ग्लोबल ट्रेड की व्यवस्था में बदलाव करते हुए अमेरिकी बाजारों व लोगों को फायदा देने की सोच से जिस टैरिफ वार की शुरुआत राष्ट्रपति ट्रम्प कर चुके हैं उसने पूरी दुनिया में राजनेताओं, कारोबारियों, इंवेस्टरों यहां तक कि आम आदमी को भी एक साथ चिंता में डाल दिया है। टैरिफ का इतिहास वर्ष 1930 तक जाता है जब अमेरिका ऊंचे टैरिफ लगातार तेजी से आगे बढऩे लगा। दूसरे वल्र्ड वार के बाद बर्बाद हो चुके यूरोप और जापान को फिर से खड़ा होने के लिए अमेरिकी बाजारों की सबसे ज्यादा जरूरत थी जिसका अमेरिका को खूब फायदा हुआ और अमेरिका में ट्रेड Surplusका लम्बा दौर रहा। यह सिलसिला कई दशकों तक चला जिसके कारण अमेरिका की लीडरशिप व दूसरे देशों की समृद्धि साथ-साथ चलती रही। 1970 आते-आते जापान की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री व चीन की मेन्यूफेक्चरिंग ने ग्लोबल ट्रेड में अपनी पकड़ मजबूत करना शुरू किया। अमेरिका का इंपोर्ट तेजी से बढ़ता जा रहा था जिसके कारण ट्रेड Deficit की स्थिति आई और लाखों अमेरिकी नौकरियां खत्म हो गई व इंडस्ट्री को तगड़ा झटका लगा क्योंकि बाहर से आ रहे सस्ते प्रोडक्ट्स ने अमेरिकी प्रोडक्ट्स को चुनौती देना शुरू कर दिया था। यह समझना जरूरी है कि टैरिफ वार व ग्लोबल ट्रेड का बदलता दौर लोकल इंडस्ट्री के लिए सबसे बड़ी चुनौती लेकर आता है जिसे हल्के में लेना भारी पड़ सकता है। जिस फार्मूले पर अमेरिका आगे बढ़ा था वहीं फार्मूला लगभग हर देश के Industrial Development पर लागू होता है। इस फार्मूले का सिम्पल भाषा में यह मतलब है कि जिस तरह के क्रूर (ruthless) कारोबारी कम्पीटीशन का माहौल बन गया है उसमें इंडस्ट्री को यह भरोसा व विश्वास होना चाहिए कि उसका ong term इंवेस्टमेंट बेकार नहीं जाएगा व ग्लोबल कम्पीटीशन का सामना करने के लिए लोगों को ट्रेनिंग देकर तैयार करने का सिस्टम काम करेगा। देशों के पास एक-दूसरे के खिलाफ कारोबारी वॉर को जीतने या उसमें आगे रहने के लिए टैरिफ से बड़ा कोई हथियार नहीं है और यही adversarial (विरोधी) ट्रेड की प्रेक्टिस को आगे बढ़ाता है जिसमें Costing पर कारोबार आपस में कम्पीट करते हैं। टैरिफ लगाकर जो एक्स्ट्रा कमाई की जाती है वह उस देश की समृद्धि को बढ़ाने में योगदान देती है जो एक पहलू है क्योंकि कई देश टैक्स पॉलिसियों से, अपनी संस्कृति के बहाने, Intellectual Property के सहारे दूसरे देशों से आने वाले प्रोडक्ट को रोकते है व अपना Export बढ़ाते हैं। अमेरिका में कई एक्सपर्ट मानते हैं कि अमेरिकी इंडस्ट्री के खत्म होने का सीधा मतलब अमेरिकी पॉवर का खत्म होना है जिसके संकेतों को समझकर राष्ट्रपति ट्रम्प ने किसी की परवाह न करते हुए दुनिया में टैरिफ वार छेड़ दिया है। टैरिफ का सिस्टम इसलिए फायदेमंद माना गया है क्योंकि इसे लागू करना आसान है और इसमें ब्यूरोक्रेसी का दखल बहुत कम होता है। इससे प्राइवेट इंडस्ट्री को ग्लोबल कीमतों के संकेत मिलते है ताकि वे उसी अनुसार खुद को तैयार कर सके। टैरिफ यह भी संदेश देते हैं कि लोगों को सभी की खुशहाली के लिए कीमत चुकानी होगी। एक खतरनाक हथियार की तरह टैरिफ को बहुत ही गंभीर मानते हुए उनका नाजुक व स्मार्ट तरीकों से सामना करना होगा क्योंकि जब इनकी शुरुआती बातों व बयानों ने ही इतनी हलचल मचा दी है तो जब इनका हमारे देश के लिए एलान होगा तो क्या स्थितियां बनेगी यह अंदाजा लगाया जा सकता है। सरकार तो शायद आगे बनने वाली स्थिति पर नजर रख ही रही होगी लेकिन कारोबारों के लिए टैरिफ की गंभीरता को समझकर उनके Long term असर को ध्यान में रखना जरूरी है और इस सच पर भी विचार करना सबसे महत्वपूर्ण है कि क्या हमारे देश की इंडस्ट्री व सरकार के पास दूसरे देशों पर टैरिफ लगाने या लगाये जा रहे टैरिफ को बढ़ाने की पॉवर है और अगर ऐसा है तो क्या उसका उपयोग बिना किसी की परवाह के किया जा सकता है?