आपने सुना होगा...जहां दूध की नदियां बहती हैं, जहां मिट्टी में सोना उगता है। सोने का तो पता नहीं लेकिन सुनहरी मिट्टी के देस राजस्थान में वाकई दूध की नदियां बह रही हैं। रियल लाइफ डेटा तो यही कह रहा है। हालांकि रील लाइफ में गुजरात को दूध का गढ़ माना जाता है। भारत सरकार के लेटेस्ट डेटा के अनुसार मरुथल का देश भारत में दूध का सबसे बड़ा दूध उत्पादक राज्य बन चुका है। कोविड के बाद से इसने उत्तर प्रदेश को पीछे छोड़ते हुए देश के कुल दूध उत्पादन में 16 परसेंट हिस्सेदारी हासिल कर ली है। आप जानते हैं भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड डील में डेयरी बहुत बड़ा स्पॉइलर साबित हो रहा है। भारत सरकार करोड़ों डेयरी फार्मर के हितों को देखते हुए इस सैक्टर को किसी भी स्थिति में खोलने की लिए तैयार नहीं है। और सरकार का यह फैसला देश के सबसे बड़े मिल्क प्रॉड्यूसिंग राज्य के रूप में राजस्थान के लिए बड़ी राहत की बात मानी जा सकती है। सांख्यिकी मंत्रालय की एक रिपोर्ट कहती है वर्ष 2020-21 से 2023-24 के बीच, दूध से राजस्थान का वास्तविक सकल उत्पादन मूल्य (Real GVO) औसतन 91,226.9 करोड़ रहा, जबकि यूपी जैसा 25 करोड़ आबादी का राज्य 87,447.6 करोड़ रुपये के साथ दूसरे पायदान पर फिसल गया। कोविड से पहले राजस्थान 12.8 परसेंट शेयर के साथ देश में दूसरे स्थान पर था जबकि यूपी का 16.6 परसेंट शेयर था। राजस्थान के साथ-साथ मध्य प्रदेश भी भारत की मिल्क इकोनॉमी में एक उभरता हुआ खिलाड़ी बन रहा है। यह हाल ही गुजरात को पछाड़ते हुए चौथा सबसे बड़ा दूध उत्पादक राज्य बना है। वर्ष 2022-23 में एमपी का दूध उत्पादन में शेयर 7.5 परसेंट था जो 2023-24 में बढक़र 7.6 परसेंट हो गया। जबकि गुजरात का शेयर घटकर 7.3 परसेंट रह गया। वर्ष 2011-12 से 2023-24 के बीच, केवल राजस्थान और एमपी ने ही नेशनल मिल्क प्रॉडक्शन में अपना शेयर बढ़ाया है। राजस्थान का शेयर जहां 4.4 परसेंट बढ़ा वहीं मध्य प्रदेश का 2.2 परसेंट। यह बदलाव ऐसे समय में आया है जब देश एग्री इकोनॉमी की दूध पर निर्भरता बढ़ रही है। वर्ष 2023-24 में, दूध उत्पादन का मूल्य 6.1 लाख करोड़ तक पहुंच गया, जो देश के कुल कृषि उत्पादन का 20.5 परसेंट है। वर्ष 2011-12 में आंकड़ा 17.2 परसेंट ही था। राजस्थान के कुल एग्री प्रॉडक्शन में दूध का शेयर करीब एक-तिहाई है जो एक दशक पहले 22.9 परसेंट था। उत्तर प्रदेश में दूध की हिस्सेदारी 2023-24 में 25.9 परसेंट रही, जो 2019-20 के 26.1 परसेंट से मामूली कम है। हालांकि भारत के कंजम्पशन पैटर्न में भी दूध का दखल साफ नजर आ रहा है। हाउसहोल्ड कंजम्प्शन एक्सपेंडिचर सर्वे के अनुसार रूरल इंडिया में मिल्क एंड मिल्क प्रॉडक्ट्स पर खर्च कुल घरेलू खर्च का 8.4 परसेंट हो गया है, जो 2011-12 में 8 परसेंट था। वहीं अर्ब इंडिया में यह 7 परसेंट से बढक़र 7.2 परसेंट हो गई है। एक लाख करोड़ का नुकसान: विशेषज्ञों के अनुसार यदि अमेरिका के दबाव में भारत डेयरी सैक्टर को खोलता है तो सालाना 1.03 लाख करोड़ का नुकसान होने का खतरा है। एसबीआई की एक रिपोर्ट कहती है कि डेयरी इंडस्ट्री भारत के कुल जीवीए (सकल मूल्य वर्धन) में 2.5-3 परसेंट यानी 7 से 9 लाख करोड़ रुपये का योगदान देती है। इससे 8 करोड़ डायरेक्ट जॉब्स जुड़े हुए है। हर एक लाख रुपये जीवीए पर 1 जॉब पैदा होता है। रिपोर्ट के अनुसार यदि अमेरिकी डेयरी प्रॉडक्ट्स के लिए भारत के मार्केट को खोला जाता है तो दूध की प्राइस कम से कम 15 परसेंट घट सकती है जिनका कुल असर 1.03 लाख करोड़ रुपये होगा। भारत में दूध का आयात सालाना 25 मिलियन टन तक हो सकता है। दूध सस्ता होने से जीवीए में 51 हजार लाख करोड़ की गिरावट हो सकती है।