देसी चने का स्टॉक कम होने के बावजूद भी ऑस्ट्रेलिया की दहशत से नाजायज मंदा आ चुका है, जबकि नए सौदे दिसंबर से पहले सस्ते वाले मुंबई दिल्ली मुंदड़ा नहीं आ पाएंगे। अत: यह मंदा केवल दहशत का है, दिसंबर में बाजार बढऩे की संभावना है। देसी चने की बिजाई अक्टूबर में मध्य प्रदेश कर्नाटक महाराष्ट्र राजस्थान सभी राज्यों में हो चुकी है, उसमें काफी बिजाई हेतु बढिय़ा देसी चने की खपत हुई है। अक्टूबर के अंत में चार दिनों तक लगातार बरसात होने से मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र में बोई हुई फसल को 37 प्रतिशत नुकसान हुआ है, क्योंकि खेतों में पानी लग गया जिससे बोया गया रकवा एवं देसी चना जर्मिनेशन के बिना या पौधे 5-7 सेंटीमीटर होने के बाद ही गल गए, इस बात को कोई उजागर नहीं कर रहा है। राजस्थान में चने की बसल बढिय़ा है, लेकिन बिजाई वहां भी कम हुई है। किसान विगत दो-तीन वर्षों के ऑस्ट्रेलिया के चने पड़ता में आने से देसी चने की खेती करने से पीछे हटने लगे हैं। अब वहां सरसों की बिजाई अधिक हुई है, क्योंकि किसानों को इसके भाव ऊंचे मिले हैं। इसमें मंदे का मुख्य कारण सस्ती मटर की प्रचुर मात्रा में उपलब्धि है, जो देसी चने के बेसन एवं दाल के साथ-साथ तुवर दाल में भी खप रहा है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया से सस्ते आयात सौदे के चलते भी कारोबारी स्टाक के माल मंदे भाव में काटते चले गए हैं। दूसरी ओर बाजारों में रुपए की तंगी चल रही है, इन सारी परिस्थितियों से बाजार 5800 रुपए प्रति कुंतल लॉरेंस रोड पर रह गया। इस भाव में एक बार माल खरीद कर दड़ा बनाना आगे चलकर लाभदायक रहेगा। ऑस्ट्रेलिया का चना नवंबर-दिसंबर शिपमेंट का 5000/5100 रुपए प्रति कुंतल मुंदड़ा पोर्ट पर बता रहे हैं, लेकिन उसमें यह भी कंडीशन है कि माल लोडिंग के समय जितनी ड्यूटी रहेगी, उसमें लिवाल-बिकवाल दोनों पार्टियों में 50-50 प्रतिशत बांटा जाएगा, ऐसा कंडीशन बता रहे हैं। हालांकि चौतरफा बिकवाली का प्रेशर हल्के माल का बना हुआ था तथा स्टॉकिस्ट भी घबराहट में माल को काटने लगे थे।, लेकिन अब दाल मिलें माल खरीदने लगी है, जिससे बाजार नीचे के भाव से 100 रुपए सुधर गया है। आगे अभी खपत भरपूर रहने वाली है, इन परिस्थितियों में इन भावों में घबराकर माल काटना नहीं चाहिए। हम मानते हैं कि सरकार महंगाई को नियंत्रित करने के लिए निरंतर प्रयासरत है, लेकिन जो चीज पर्याप्त मात्रा में नहीं है। अत: मांग निकलते ही बढ़त बना जाएगा।