देश में इन दिनों फर्जी लोन एप को लेकर बड़ी कार्यवाही चल रही है। आरबीआई लगातार अवेयरनैस केंपेन चला रहा है। लेकिन फेक लोन एप के झांसे में आकर आमजनता के लुटने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। हालांकि बैंकिंग नेटवर्क गांव-गांव तक पहुंच जाने के कारण महाजनी पर एक हद तक लगाम लग चुकी है। लेकिन एप के जरिए लोन के नाम पर ठगने के मामलों में कमी नहीं आ पा रही है। आपको याद होगा कोविड के बाद इसी तरह के चायनीज एप की बाढ़ सी आ गई थी जो मोटे ब्याज, पैनल्टी आदि के साथ ही ब्लैकमेलिंग तक का इस्तेमाल कर रहे थे। जिनके खिलाफ मिशन मोड में कार्यवाही करनी पड़ी थी। रिपोर्ट्स के अनुसार केंद्र सरकार जुलाई के ही तीसरे सप्ताह में शुरू होने वाले संसद के मॉनसून सत्र के दौरान बिना मान्यता लोन देने वालों पर लगाम लगाने के लिए नया कानून लाने की तैयारी कर रही है। सूत्रों के हवाले से आई खबर के अनुसार बैनिंग ऑफ अनरेगुलेटेड लेंडिंग एक्टिविटी यानी बुला नाम के इस नए कानून के दायरे में बिना आरबीआई की मंजूरी के डिजिटल और फिजिकल तरीके से लोन देने को बैन किया जाएगा। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि अनरेगुलेटेड यानी आरबीआई के बिना अनुमोदन के किसी भी माध्यम से लोन देने वालों के लिए 7 साल तक की सजा और 1 करोड़ रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया जा रहा है। साथ ही इस तरह के अनरेगुलेटेड लैंडर के खिलाफ कस्टमर के हैरेसमेंट (उत्पीडऩ) की शिकायत आती है तो 10 साल की सजा और दोगुने जुर्माना लगाया जा सकेगा। और रिपीट ऑफेंडर यानी इसी अपराध में बार-बार पकड़े जाने पर 50 करोड़ रुपये तक जुर्माने का प्रावधान किया जाना है। यदि एक से ज्यादा राज्यों या बड़ी रकम का मामला होने पर ऐसे मामलों में सीबीआई जांच का भी प्रावधान किया जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार, भारत में कुल लोन का लगभग 40 परसेंट हिस्सा इनफॉर्मल अनरेगुलेटेड (अनौपचारिक गैर-मान्यताप्राप्त) स्रोतों से आता है। शहरी गरीब परिवारों में से 50 परसेंट से अधिक अब भी महाजन या फर्जी लोन एप जैसे स्रोतों पर निर्भर हैं, जिससे लगभग 100 बिलियन डॉलर का एक असंगठित मार्केट तैयार हो चुका है। संसद के मॉनसून सत्र के दौरान भारत सरकार अनरेगुलेटेड लैंडिंग के अलावा तीन अन्य आर्थिक विधेयक लाने पर विचार कर रही है। रिपोर्ट के अनुसार इनमें नया आयकर कानून शामिल है, जो आयकर प्रणाली को सरल, पारदर्शी और करदाताओं के लिए अधिक सुलभ बनाएगा। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, सलेक्ट कमेटी की रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत होने के बाद आयकर विधेयक को मानसून सत्र के दौरान पेश किया जाएगा। नया आयकर विधेयक कर निर्धारण (असैसमेंट) प्रक्रिया को आधुनिक बनाने का प्रयास है। इसी तरह बीमा अधिनियम, 1938 में संशोधन करने का भी प्रस्ताव है जिसका उद्देश्य पूंजी आवश्यकताओं को कम करना, और नियामकीय ढांचे को साझा करने योग्य बनाना है। इस विधेयक के तहत बीमा कंपनियों के लिए पूंजी आवश्यकता को 100 करोड़ रुपये से घटाकर 75 करोड़ रुपये किया जाएगा। साथ ही इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) में भी संशोधन किया जाना है। यदि कोई खरीदार समाधान योजना के तरह किसी यूनिट को खरीदता है तो उसे कंपीटिशन कमिशन ऑफ इंडिया का मंजूरी लेना अनिवार्य होगा।