेंगलुरु के रियल एस्टेट कारोबारी के. रघुनाथ की हत्या की गहन जांच करने का निर्देश दिया था। उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाले कई आरोपी पक्षों द्वारा दायर आपराधिक अपील को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति मिश्रा ने पीठ के लिए फैसला लिखते हुए कहा, ‘‘हमारा मानना है कि प्राथमिकी दर्ज हो जाने और छानबीन हो जाने के बाद, सीबीआई द्वारा जांच के निर्देश को संभावित संदिग्ध या आरोपी चुनौती नहीं दे सकते। किसी विशेष एजेंसी को जांच सौंपने का मामला अदालत के विवेक पर निर्भर करता है।’’ यह विवाद एक रियल एस्टेट डेवलपर के. रघुनाथ की मौत से संबंधित है। रघुनाथ दिवंगत सांसद डीके आदिकेशवालु (डीकेए) के करीबी सहयोगी थे। रघुनाथ रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाए गए थे। रघुनाथ की पत्नी एम. मंजुला और बेटे ने इस मामले में गड़बड़ी का आरोप लगाया था तथा कथित हत्या में डीकेए के बच्चों और सहयोगियों की संलिप्तता का आरोप लगाया था। स्थानीय पुलिस के मामला दर्ज करने से शुरू में इनकार करने के बावजूद, मंजुला द्वारा दायर एक निजी शिकायत के आधार पर आरोपियों के खिलाफ धारा 302 (हत्या), 120 बी (आपराधिक साजिश) और जालसाजी और धोखाधड़ी से संबंधित कई धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई। उच्च न्यायालय ने मंजुला की याचिका पर एक फैसले में क्षेत्राधिकार के अभाव का हवाला देते हुए एचएएल पुलिस थाने को आगे की जांच के लिए दिए गए मजिस्ट्रेट के पूर्व निर्देश को रद्द कर दिया था। इसके बजाय उच्च न्यायालय ने प्रारंभिक जांच में गंभीर खामियों को उजागर करते हुए तथा स्थानीय हस्तक्षेप के बारे में चिंता जताते हुए सीबीआई को जांच अपने हाथ में लेने को कहा था।