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Daily Business Newspaper | A Knowledge Powerhouse in Hindi

12-07-2025

बनता-बिगड़ता ‘बैलेंस’!

  •  जितने लोग अपने जीवन में तरह-तरह के बैलेंस बनाने के लिए आजकल जूझने लगे हैं, उतने शायद इतिहास में कभी नहीं देखे गए। वर्क-लाइफ का बैलेंस, इनकम खर्च के बीच बैलेंस, हैल्थ लाइफ स्टाइल का बैलेंस, शुद्धता-मिलावट का बैलेंस, टाइम-प्रॉडक्टिविटी का बैलेंस, सोशल-पर्सनल लाइफ में बैलेंस, इंवेस्टमेंट-रिटर्न का बैलेंस, फ्यूचर वर्तमान में बैलेंस जैसी ढेरों स्थितियां हैं जिनके बीच बैलेंस बनाकर रखना नया चैलेंज बन रहा है। कोविड संकट के बाद शुरू हुए वर्क फ्रॉम होम के ट्रेंड ने Work-Life बैलेंस का ऐसा माहौल बना दिया कि हर कोई काम से ज्यादा अपनी पर्सनल लाइफ पर ज्यादा समय बिताने की इच्छा रखने लगा है। इस ट्रेंड को कंपनियों ने शुरूआत में तो खूब सपोर्ट किया पर ऐसा ज्यादा दिन नहीं चल सका। हमारे यहां इंफोसिस के नारायण मूर्ति द्वारा हफ्ते में 70 घंटे काम करने के सुझाव को ज्यादा पसंद नहीं किया गया पर अब लगता है कि घड़ी की सुई उल्टी घूम चुकी है और नारायण मूर्ति की सोच सही होती दिखने लगी है, भले ही सोशल मीडिया पर कुछ भी कहा जा रहा हो। कई बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों में काम करने वालों का अनुभव बताता है कि अब कंपनियां ईमानदारी से दो टूक शब्दों में दिन में ज्यादा घंटों तक काम करने व काम से संबंधित कोई सीमा न होने की बात नए लोगों को नौकरी देने से पहले ही बताने लगी है। कई कंपनियां तो ङ्खशह्म्द्म-रुद्बद्घद्ग बैलेंस के बारे में खुलकर कहने लगी है कि अगर किसी को इसकी ज्यादा जरूरत है तो उनके लिए नौकरी उपलब्ध नहीं है। यह भी बताया जाने लगा है कि अगर कोई सप्ताह में 70 घंटे से ज्यादा काम नहीं कर सकता तो वह नौकरी के लिए Apply न करें। यह ट्रेंड लगभग देश के हर  कारोबारी सेक्टरों में दिखने लगा है जो कंपीटिशन, मार्जिन पर दबाव, बढ़ते खर्च, जल्दी-जल्दी बदलती स्थितियों व ग्लोबल उठापटक के चलते अनिश्चितता के बीच काम कर रहे हैं। वर्ष 2021-22 के दिनों का भरपूर मजा लेने वाले अधिकतर लोगों को अब काम का दबाव फील होना शुरू  हो गया है। उदाहरण के लिए एक मार्केटिंग व टेलीकॉलिंग का जॉब करने वाली महिला की आखिरी नौकरी करीब 25 हजार रुपए महीने की थी जो अब नहीं रही। अब उसके पास 15-20 हजार रुपए महीने में ही काम करने के ऑफर हैं, जिनमें परफॉर्मेंस देने का पहले के मुकाबले ज्यादा दबाव है। यह महिला हर महीने 15 हजार रुपए लोन की किश्त के रूप में चुका रही है। कई कंपनियों का डेटा बताता है कि वहां काम करने वाले लोग रात को 8 बजे बाद भी ऑनलाइन काम करते हैं। अब गेंद नौकरी देने वालों के पाले में आ चुकी है जो इस फिराक में रहने लगे हैं कि काम करने वालों का किस हद तक उपयोग किया जा सकता है क्योंकि कई तरह के फाइनेंशियल Commitment (वादा) कर चुके लोगों के लिए हर हाल में कमाई करते रहना मजबूरी बन रहा है। नौकरी देने वालों को पता है कि जॉब मार्केट में काम ढूंढ रहे लोगों की कोई कमी नहीं है, इसलिए वे दबाकर काम लेने की सोच रखने लगे हैं। यह ट्रेंड Startup से लेकर नामी कंपनियों का हिस्सा बनता जा रहा है, जिसमें कंपनियां काम करने वालों को Challenging (चुनौतीपूर्ण) माहौल में काम करने की तैयारी रखने के लिए कह रही है। हर समय काम करने के लिए तैयार लोगों को नौकरी देने में प्राथमिकता दी जाने लगी है जो अपने समय के हिसाब से Flexible हो व अपने क्लाइंटों की जरूरतों पर ज्यादा ध्यान देने के लिए तैयार हो। बैलेंस बनाकर रखने की नई लाइफ स्टाइल पर काम का यह बदलता ट्रेंड किस तरह असर डाल रहा है यह अभी से ही दिखने लगा है। हालात यह है कि अधिकतर मामलों में बैलेंस बनाने की कोशिश कामयाब नहीं हो पा रही है क्योंकि बाजार के साथ-साथ अन्य तरह की ताकतें अपनी पकड़ मजबूत करते हुए लोगों की सोच के खिलाफ काम कर रही है, जिससे बैलेंस बनने से पहले ही बिगडऩे की चुनौती खड़ी होने लगी है। अगर कोई अपने जीनव में ज्यादातर तरह के बैलेंस सही बनाकर रखने में सफल हो रहा है तो उसे आगे आकर अपनी इस स्किल व फार्मूले के बारे में बताना चाहिए, ताकि बैलेंस बनाने की उलझन में फंसे लोगों को भी इसका फायदा मिल सके, क्योंकि आजकल बैलेंस बनाने में कामयाब होना व इसे बनाकर रखना किसी चमत्कार से कम नहीं रह गया है।

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बनता-बिगड़ता ‘बैलेंस’!

 जितने लोग अपने जीवन में तरह-तरह के बैलेंस बनाने के लिए आजकल जूझने लगे हैं, उतने शायद इतिहास में कभी नहीं देखे गए। वर्क-लाइफ का बैलेंस, इनकम खर्च के बीच बैलेंस, हैल्थ लाइफ स्टाइल का बैलेंस, शुद्धता-मिलावट का बैलेंस, टाइम-प्रॉडक्टिविटी का बैलेंस, सोशल-पर्सनल लाइफ में बैलेंस, इंवेस्टमेंट-रिटर्न का बैलेंस, फ्यूचर वर्तमान में बैलेंस जैसी ढेरों स्थितियां हैं जिनके बीच बैलेंस बनाकर रखना नया चैलेंज बन रहा है। कोविड संकट के बाद शुरू हुए वर्क फ्रॉम होम के ट्रेंड ने Work-Life बैलेंस का ऐसा माहौल बना दिया कि हर कोई काम से ज्यादा अपनी पर्सनल लाइफ पर ज्यादा समय बिताने की इच्छा रखने लगा है। इस ट्रेंड को कंपनियों ने शुरूआत में तो खूब सपोर्ट किया पर ऐसा ज्यादा दिन नहीं चल सका। हमारे यहां इंफोसिस के नारायण मूर्ति द्वारा हफ्ते में 70 घंटे काम करने के सुझाव को ज्यादा पसंद नहीं किया गया पर अब लगता है कि घड़ी की सुई उल्टी घूम चुकी है और नारायण मूर्ति की सोच सही होती दिखने लगी है, भले ही सोशल मीडिया पर कुछ भी कहा जा रहा हो। कई बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों में काम करने वालों का अनुभव बताता है कि अब कंपनियां ईमानदारी से दो टूक शब्दों में दिन में ज्यादा घंटों तक काम करने व काम से संबंधित कोई सीमा न होने की बात नए लोगों को नौकरी देने से पहले ही बताने लगी है। कई कंपनियां तो ङ्खशह्म्द्म-रुद्बद्घद्ग बैलेंस के बारे में खुलकर कहने लगी है कि अगर किसी को इसकी ज्यादा जरूरत है तो उनके लिए नौकरी उपलब्ध नहीं है। यह भी बताया जाने लगा है कि अगर कोई सप्ताह में 70 घंटे से ज्यादा काम नहीं कर सकता तो वह नौकरी के लिए Apply न करें। यह ट्रेंड लगभग देश के हर  कारोबारी सेक्टरों में दिखने लगा है जो कंपीटिशन, मार्जिन पर दबाव, बढ़ते खर्च, जल्दी-जल्दी बदलती स्थितियों व ग्लोबल उठापटक के चलते अनिश्चितता के बीच काम कर रहे हैं। वर्ष 2021-22 के दिनों का भरपूर मजा लेने वाले अधिकतर लोगों को अब काम का दबाव फील होना शुरू  हो गया है। उदाहरण के लिए एक मार्केटिंग व टेलीकॉलिंग का जॉब करने वाली महिला की आखिरी नौकरी करीब 25 हजार रुपए महीने की थी जो अब नहीं रही। अब उसके पास 15-20 हजार रुपए महीने में ही काम करने के ऑफर हैं, जिनमें परफॉर्मेंस देने का पहले के मुकाबले ज्यादा दबाव है। यह महिला हर महीने 15 हजार रुपए लोन की किश्त के रूप में चुका रही है। कई कंपनियों का डेटा बताता है कि वहां काम करने वाले लोग रात को 8 बजे बाद भी ऑनलाइन काम करते हैं। अब गेंद नौकरी देने वालों के पाले में आ चुकी है जो इस फिराक में रहने लगे हैं कि काम करने वालों का किस हद तक उपयोग किया जा सकता है क्योंकि कई तरह के फाइनेंशियल Commitment (वादा) कर चुके लोगों के लिए हर हाल में कमाई करते रहना मजबूरी बन रहा है। नौकरी देने वालों को पता है कि जॉब मार्केट में काम ढूंढ रहे लोगों की कोई कमी नहीं है, इसलिए वे दबाकर काम लेने की सोच रखने लगे हैं। यह ट्रेंड Startup से लेकर नामी कंपनियों का हिस्सा बनता जा रहा है, जिसमें कंपनियां काम करने वालों को Challenging (चुनौतीपूर्ण) माहौल में काम करने की तैयारी रखने के लिए कह रही है। हर समय काम करने के लिए तैयार लोगों को नौकरी देने में प्राथमिकता दी जाने लगी है जो अपने समय के हिसाब से Flexible हो व अपने क्लाइंटों की जरूरतों पर ज्यादा ध्यान देने के लिए तैयार हो। बैलेंस बनाकर रखने की नई लाइफ स्टाइल पर काम का यह बदलता ट्रेंड किस तरह असर डाल रहा है यह अभी से ही दिखने लगा है। हालात यह है कि अधिकतर मामलों में बैलेंस बनाने की कोशिश कामयाब नहीं हो पा रही है क्योंकि बाजार के साथ-साथ अन्य तरह की ताकतें अपनी पकड़ मजबूत करते हुए लोगों की सोच के खिलाफ काम कर रही है, जिससे बैलेंस बनने से पहले ही बिगडऩे की चुनौती खड़ी होने लगी है। अगर कोई अपने जीनव में ज्यादातर तरह के बैलेंस सही बनाकर रखने में सफल हो रहा है तो उसे आगे आकर अपनी इस स्किल व फार्मूले के बारे में बताना चाहिए, ताकि बैलेंस बनाने की उलझन में फंसे लोगों को भी इसका फायदा मिल सके, क्योंकि आजकल बैलेंस बनाने में कामयाब होना व इसे बनाकर रखना किसी चमत्कार से कम नहीं रह गया है।


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