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04-12-2025

बैंकरप्ट्सी की धीमी स्पीड ऐसे होगी तेज

  •  संसद की स्थायी समिति ने कहा है कि इन्सॉल्वेन्सी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) अब तक भारत में ईज ऑफ डूइंग बिजनस को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा रहा है लेकिन इसमें सिस्टम के लेवल पर चैलेंज बने हुए है और इनका समाधान नहीं हो पा रहा है। समिति ने कहा है कि इनके चलते आईबीसी का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। समिति ने अपनी रिपोर्ट ...रिव्यू ऑफ वर्किंग ऑफ इन्सॉल्वेन्सी एंड बैंकरप्सी कोड एंड इमर्जिंग इश्यूज संसद में पेश की गई है। रिपोर्ट में कहा गया कि आईबीसी कितनी कामयाब रही है इसका अंदाजा इस बात से लग सकता है कि इसके मौजूदा फ्रेमवर्क के तहत अब तक कुल 1,194 कम्पनियों का सफल समाधान किया जा चुका है। समिति के अनुसार लेनदारों को आईबीसी के तहत लिक्विडेशन वेल्यू का 170 परसेंट से ज्यादा और फेयर वेल्यू  की 93 परसेंट रिकवरी करने में मदद मिली है। साथ में लगी टेबल से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2024-25 के अंत तक 4.43 लाख करोड़ रुपये के प्लान अप्रूव हो चुके हैं। रिपोर्ट में कहा है कि हालांकि आईबीसी कामयाब रही है लेकिन धीमी रफ्तार, मुकदमेबाजी का बढ़ता बोझ, लेनदारों को भारी हेयरकट झेलना आदि ऐसे कई चैलेंज हैं। इंडिविजुअल इन्सॉल्वेन्सी फ्रेमवर्क और एमएसएमई के लिए प्री-पैकेज्ड मेकैनिज्म का क्रियान्वयन सही तरह से नहीं हो पाने के कारण आईबीसी की पूरी क्षमता अनलॉक नहीं हो पा रही है। समिति ने कहा कि इन्सॉल्वेन्सी एप्लिकेशन्स को अप्रूवल मिलने में ज्यादा समय लगने के कारण वेल्यू रियलाइजेशन (सही मूल्यांकन का फायदा) नहीं मिल पा रहा है जिससे असैट्स की वेल्यू डेप्रीसिएट होती है और रेजॉल्यूशन प्रोसेस में अनावश्यक देरी होती है। समिति ने रिपोर्ट में कहा कि कॉरपोरेट इन्सॉल्वेन्सी रेजोल्यूशन प्रोसेस (सीआईआरपी) को पूरा होने में औसत 713 दिन लग रहे हैं, जबकि तय समयसीमा 330 दिन है। और इसका सबसे बड़ा कारण एनसीएलटी की बेंचों की सीमित संख्या, ज्यूडिशियल और एडमिनिस्ट्रेटेव स्टाफ की कमी तथा अनावश्यक अपीलों और मुकदमेबाजी है। पूरी सीआईआरपी की रफ्तार घटने से असैट की सही वेल्यू क्रेडिटर को नहीं मिल पाती। समिति ने रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि एनसीएलटी की जो नई बेंच बनाई जाने का प्रस्ताव है उसमें तेजी लाई जानी चाहिए। साथ ही सेंट्रलाइज्ड मैनेजमेंट के लिए मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स को इंटीग्रेटेड टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म को शीघ्र लागू करना चाहिए। समिति ने यह भी कहा है कि आईबीबीआई (इन्सॉल्वेन्सी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया) असफल रेजोल्यूशन आवेदकों द्वारा अपील दाखिल करने पर अनिवार्य बयाना राशि तय करे और गैर-जरूरी आवेदनों पर दंड को भी काफी बढ़ाने की जरूरत है। हालांकि समिति ने कहा है कि आईबीसी के तहत कुल वसूली केवल 32.8 परसेंट है। इससे पता चलता है कि कंपनियां जब भयंकर क्राइसिस में पहुंच जाती हैं तब आईबीसी के अंतर्गत लाई जाती हैं, जिससे रिकवरी की संभावना पहले ही काफी कम हो चुकी होती हैं।

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बैंकरप्ट्सी की धीमी स्पीड ऐसे होगी तेज

 संसद की स्थायी समिति ने कहा है कि इन्सॉल्वेन्सी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) अब तक भारत में ईज ऑफ डूइंग बिजनस को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा रहा है लेकिन इसमें सिस्टम के लेवल पर चैलेंज बने हुए है और इनका समाधान नहीं हो पा रहा है। समिति ने कहा है कि इनके चलते आईबीसी का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। समिति ने अपनी रिपोर्ट ...रिव्यू ऑफ वर्किंग ऑफ इन्सॉल्वेन्सी एंड बैंकरप्सी कोड एंड इमर्जिंग इश्यूज संसद में पेश की गई है। रिपोर्ट में कहा गया कि आईबीसी कितनी कामयाब रही है इसका अंदाजा इस बात से लग सकता है कि इसके मौजूदा फ्रेमवर्क के तहत अब तक कुल 1,194 कम्पनियों का सफल समाधान किया जा चुका है। समिति के अनुसार लेनदारों को आईबीसी के तहत लिक्विडेशन वेल्यू का 170 परसेंट से ज्यादा और फेयर वेल्यू  की 93 परसेंट रिकवरी करने में मदद मिली है। साथ में लगी टेबल से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2024-25 के अंत तक 4.43 लाख करोड़ रुपये के प्लान अप्रूव हो चुके हैं। रिपोर्ट में कहा है कि हालांकि आईबीसी कामयाब रही है लेकिन धीमी रफ्तार, मुकदमेबाजी का बढ़ता बोझ, लेनदारों को भारी हेयरकट झेलना आदि ऐसे कई चैलेंज हैं। इंडिविजुअल इन्सॉल्वेन्सी फ्रेमवर्क और एमएसएमई के लिए प्री-पैकेज्ड मेकैनिज्म का क्रियान्वयन सही तरह से नहीं हो पाने के कारण आईबीसी की पूरी क्षमता अनलॉक नहीं हो पा रही है। समिति ने कहा कि इन्सॉल्वेन्सी एप्लिकेशन्स को अप्रूवल मिलने में ज्यादा समय लगने के कारण वेल्यू रियलाइजेशन (सही मूल्यांकन का फायदा) नहीं मिल पा रहा है जिससे असैट्स की वेल्यू डेप्रीसिएट होती है और रेजॉल्यूशन प्रोसेस में अनावश्यक देरी होती है। समिति ने रिपोर्ट में कहा कि कॉरपोरेट इन्सॉल्वेन्सी रेजोल्यूशन प्रोसेस (सीआईआरपी) को पूरा होने में औसत 713 दिन लग रहे हैं, जबकि तय समयसीमा 330 दिन है। और इसका सबसे बड़ा कारण एनसीएलटी की बेंचों की सीमित संख्या, ज्यूडिशियल और एडमिनिस्ट्रेटेव स्टाफ की कमी तथा अनावश्यक अपीलों और मुकदमेबाजी है। पूरी सीआईआरपी की रफ्तार घटने से असैट की सही वेल्यू क्रेडिटर को नहीं मिल पाती। समिति ने रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि एनसीएलटी की जो नई बेंच बनाई जाने का प्रस्ताव है उसमें तेजी लाई जानी चाहिए। साथ ही सेंट्रलाइज्ड मैनेजमेंट के लिए मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स को इंटीग्रेटेड टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म को शीघ्र लागू करना चाहिए। समिति ने यह भी कहा है कि आईबीबीआई (इन्सॉल्वेन्सी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया) असफल रेजोल्यूशन आवेदकों द्वारा अपील दाखिल करने पर अनिवार्य बयाना राशि तय करे और गैर-जरूरी आवेदनों पर दंड को भी काफी बढ़ाने की जरूरत है। हालांकि समिति ने कहा है कि आईबीसी के तहत कुल वसूली केवल 32.8 परसेंट है। इससे पता चलता है कि कंपनियां जब भयंकर क्राइसिस में पहुंच जाती हैं तब आईबीसी के अंतर्गत लाई जाती हैं, जिससे रिकवरी की संभावना पहले ही काफी कम हो चुकी होती हैं।


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