चीन के ईवी सैक्टर में जो प्राइसवॉर चल रहा है उसका कोलेटरल डैमेज थाईलैंड को हो रहा है। थाईलैंड एशिया में चीनी ईवी का सबसे बड़ा मार्केट है। यहां भी छोटी चीनी ईवी कंपनियों को बीवाईडी शार्क की तरह निगल रही है। ऐसे में उनके थाईलैंड में प्रॉडक्शन और सेल्स प्लान धाराशायी हो गए हैं। साल 2022 में थाईलैंड में एंट्री लेने वाले शुरुआती चीनी ईवी ब्रांड्स में से एक नेटा सरकार की प्रोत्साहन योजना की सख्त शर्तों को पूरा नहीं कर पाई। इस स्कीम में इंपोर्ट ड्यूटी पर डिस्काउंट दिया जाता है लेकिन इंपोर्ट की गई कारों के बराबर लोकल प्रॉडक्शन करना पड़ता है। हालांकि कमजोर सेल्स को देखते हुए सरकार ने लोकल उत्पादन की शर्त को पूरा करने के लिए 2024 के बजाय 2025 तक की मोहलत दे दी। लेकिन नेटा ने हाथ खड़े कर दिए हैं। उसने कहा है कि स्कीम के तहत जरूरी मात्रा में लोकल प्रॉडक्शन नहीं कर सकती। काउंटरपॉइंट रिसर्च के अनुसार, साल 2023 में थाईलैंड के ईवी मार्केट में नेटा का शेयर 12 परसेंट था और बीवाईडी का 49 परसेंट। आज 18 चाइनीज ईवी ब्रांड थाईलैंड में मौजूद हैं जिनका कुल ईवी मार्केट में 70 परसेंट से ज्यादा शेयर है। बीवाईडी जैसे शार्क चीन की ही तरह थाईलैंड में भी छोटे ब्रांड्स को निगल रहे हैं। चालू वर्ष के जनवरी-मई के पांच महीनों में नेटा का मार्केट शेयर केवल 4 परसेंट रह गया। काउंटरपॉइंट के एनेलिस्ट अभिक मुखर्जी के अनुसार चीन में चल रहा प्राइसवॉर अब दूसरे देशों में भी पांव पसार रहा है जिसमें छोटे ब्रांड्स के लिए टिके रहना मुश्किल बना दिया है। थाईलैंड की इकोनॉमी कोविड के बाद से ही रिकवर नहीं कर पाई है। और चीनी ब्रांड्स के एग्रेसिव हो जाने के कारण ऑटो मार्केट में कंपीटिशन बहुत बढ़ गया है। कसीकोर्न बैंक की रिसर्च हैड रुजिपुन अस्सारुत कहती हैं कुछ चीनी ब्रांड्स ने प्राइस में 20 परसेंट से ज्यादा की कटौती कर दी है। चीन की ईवी ओवरकैपेसिटी और प्राइसवॉर का असर थाईलैंड जैसे मार्केट्स पर पड़ रहा है। भारत की ही तरह थाईलैंड भी 30एट30 यानी 2030 तक 30 परसेंट ईवी का टार्गेट लेकर चल रहा है। हाल तक थाईलैंड होंडा, टोयोटा जैसे जापानी ब्रांड्स का सैकंड होम था।
