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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

09-07-2025

घर अपना... मिडल क्लास के लिए बन गया सपना

  •  हाल ही वल्र्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक समानता के मामले में भारत दुनिया में चौथे पायदान पर है। हालांकि इससे सरकार को विपक्ष और ऑक्सफैम के नैरेटिव को झपटने में तो मदद मिल जाएगी लेकिन हाउसिंग फोर ऑल का भारत सरकार का वायदा अधूरा ही रह जाएगा। भारत के बड़े शहरों में अफोर्डेबल घर की सप्लाई घट रही है और लक्जरी टावर्स आसमान छू रहे हैं। लोगों की आमदनी और घरों की कीमतों में खाई रिकॉर्ड हाई लेवल पर है। 2020 से 2024 के बीच, भारत की हाउसहोल्ड इनकम केवल 5.4 परसेंट सीएजीआर से बढ़ी वहीं प्रॉपर्टी प्राइस में 9.3 परसेंट की तेज ग्रोथ हुई। वेल्थ एडवाइजरी फर्म फिनोलॉजी के अनुसार यह बढ़ता मिसमैच केवल गरीबों को ही नहीं, मिडल क्लास को भी हाउसिंग से दूर कर रहा है। वर्ष 2022 में भारत में 1 करोड़ रुपये से कम कीमत वाले घरों की कुल सप्लाई 3.1 लाख थी। जो वर्ष 2024 तक 36 परसेंट गिरकर 1.98 लाख रह गई। इसी दौरान लक्जरी हाउसिंग सप्लाई में जबरदस्त उछाल आया। दिल्ली-एनसीआर में लक्जरी हाउसिंग सप्लाई में जहां 192 परसेंट की ग्रोथ हुई वहीं बेंगलुरु में 187 परसेंट और चेन्नई में 127 परसेंट। जिन शहरों में अफोर्डेबिलिटी सबसे ज्यादा घटी उनमें हैदराबाद में 69 परसेंट, मुंबई में 60 परसेंट और एनसीआर में 45 परसेंट की गिरावट के साथ अव्वल रहे। हालांकि इस दौरान कोलकाता में अफोर्डेबिलिटी में 7 परसेंट की बढ़ोतरी देखी गई। फिनोलॉजी के अनुसार इस ट्रेंड को दो फाइनेंशियल रेशियोज के जरिए ज्यादा बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। पहला, प्राइस-टू-इनकम (पी/आई) रेशियो को अफोर्डेबिलिटी का एक ग्लोबल बेंचमार्क माना जाता है। भारत में प्राइस टू इनकम रेशियो 11 है। इसका अर्थ है कि एक परिवार को अपना घर खरीदने के लिए 11 साल की इनकम की जरूरत होती है। आदर्श रूप से यह प्राइस टू इनकम रेशियो 5 होना चाहिए यानी पांच साल की आमदनी में घर खरीदा जा सके। लेकिन मुंबई का प्राइस टू इनकम रेशियो 14.3 है, जबकि दिल्ली में 10.1 है।  दूसरा, ईएमआई-टू-इनकम    (ईएमआर्इ /आई) रेशियो। इससे पता चलता है कि हाउसहोल्ड इनकम का कितना हिस्सा होम लोन ईएमआई में जाता है। ग्लोबल बेंचमार्क के लिहाज से 50 परसेंट से ज्यादा के रेशियो को अनअफोर्डेबल माना जाता है। भारत का औसत अब 61 परसेंट है, जो 2020 में केवल 46 परसेंट ही था।  इसका सीधा अर्थ है कि पिछले पांच वर्ष में घरों की अफोर्डेबिलिटी तेजी से घटी है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में फ्लोर स्पेस इंडेक्स (एफएसआई) कम होने से भी सप्लाई घटती है। मुंबई में केवल 542 हाई-राइज बिल्डिंग हैं जबकि सिंगापुर में 2600 से ज्यादा। टोक्यो, न्यूयॉर्क और यहां तक कि दिल्ली में भी ज्यादा वर्टिकल ग्रोथ की इजाजत हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि घरों की अफोर्डेबिलिटी बढ़ाने के लिए सरकार को सिर्फ मेट्रो शहरों ही नहीं बल्कि टीयर-2 और टीयर-3 शहरों में भी घरों की सप्लाई बढ़ानी होगी।

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घर अपना... मिडल क्लास के लिए बन गया सपना

 हाल ही वल्र्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक समानता के मामले में भारत दुनिया में चौथे पायदान पर है। हालांकि इससे सरकार को विपक्ष और ऑक्सफैम के नैरेटिव को झपटने में तो मदद मिल जाएगी लेकिन हाउसिंग फोर ऑल का भारत सरकार का वायदा अधूरा ही रह जाएगा। भारत के बड़े शहरों में अफोर्डेबल घर की सप्लाई घट रही है और लक्जरी टावर्स आसमान छू रहे हैं। लोगों की आमदनी और घरों की कीमतों में खाई रिकॉर्ड हाई लेवल पर है। 2020 से 2024 के बीच, भारत की हाउसहोल्ड इनकम केवल 5.4 परसेंट सीएजीआर से बढ़ी वहीं प्रॉपर्टी प्राइस में 9.3 परसेंट की तेज ग्रोथ हुई। वेल्थ एडवाइजरी फर्म फिनोलॉजी के अनुसार यह बढ़ता मिसमैच केवल गरीबों को ही नहीं, मिडल क्लास को भी हाउसिंग से दूर कर रहा है। वर्ष 2022 में भारत में 1 करोड़ रुपये से कम कीमत वाले घरों की कुल सप्लाई 3.1 लाख थी। जो वर्ष 2024 तक 36 परसेंट गिरकर 1.98 लाख रह गई। इसी दौरान लक्जरी हाउसिंग सप्लाई में जबरदस्त उछाल आया। दिल्ली-एनसीआर में लक्जरी हाउसिंग सप्लाई में जहां 192 परसेंट की ग्रोथ हुई वहीं बेंगलुरु में 187 परसेंट और चेन्नई में 127 परसेंट। जिन शहरों में अफोर्डेबिलिटी सबसे ज्यादा घटी उनमें हैदराबाद में 69 परसेंट, मुंबई में 60 परसेंट और एनसीआर में 45 परसेंट की गिरावट के साथ अव्वल रहे। हालांकि इस दौरान कोलकाता में अफोर्डेबिलिटी में 7 परसेंट की बढ़ोतरी देखी गई। फिनोलॉजी के अनुसार इस ट्रेंड को दो फाइनेंशियल रेशियोज के जरिए ज्यादा बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। पहला, प्राइस-टू-इनकम (पी/आई) रेशियो को अफोर्डेबिलिटी का एक ग्लोबल बेंचमार्क माना जाता है। भारत में प्राइस टू इनकम रेशियो 11 है। इसका अर्थ है कि एक परिवार को अपना घर खरीदने के लिए 11 साल की इनकम की जरूरत होती है। आदर्श रूप से यह प्राइस टू इनकम रेशियो 5 होना चाहिए यानी पांच साल की आमदनी में घर खरीदा जा सके। लेकिन मुंबई का प्राइस टू इनकम रेशियो 14.3 है, जबकि दिल्ली में 10.1 है।  दूसरा, ईएमआई-टू-इनकम    (ईएमआर्इ /आई) रेशियो। इससे पता चलता है कि हाउसहोल्ड इनकम का कितना हिस्सा होम लोन ईएमआई में जाता है। ग्लोबल बेंचमार्क के लिहाज से 50 परसेंट से ज्यादा के रेशियो को अनअफोर्डेबल माना जाता है। भारत का औसत अब 61 परसेंट है, जो 2020 में केवल 46 परसेंट ही था।  इसका सीधा अर्थ है कि पिछले पांच वर्ष में घरों की अफोर्डेबिलिटी तेजी से घटी है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में फ्लोर स्पेस इंडेक्स (एफएसआई) कम होने से भी सप्लाई घटती है। मुंबई में केवल 542 हाई-राइज बिल्डिंग हैं जबकि सिंगापुर में 2600 से ज्यादा। टोक्यो, न्यूयॉर्क और यहां तक कि दिल्ली में भी ज्यादा वर्टिकल ग्रोथ की इजाजत हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि घरों की अफोर्डेबिलिटी बढ़ाने के लिए सरकार को सिर्फ मेट्रो शहरों ही नहीं बल्कि टीयर-2 और टीयर-3 शहरों में भी घरों की सप्लाई बढ़ानी होगी।


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