तुवर में पिछले 3-4 दिनों के अंतराल 4 रुपए प्रति किलो की भारी गिरावट आ गई है। बंदरगाह वाली मंडियों से लेकर बड़ी वितरक मंडियों तक कहीं भी स्टॉक ज्यादा नहीं है। केवल सट्टेबाजी के चलते कारोबारियों द्वारा ऊंचे भाव में माल खरीद लिया गया था, उसका कटान के बाद डिलीवरी लगभग पूरी हो गई है, जिस कारण यहां से फिर बाजार यहां से 5 रुपए तेज लग रहा है तुवर की नयी फसल जनवरी में आएगी तथा महाराष्ट्र कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश में लगातार बरसात होने से तुवर की फसल को नुकसान का खतरा बढ़ गया है, क्योंकि इसकी फसल को ज्यादा पानी नहीं चाहिए। नई फसल निकट भविष्य में कोई आने वाली नहीं है। दूसरी ओर नीचे में 99.5 रुपए प्रति किलो नीचे में चेन्नई बिकने के बाद माल मिलना मुश्किल हो गया है तथा आने वाले कंटेनर के भाव ऊचे बोल रहे हैं, जिससे बाजार आज यहां 103.50 रुपए रह गया है। यह ऊपर में एक सप्ताह पहले 111 रुपए दिखाई है। शाम को चेन्नई में कुछ मजबूत बोलने लगे थे, इस पर चार रुपए का अतिरिक्त खर्च है। गौरतलब है कि सरकार द्वारा जून में तुवर, देसी चना पर स्टॉक सीमा लगा दिया गया था, जिसके चलते घबराहट में बाजार लगातार टूटते जा रहे हैं। अगस्त की काफी क्वांटिटी में एवं सितंबर की भी कुछ तुवर बड़े सटोरियों ने बेच दिया है, जिसका डिफरेंस लाभ, मंदा आने पर ही मिलेगा, इसलिए बाजार को नाजायज तोड़ते गए थे। यहां बाजार टूटने के बाद नीचे वाले भाव पर दाल मिलों व कारोबारियों को माल नहीं मिलने से दोबारा लिवाली आ गई है। हाजिर माल की कमी एवं आयात महंगा को देखते हुए फिर 6/7 रुपए प्रति किलो की तेजी लग रही है। तुवर में सट्टेबाजी के चलते बेमौसमी मंदा आ गया है, सटोरियों द्वारा काफी माल फुल अगस्त एवं 20 सितंबर का बेचा गया है, उसकी डिलीवरी अब लगभग निपट चुकी है तथा बिके हुए मालों में भारी लाभ बिकवाल को मिल रहा है। अत: सौदे निपटते ही हाजिर माल की कमी से फिर बाजार बढऩे लगा है। गौरतलब है कि घरेलू उत्पादन घटकर 34 लाख मीट्रिक टन के आसपास रह गया है, जबकि 4 साल पहले तक 55-56 लाख मीट्रिक टन तुवर का उत्पादन होता था। इस तरह उत्पादन में लगातार भारी गिरावट आई है, वहीं बर्मा में इसके भाव काफी ऊंचे चल रहे हैं तथा वहां भी पुरानी क्रॉप की तुवर पूरी तरह समाप्त हो गई है। इधर चेन्नई में भी ज्यादा माल नहीं है। इधर अफ्रीकन कंट्री की तुवर भी पड़ते में नहीं आ रही है।