शास्त्रों के अनुसार गृहस्थ ही समस्त धर्मों का मूल है। गीता में कहा गया है-
स्वधर्मे निधनं श्रेय- अर्थात अपने धर्म का पालन श्रेष्ठ है। गीता गृहस्थ को कत्र्तव्य और नियत कर्म का पालन न करने की पे्ररणा देती है। गीता के अध्याय-3 के श्लोक- 19 के अनुसार अनासक्त मानव कत्र्तव्य कर्म से परमपद प्राप्त करता है-
तस्माद सक्त: सततं कार्य कर्म समाचर।
असक्तो हयाचरन्कर्म परमाप्नोति पुरुष:।।
अर्थात मनुष्य को निरंतर आसक्ति रहित होकर कत्र्तव्य कम का भली-भांति आचरण करना चाहिये। अनासक्त मानव निसंदेह ही कत्र्तव्य कर्म का आचरण करते हुए परम पद को प्राप्त करता है।
गीता के श्लोक के अनुसार मनुष्य को लोक मर्यादा की सुरक्षा हेतु कत्र्तव्य कर्म करना चाहिये।
कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादय:।
लोक संग्रह मेवापि संपश्यन्कर्तुमर्हसि।।
अर्थात कत्र्तव्य कर्म के द्वारा ही राजा जनक तथ अन्य महापुरुषों ने परमसिद्धि को प्राप्त किया है। - क्रमश:
- पीसी वर्मा
पूर्व उपायुक्त, वाणिज्यिक कर,जयपुर